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श्री आचारांगसूत्रम्
भारतभूमि सुयश अहो! अतुल अनन्त अपार। अद्भुत श्रुतधर आप थे, पूरण करुणागार ।।१०।। श्री सद्गुरु अग्रज अहो! रहते नित निष्काम। श्रीमद् विजयदक्ष सूरि, अगणित उन्हें प्रणाम।।११।। पाया सद्गुरुराज का, आशीर्वाद हमेश। जैनागम अनुवाद हित, पावन करूँ प्रवेश ।।१२।। श्री भद्रबाहु आचार्यवर, आगम टीकाकार। श्री जिनदास महतरगणी, जिनका शत आभार।।१३।। आचार्य शीलांक सूरि, श्री अजित सूरिदेव। नियुक्ति चूर्णि दीपिका, सहाय ग्रन्थ सदैव।।१४।। इन पूज्यों के चरण का, लेकर मैं आधार । सूरि 'सुशील' काव्य रम्य, रचना हित तैयार।।१५।।
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