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भूमिका
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जिनागम अनुत्तर अहो ! सरवर शोभा जलज की, अरु भूषण की रत्न। मुनिवर शोभित सूत्र से, शोभित भाग्य प्रयत्न।।११९ ।। सूत्र रसायन पीजिए, गुरु आज्ञा अनुसार । भव बाधा से मुक्त हो, कहते श्री अणगार ।।१२० ।। लोक सुखी आगम करे, तीनों ताप विनष्ट । महा मोह दुख छिन्न हो, पाते भाव प्रकृष्ट ।।१२१ । । जैनागम दर्पण कहो, दोष दिखें निज रूप। मनवांछित शिवफल मिले, कल्पवृक्ष अनुरूप ।।१२२ । । दुर्लभ वाचन सूत्र का, महत् पुरुष संयोग। अवसर यह कलिकाल में, मिलें पुण्य के योग ।।१२३ । । मुनि 'सुशील' गुरुवर कृपा, जैनागम अभ्यास। तत्त्वरत्न कर प्राप्त हो, जिससे ज्ञान प्रकाश ।।१२४।। कहते श्रमण 'सुशील' यह, आगम नौका जान। आत्मवान आरूढ़ हो, पायें मोक्ष महान।।१२५ । । राका रजनी में उदित, पूर्ण इन्दु राकेश। अन्य शास्त्र उडगण सरिस, मिटे न तम का लेश।।१२६ ।। सर्वकाल में एक रस, जिनवाणी प्रभु वीर। अर्थ भाव जानें वही, जो हैं मति के धीर।।१२७ ।। जैनागम साधन बिना, मोक्ष प्राप्त कब होत । महासिंधु आवागमन, पार कहाँ बिन पोत ।।१२८।। जिनवाणी है मातु-सम, पकड़े उँगली बाल। माता का वात्सल्य ही, करता सदा सँभाल ।।१२९ ।।
निष्कलंक आगम शशी, घट-बढ़ कभी न होइ। ___घटता-बढ़ता चन्द्र है, मावस जाता खोइ ।।१३० ।।