Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 01
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ अबंभ 679 - अभिवानराजेन्द्रः - भाग 1 अबज्झ विसालमंसलसुबद्धजहणवरधरीओ वज्जविराइयप-सत्थलच्छणनिरोदरीओ, तिवलिवलिततणुनमित-मज्झमाओ, उज्जुयसमसहियजच्चतणुकसिणनिद्ध आदेजलडहसुकुमालमउयसुविभत्तरोमराई, गंगावत्तगदाहिणावत्ततरंगभंगरविकिरणतरुणबोहित अकोसायंतपउम-गंभीरविगडनाभी, अणब्महपसत्थसुजायपीणकुच्छी, समंत-पासा, सन्नयपासा, सुजायपासा, मियमायितपीणरयियपासा, अकरंडुयकणगरुयगनिम्मलसुजायनिरुवहयगायलट्ठी, कंचणकलसप्पमाणसमसं हितलहचुचुयआमेलगजमलजुयलवट्टियपओहरा, भुयंगअणुपुव्वतणुयगोपुच्छवट्टसम-सहितनिम्मिय आदेजलडहबाहा, तंबनहा, मंसलग्गहत्था, कोमलपीवरंगुलीया, णिद्धपाणिलेहा, ससिसूरसंखचक्क वर-सोत्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा पीणु ण्णयक क्खवत्थिप्पदे सपडि पुण्णगलक पोला, चउरंगुलसुप्पमाण कंबुवरसरिसगीवा, मंसल संठियपसत्थहणुया, दालिमपुप्फप्पकासपीवरपलंबकोंचियवराधरा, सुंदरोत्तरट्ठा, दहिदगरयकुंदचंदवासंतिमउलअच्छिद्दविमलदसणा, रत्तुप्पलरत्तपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा, कणवीरमउलकुडिलअन्मुण्णयउज्जत्तुंगनासा सारदनवकमलकुमुयकु वलयदलनिगरसरिसलक्खणपसत्थनिम्मलकंतनयणा, अनामियचावरुइलकिण्हराइसंगयसुजायतणुक सिणनिद्धभूमगा, अल्लीणपमाणजुत्तसवणा, सुस्सवणा, पीणमट्ठगंडलेहा, चउरंगुलविसालसमनिडाला, कोमुदिरयणिकरविमलपडिपुण्णसोमवयणा, छत्तुण्णयउत्तमंगा, अकविलसुसिणिद्धदीहसिरया। छत्तज्झयजुवथूभदामणिकमंडलुकलसवाविसोत्थियपडागजवमच्छकुम्मरहवरमयरज्झयअंकथालअंकुसअट्ठावयसुपतिद्वअमरसिरियाभिसेयतोरणमेयिणिउदधिवरपवरमवणगिरिवरवरायंससुललियगयवसभसीहचामरपसत्थबत्तीसलक्खणधरीओ, हंसस-रिच्छगतीओ, कोइलमहुयरिगिराओ, कंता सव्वस्स अणुमयाओ, ववगयवलीपलियवंगदुवण्णवाहिदो- | भग्गसोय-मुक्काओ, उच्चत्तेण य नरथोवूणसूसियाओ सिंगारागारचारु-वेसा, सुंदरथणजहणवयणकरचलणणयणा, लावण्ण-रू वजोवणगुणोववेया, णंदणवणछराओव्व उत्तरकुरुमाणु-सच्छराओ अच्छे रगयेच्छिणियाओ तिण्णि पलिआवेमाइं परमाउं पालयित्ताओ वि उवणमंति मरणधम्म अतित्ता कामाणं। मेहुणसन्नपगिद्धाय मोहमरिया सत्थेहिं हणंति एकमेकं विसयं विसउदीरएहिं अवरे परदारेहिं हणंति विसुणिया धननासं सयणविप्पणासं च पाउणंति, परस्स दाराओ जे अविरया मेहुणसण्णसंपगिद्धा य मोहमरिया अस्सा हत्थी गवाय महिसा मिगा य मारिंति एक्कमेकं मणुयगणा वानरा य पक्खी य विरुझंति मित्ताणि खिप्पं भवंति, सत्तू समयधम्मगणे य भिंदंति पारदारी धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उलोट्टयचरित्ताओ जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं रोगत्ता वाहिता वड्डति रोयवाही, दुवे य लोएदुराराहगा भवंति, इहलोए चेव परलोए परस्स दाराओ जे अविरया तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य एवं० जाव गच्छंति विपुलमोहामिमूयसण्णा मेहुणमूलंच सुव्वएतत्थ तत्थ वत्तपुव्वा संगामा जणक्खयकरा सीताए दोवतीए य कए रूपिणीए पउमावतीए ताराए कंचणाए रत्तसुभद्दाए अहिल्लायाए सुवण्णगुलियाए किन्नरिए य सुरूवविजुमतीए रोहिणीए य अण्णेसु य एवमाइसु बहवे महिलाकए सुवति अतिकंता संगामा गामधम्ममूला, इह लोए ताव नट्ठा, परलोए य नट्ठा, महया मोहतिमिरंधकारे घोरे तसथावरसुहुमबायरेसुपज्जत्तमपज्जत्तकसाहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु य अंडजपोयज-जराउजरसजसंसेइमसमुच्छिमउब्मिजउववाइएसु य नरगतिरियदेवमाणुसेसु जरामरणरोगसोगबहुले पलिओवम-सागरोवमाइं मणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटुंति जीवा महामोहवससंनिविट्ठा। एसो सो अबंभस्स फलविवागो इह लोइओ परलोइओ य अप्पसुहो बहुदुक्खो मदन्मओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुचंति, न य अवेयइत्ता अत्थिहुमोक्खो त्ति / एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो वरवीरनामधेजो कहेसी य अबंभस्स फलविवागो, एयं तं अबभं पि चउत्थं पि सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स पत्थणिजं, एवं चिरपरिचियमणुगयं दूरंतं चउत्थं अहम्मदारं सम्मत्तं त्ति बेमि। (तं च पुण निसेविति ति) तच पुनरब्र हा निषेवन्ते सुरगणा वैमानिकदेवसमूहाः साऽप्सरसः सदेवीकाः, देव्योऽपि सेवन्त इत्यर्थः (इत्यादिटीकाऽनुपयोगिनी महती चेत्युपेक्षिता) प्रश्न०४ आश्र० द्वा० शेषद्वारद्वयं मध्य एवासातम्। अब्रह्म मैथुनमितिपर्यायौ। (मैथुनशब्देन चोच्यमानो विषयो 'मेहुण' शब्द एव वक्ष्यते) "अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं / नायरंति मुणी लोए, भेयापणविवजणे" ||1|| दश०६ अ० अब भवजण-न०(अब्रह्मवर्जन) दिवा रात्रौ वा पत्न्याद्याश्रित्य मैथुनत्यागरूपायां षष्ठ्यामुपाससकप्रतिमायाम, तत्स्वरूपं प्रश्न०१ आश्रद्वा०। ('उवासगपडिमा' शब्दे द्वितीयभागे 1105 पृष्ठे व्याख्याऽस्य द्रष्टव्या) अबज्झ-त्रि०(अवध्य) वधमर्हति यत्। न० त० / वधानर्हे, "अक्माणयं बज्झाणं' अकारलोपे 'बज्झाणं' इति भवति / तत्र अवध्यानां वधानहर्हाणामपि विद्वेषिवचनतो वध्यत्वेनस्थापितानां सुदर्शनसुजातादीनामिव देवताप्रातिहार्यतो निराकृतवध्यत्व-दोषाणाम् / संथा०।

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