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- श्री आचारांगसूत्रम् -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.
जिनागम चक्षु बोध तजकर सूत्राभ्यास अब, मुनिवर पढ़ते मन्त्र। बिछा रहे श्रीसंघ में, मनमाने षड्यन्त्र ।।५९ । । आगम की आशातना, करे मूढ़ दिन-रात। भव-भव में दारिद्रय दुख, करता आतम घात ।।६० ।। स्वच्छन्द यदि आगम पठन, कहलाये मिथ्यात्व। गिर जाते भव गर्त में, मिले न आतम सत्व।।६१।। बिना अश्व के रथ कहाँ, घोड़ा बिना लगाम । जैनागम के ज्ञान बिन, मुनि जीवन बेकाम।।६२ ।। आगम का अध्ययन रहे, बिन चिन्तन बेकार। जैसे हों जन्मान्ध को, दीपक व्यर्थ हजार ।।६३ ।। अरे अगर इस जन्म में, लिया न आगमज्ञान। स्तन बकरा कंठ सम, निष्फल जीवन जान।।६४।। आगम रूपी चक्षु बिन, कहलाये मुनि अन्ध। देव-गुरू जिन धर्म का, मर्म न जाने मन्द।।६५ ।। यदि कानों में नहिं पड़े, जिन आगम उपदेश। उनका नर भव व्यर्थ है, भूतल भार विशेष ।।६६ गिर जाओगे नरक में, होगा नहीं बचाव। जिनवाणी से दूर यदि, सच्चा है प्रस्ताव।।६७ ।। आम न भावै काग को, खर मिसरी कब खाय। ज्यों जैनागम मूढ़ भी, करता कब स्वाध्याय।।६८।। जिन आगम कुछ अंश पर, अगर नहीं श्रद्धान। मूढ़ भाव का जीव वह, भव-भव में हैरान।।६९।। वर्तमान में कर रहे, आगम वाद-विवाद। इसीलिए तो हो रहा, जिनशासन बरबाद।।७० । ।