Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली भाग पहेलो. आ ग्रंथमां स्तवन, प्रजातियां, लावणीयो, सकायो, नेमीश्वर जगवाननो नवरसो, दानशील. तप जावनुं चोढालीयुं तथा प्रास्ताविक कवितादि घणा रसिक ग्रंथोनो समावेश करयो बे.. ( चोथीवृत्ति. ) तेने सम्यग्दृष्टि सनोने जणवा वांचवा साह श्री मुंबईमां श्रावक जीमसिंद माणके निर्णयसागर नामक छापखानामां छपाव्यो छे. संवत् १९६४ सन १९०७. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M MM Mor mrm अनुक्रमणिका. क्रमांक. पृष्टांक. १ सकलकुशलवबी, काव्यं. .... २ श्रीसीमंधर वीतराग, थोय. .... ३ पद्मप्रन ने वासुपूज्य, चैत्यवंदन. ५ सेवो पास संखेसरो मन्न शुढे, बंद. .... ५ श्रीशजय सिझदेत्र, चैत्यवंदन. .... ६ श्राज देव अरिहंत नमुं, चैत्यवंदन. ७ पास संखेसरा सार कर सेवका. .... ७ चालोने प्रीतमजी प्यारा शेर्बुजे जयें. ए जाग जाग रयण गई नोर नयो प्यारे. १० तुंही नाथ हमारो रे जिनपति. .... ११ मेरे ए प्रनु चाहियें. .... .... १२ देव निरंजन नवनयनंजन. .... ..... १३ में परदेशी दूरका प्रज्जु दर्शनकुं श्राया. ..... १४ श्राज तो वधाइ राजा नानिके दरबार रे...... १५ हारे तुंतो नजर मेहेरदी करना वे. ..... १६ में मुख देख्यो गोडी पारसको.. १७ कृपा करो रे गोडी पास जिनेसर. 33s » » » Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक ( 2 ) १० मुजरा साहिब मुजरा साहिब. १५ लागी तेरे दर्शकी खुमारीयां. २० घंट बाजे घननननन. २१ निरंजन साहिबा रे० २२ ऐसे सेहेर बिच कौन दीवान हे वो. २३ प्राय रह्यो दिलबागमें. २४ रहो रहो रे जादव राय दो घमीयां. २५ बिराजो बंगले में. .... २६ किने देखा हमारा स्वामी. २७ कुंकुमने पगले पधारो राज२० जूवो मोरी सहीयरो दीपे. २७ मुंगर प्यारो रे में मोतीडे वधावं रे ३० तारंगानी ट्रंके मूकुं मान गुमान. ३१ लेता जार्जरे सामलिया बीडी पाननकी. ३२ धन धन मंगल ए रे सकल दिन. ३३ महारे दीवाली रे थइ आज. ३४ माहारुं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचलें रे. ३५ नवि प्राणी रे सेवो, सिद्धचक्र. ३६ श्रवधू सो जोगी गुरु मेरा. ३७ वधू एसो ज्ञान विचारी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only पृष्टांक. J... .... **** 02/22/ ܐ १० १० ११ ११ १२ LY BY M १२ १२ १३ १३ १४ १५ १५ १६ 22 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक. (३) पृष्टांक. ३० बेर बेर नही आवे अवसर. .... .... १७ ३एमनुप्यारा मनु प्यारा. ४० ए जिनके पाय लाग रे तुने कहियें केतो. १॥ ४१ हारेप्रनु नज ले मेरा दील राजी. .... ४२ महोटी वहुयें मन गमतुं कीg. ४३ न्हांनी वहुने परघर रमवानो ढाल. .... ४४ हारे चित्तमें धरो प्यारे चित्तमें धरो. .... ४५ बलिहारी जाणं वारी महावीर तारी. ४६ चेतन ज्ञानकी दृष्टि निहालो. .... ४७ अजबगति चिदानंद घनकी. ... ४७ परम प्रनु सब जन शब्दे ध्यावे. ४ए चेतन जो तुझान अन्यासी. .... ५० जीउ लाग रह्यो परनावमें. ५१ पीउजी मोहे दरिसन दीजियें रे. ५५ तो बिना उर न जाचं जिणंदराय. ५३ या गति कौन हे सखी तोरी. ५४ देखतही चित्त चोर लीयो हे..... ५५ जिन तेरे चरन सरन ग्रहु. ५६ षन देव हितकारी जगद्गुरु० ५७ पांचो घोरा रथ एक जुत्ता. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक. ( ४ ) पृष्टांक. २७ ३० ५० अजब तमासा एक जास्या. ५० परम गुरु जैन कहो किम होवे. ६० में किनो नहीं तो बिनुं उरसें राग. ६१ सुखदाइ रे सुखदाइ दादो पासजी सुखदा. ३१ ६२ अब में सच्चो साहिब पायो. ३१ ३१ .... ६३ जब रूप जिनजीको, तुम देखो माइ. ६४ पवनको करे तोल गगनको करे मोल६५ हम मगन जये प्रभु ध्यान में. ६६ वधू निरपक्ष विरला कोइ. ६० वधू खोल नयन अब जोवो. ६० चालनां जरूर जाकुं ताकुं कैसा सोवनां. ६० मारग साचा कोन न बतावे ...... 90 जाग विलोक निज शुद्धता स्वरूपकी ३७ ७१ विषय वासना त्यागो चेतन० ३६ .... ३७ ३८ ३ 2 अनुभव मीत्त मिलाय दे मोकुं. ७३ जूठी जगत्की माया जिने जाणी. १४ बोल मत पिया पिया. ७५ हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत नीत. १६ समज परी मोहे समज परी...... 99 समता सुखवास यास दास तेरो पावे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only .... .... ३३ ३३ ३४ ३५ ३५ ३६ ३७ ३७ ४० ४१ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) .... ४३ ECE क्रमांक. पृष्टांक. जज तेरे चरण कमलसें लगी महाराज मेरी श्रा०४१ पए अंगके कमाये धनकी आशा कैसी करनी. ४१ ७ लग रही तुम दर्शनकी मुऊ मन श्राश रे. ४२ ७१ जिनदास जूगे रे जूगे. ...... .... ४५ २ समर जीया श्री नवकार. ३ अंतर मेल मिट्यो नही मनको. .... ४३ ४ न हरियालो हुंगर प्यारोण .... ज्य मेरो मन लागी रह्यो. .... ७६ राजुल पोकारे नेम पिया ऐसी क्या करी. ४५ ७ प्रजुजीको दरिसन पायो री आज में. .... ४५ ७ क्या जरोंसा तनका अवधू क्या. .... ४५ जए दरवाजा नोटा रे निकल्या सारा जग० ४६ ए कौन किसीको मित्त जगत्में कौन .... ४६ ए१ श्री जिन पास दयालसें लगा मेरा नेहरा. ४७ एए बाजत रंग बधाइ नगरमें बा० .... ४७ ए३ मा रे में तो प्रजुजीसें प्रीत करी. .... ४७ ए४ जलांजी मेरो नेम चल्यो गिरनार. .... ४ ए५ श्रीपास प्रनु साहेब मेरे .... ए६ हो राज जीजु थारे छारें .... ४ए ए आदीसर जिनराज, ..... ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only .. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक ( ६ ) पृष्टांक. ए रसना सफल जइ, में तो गुन गाये महाराज. ५० गोमी गाइयें मन रंग. այ ૫૩ १०० हांरे हुंतो मोही रे लाल जिन मुखडाने म० ५१ १०१ महाराजा बिन कैसें काज सरे. १०२ प्रजुजीसें लगो मारो नेह. १०३ होजी महाराज सरग सोहे राखो. ५२ ५२ ५२ ५३ ५३ ५४ १०४ राजरी बधाइ बाजे बे. १०५ रे जीव जिनधर्म कीजियें. १०६ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ. १०७ राजुल कहे नाथ गये साथ परिहरी. १०० पिया गिर चले गये रे. १०० गजरो चडाउं रे मारा धुलेवा धणीने. ५४ ११० जिनराज नाम तेरा राखुं रे हमारे घटमें. ५५ १११ आजकी यगी जोर बनि. ५४ Սա ११२ मिलावनां मिलावनां मिलावनां. મુદ્દ ५६ ११३ समेत शिखर चालो जश्यें मोरी सजनी. ५६ ११४ जज ले मनुवा गोकी पारसकूं. ११५ तुं जगमांहे दीवो प्रभुजी ११६ पारस नाथ आधार प्रभु मेरो० ११७ जब ज्योति मेरे जिनकी ૫૬ ขิง ५७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only .... .... .... **** Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) क्रमांक. १९० कर कर कर कर कर कर करने, ११७ चेतन काची रे मट्टीका डेरा..... १२० प्रभु पास चिंतामणि मेरो. १२१ चंद्र प्रभुजी सें ध्यान रे० १२२ मारो मुजरो मानीने लीजें रे. १२३ पास प्रभु जिनराया हो दिल जाया मेरानाइ५० १२४ करूं सलाम आज हर्ष हैयामां० १२५ ते मुक्त पुर गये रहे रे. १२६ थें पीयाजी मत चालो थाने अरज करूँ० १२७ बिसर मत नाम जिनंदजी को. १२० देखो रे जिणंदा प्यारा. पृष्टांक ५७ ԱՄ ԱՄ ՎԵ ԱԽ **** **** 9000 ६० ६० ६१ ६१ ६२ ६२ १२० मुने वालो लागे बे जिन राजरो देदार.... १३० मुरत मोहनगारी जिनंदा तोरी मूरत... ६‍ १३१ नाजि राजा घर जाइ सब मिल देत वधाइ ६‍ १३२ खतरा दूर करनां दूर करनां..... १३३ पानी में मीन पियासी रे. १३४ जिनसें प्रीत लागी लागी मोरी जिनसें० ६३ १३५ में तो तोरी आजही महिमा जाणी. १३६ शियल नित पालो प्राणी. १३७ शांति जिनेसर साहिबा रे. ६३ .... ६४ ६४ ६४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only **** .... प **** Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... ६५ क्रमांक. (७) १३० प्रजुजी मोरी नैननमें बसरो. _.... ६५ १३ए जिनजीसें हमारी लगन लगी. १४० बबिहारी जाउं वारी महावीर तारी. .... ६५ १४१ बंदा तुं क्युं नूले श्री जिनवरको नाम..... ६६ १४५ कोण करे जंजाल जगमें जीवनां थोमा..... ६६ १४३ फरसे रे महाराज आज राजरिक पाई. ६६ १४४ रीत सर्वथी न्यारी होजी तुमारी. .... ६७ १४५ आंखडली अणीयाली होजी तमारी. .... ६७ १४६ मुखमलाने मटके होजी तमारा. .... ६७ १४७ मूरतीय मनहुं लोनाएं होजी तमारी. .... ६७ १४७ धन धन रे दीवाली मारे आजुनी रे..... ६७ १४ए धन धन रे चोघडियुं मारे आजनुं रे. ६॥ १५० धन धन पाजनो दिन रलीयामणो रे. ६॥ १५१ मारे बाज आनंद वधामणां रे. .... ७० १५२ सवा लाख टकानी जाये एक घमी. .... ७० १५३ चेतन तुं क्या करे यारी. . १५४ नगर नरेसर रूगे, खान सुलतान रूगे. ७१ १५५ अगडहुं अगडई बाजे चोघमा. १५६ नेमनाथ मोरी अरज सुनीजें. ....... ७५ १५७ जिनदासजी कृत घन दश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक. पृष्टांक. १५७ चल चेतन अब उठ कर अपने .... ७ २५ए तुम जजो जिनेसर देव, मुक्तिपद पाइ. पुए १६० कब देखुं जिनवरदेव जगद्गुरु ग्यानी. १ १६१ एक जिनवरका निज नाम हियामें लेना. ७२ १६२ खबर नहि या जुगमें पलकी रे. .... ७३ १६३ हां रे तुंकुमति कलेसण नार लगी क्युं केडे.७५ १६४ तुम तजो जगत्का ख्याल इसकका गानां. ७६ १६५ तजो काम मद मान लाल, जिनवर ... ७ १६६ अगमपंथ जानां हे ना, अगमपंथण .... नए १६७ दे गया दगा दिलदार सुनो मेरी माश् .... एस १६७ श्री आदिनाथ निर्वाणी नमुं एसे .... ए१ १६ए मुलक बिच मगसी पारसका बाज रह्या मंकाए३ १७० सुणजो बातां राव सदाशिव, मत चमजानांए। १७१ कीजें मंगलचार, आज घरे नाथ पधास्या. एए १७२ चारो मंगल चार आज मारे चारो मंगल एए १७३ दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो. १७४ पहेली रे आरति प्रथम जिणंदा. १७५ जय जय श्रारति देवी तुमारी. १७६ नेमनाथजीनो नवरसो. .... १४७ दान, शियल, तप, जावनानुं चोढालीयु. १०५ .... एन .... एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक (१०) पृष्टांक. १७७ श्री शीतल जिन स्तवन. .... .... ११७ १७ए पराधीनता विषे दोहा आठ. .... ११७ १७ अकल विषे दोहा तथा अरिब बंद. ..... ११७ १७१ गुण विषे दोहा आठः १२ स्त्रीना गुणदोष विषे १३३ दोहादि. १०३ श्रीअलाची कुमारनी ससाय १३५ १४ श्रीरात्रि जोजननी सजाय १५ श्रीपर्युसण पर्वनी सजाय १०६ श्रीमेघरथ राजानी सकाय १७ श्रीकामकंदर्पनी सकाय १ श्रीवैराग्यनी सजाय १७ए शीखामण कोनेापवी ते विषे सकाय .... १ए० श्रीअध्यात्म सजाय १३६ ..... १३० २४४ yu Jain Educationa International For Personal and Private Use Only For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ स्तवनावली प्रारंजः ॥ मङ्गलम् ॥ सकलकुशलवजी पुष्करावर्त्तमेघो, 3 रितति मिरजानुः कल्पवृदोपमानः ॥ जवजलनिधि पोतः सर्वसंपत्तिहेतुः, स नवतु नवतां जो श्रेयसे शांतिनाथः (श्रेयसे पार्श्वनाथः) ॥१॥ २ अथ सीमंधर जिन चैत्यवंदनं ॥ श्री सीमंधर वितराग, त्रिजुवन उपगारी ॥ श्री श्रेयांस पिताकुले, बहु शोना तुमारी ॥१॥ धन धन माता सत्यकी, जिन जायो जयकारी ॥ वृषन लंडने विराजमान वंदे नरनारी ॥२॥ धनुष पांचशे देहडी ए, सो हिये सोवन वान ॥ कीर्ति विजय उवकायनो, विनय धरे तुम ध्यान ॥३॥ ३ अथ चोवीश जिननं चैत्यवंदनं॥ पद्मप्रन ने वासुपूज्य, दोय राता कहीये ॥ चंधन ने सुविधि नाथ, दो उज्ज्वल लहीये ॥१॥ महिनाथ ने पार्श्व नाथ, दो नीला निरखा ॥ मुनिसुव्रत ने नेमनाथ दो अंजनल रिखा ॥२॥ शोले जिन कंचन समा ए, एवा जिन चोवीश ॥ धिरविमल पंमित तणो, झान विमल कहे शिष्य ॥३॥ इति ॥ ४ अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वजिन बंद ॥ सेवोपास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) संखेसरो मन्न शुझें, नमोनाथ निश्चें करी एक बुझे। देवी देवलां अन्यने शं नमो बो, अहो नव्यलोको जुला कां नमो डो॥१॥त्रण लोकना नाथने शुतजो बो, पड्या पाशमां नूतने कां जजो बो॥सुरधेनु बंमी अजा शुं अजो बो, महा पंथ मूकी कुपथें व्रजो को ॥२॥ तजे कोण चिंतामणि काच माटें, ग्रहे कोण रासजने हस्ति साटें ॥ सुरसुम उपाडी कुण श्राक वावे, महामूढ ते श्राकुला अंत पावे ॥३॥ किहां कांकरो ने किहां मेरुशृगं, किहां केसरी ने किदां ते कुरंग॥किहां विश्वनाथं किहां अन्य देवा, करो एक चित्तें प्रजुपास सेवा ॥४॥पूजो देवप्रजावती प्राण नाथं, सहु जीवने जे करे ने सनाथं ॥ मनोतत्त्व जाणी सदा जेह ध्याये, तेनां कुःख दारिख दूरे प लाये ॥५॥ पामी मानुखो ने वृथा कां गमो बगे,कु शीलें करी देहने का दमो बोनहि मुक्तिवासं विना वीतरागं, नजो जगवंतं तजो दृष्टिरागं ॥६॥ उदय रत्न नाखे सदा हेत आणी, दया जाव कीजे प्रजुदास जाणी ॥ आजे माहरे मोतिडे मेह वूग, प्रनुपास शंखेश्वरो आप तूग ॥७॥इति ॥ ५ अथ श्रीशत्रुजय चैत्यवंदनं ॥श्रीशत्रुजय सिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) क्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे ॥ जाव धरीने जे चढे, तेने जव पार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिद्धनो ए ठाम, स कल तीर्थनो राय ॥ पूर्व नवाणुं रिखजदेव, ज्यां व विया प्रजु पाय ॥ २ ॥ सूरजकुंम सोहामणो, कविम जक्ष अजिराम ॥ नाजिराय कुलमंगणो, जिनवर करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ ६ अथ पंचतीर्थी चैत्यवंदनं ॥ श्राज देव अरिहंत नमुं समरुं तारुं नाम ॥ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजय श्री श्रादिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्री अजितनाथ, आबू रिखन जुहार ॥ २ ॥ श्रष्टापद गिरी ऊपरे, जिनचो वीशी जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं नरते नरात्री सोय ॥ ३ ॥ समेत शिखर तीरथ वहुं, ज्यां वीशे जिन पाय ॥ वैजारकगिरि ऊपरे, वीर जिनेश्वरराय ॥ ४ ॥ मांडव गढनो राजियो, नामे देव सुपास ॥ रिषन कहे जिन समरतां, पहोचे मननी यश ॥५॥ ॥ श्रथ प्रजातिसमुदाय ॥ " १ पास संखेसरा सारकर सेवका, देव कां एवमी वार लागे । कोमि कर जोमी दरबार आगे खमा, ठाकुरा चाकुरा मान मागे ॥ पा०॥ १ ॥ प्रगट था पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) सजी मेलि पडदो परो, मोम असुराणने श्राप बोमो॥ मुक महिराण मंजूसमां पेशीने, खलकना नाथजी बंध खोलो ॥ पा ॥२॥ जगत्मां देव जगदीश तुं जागतो, एम शुं श्राज जिनराज जंघे ॥ महोटा दाने श्वरी तेहने दाखीये, दान दे जेह जगकाल मूंघे ॥ ॥पा० ॥ ३॥ नीम पमी जादवा जोर लागी जरा, ततकण त्रीकमें तुक संजास्यो ॥ प्रगटि पातालथी पलकमां तें प्रजु, जक्तजन तेहनो जय निवास्यो । ॥पा॥४॥ श्रादि अनादि अरिहंत तुं एक बे, दीन दयाल डे कोण दूजो ॥ उदयरतन कहे प्रगट प्रनु पासजी, पामि जयनंजनो एह पूजो ॥ पा ॥ ५ ॥ चालोने प्रीतमजी प्यारा शेजे जश्य, शेजेजे जयरे स्वामी शेजे जश्यं ॥ चालो ॥ एत्रांकणी॥ शुं संसारें रह्या बो मूजी, दिनदिन तन बीजे॥ाथ आजनी बाया सरखी, पोतानी कीजें ॥ चा ॥१॥ जे करवं तेपदेला कीजें, काझे शी वातो॥अणचिंतवी तो श्रावी पमशे, सबलानी लातो ॥ चा० ॥२॥ चतुरा ईशुं चित्तमां चेती, हाथे तेसाथे॥ मरण तणां नीसा णां महोटां, गाजे माथे॥ चा॥३॥ मोता मरुदेवा नंदन निरखी, नव सफलो कीजें ॥ दानविजय सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेबनी सेवा, ए संबल लीजें ॥ चा०॥४॥ इति ॥ ३ जाग जाग रेण गश्, नोर नयो प्यारे ॥ पंचकुं प्रपंच कर, वश कर यारे ॥ जाग जाग रेण गश्नोर जयो प्यारे॥१॥ ए आंकणी ॥ तृष्णामें मीन मरे, नोग में मत्तंगा, श्रवणमें कुरंग मरे, नयनमें पतंगा॥ जा० ॥२॥ वासनामें चमर मरे, नासा रस लेतां॥ एक एक इंजीसंगे, मरे जीव केता ॥ जा० ॥३॥ पंचके पड्यो तुं फंद, क्युं करि वश श्रावे ॥ मार तुं मन श्वानूत, ज्युं निरंजन पावे ॥ जा ॥४॥ ४ तुंह नाथ हमारो रे जिनपति, तुंहि नाथ ह मारो॥ योग खेमंकर नविक सकलके, सेवक हश्या मांहे धारो रे ॥ जितुं० ॥१॥ए आंकणी ॥जो गुन पाए नही सो मिलावत, पाए गुनकू सुधारो॥अननि राम कलिमल करो दूरे, अब मोहि पार उतारो रे॥ जि० ॥ तुंग ॥२॥ त्रिजुवन नाथ सार करो मोरी, करुणा नजर निहालो॥ पास चिंतामणि जानुचंदकी, एह विनति अवधारो रे ॥ जि० ॥ तुं ॥३॥ __५ मेरे ए प्रनु चाएं, नित जति दरिसण पाऊं। चरणकमल सेवा करूं, चरणे चित्त लाऊं ॥ मेरे ॥ ॥१॥ मन पंकजके महेलमें,प्रजुपास बेगऊं । निप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ट नजीक में दुश् रहुँ, मेरो जीव रमाऊं ॥ मेरे ॥ ॥२॥ अंतरजामी एक तुं, अंतरिक गुण गाऊं ॥श्रा नंद कहे अनुपासजी, कबु उर न चाहुँ ॥मेरे ॥३॥ ६ देव निरंजन नवजय जंजन, तत्त्वज्ञानका द रीया रे ॥मति श्रुत अवधि ने मनःपर्यव, केवल ज्ञा ने जरीया रे ॥ देव ॥१॥ काम क्रोध मोह मछर मारण, अष्ट करमकू हणीया रे ॥ चारो नारी दूर निवारी, पंचमी सुंदरी वरीया रे ॥ देव ॥२॥ दरिस ण झान एकरस जाकू, कीरोदधि ज्युं नरीया रे॥ रूपचंद प्रनु नामकी नावा, जो बेग सो तरीया रे॥ देव० ॥३॥ ७ में परदेशी पूरको, प्रजुदरसणकू आयो ॥ ला ख चोरासी देश नम्यो, तोरो दरिसण पायो ॥में॥ ॥१॥ सूदम बादर निगोदमां, वनस्पती बनायो । पुढवी आज तेज वाऊमां, काल अनंत गमायो॥में॥ ॥२॥ वर्ग नरक तिर्यंचमां, केता जन्म गमायो॥ मनुष्य अनारजमें जम्यो, तिहां नहिं दरिसण पायो॥ में ॥३॥ तेरो मेरे दरिसण अब जयो, पूर्ण पुण्य पसायो ॥ रूपचंद कहे जाग्य खुले, नीरंजन गुण गायो । में ॥४॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G आज तो वधाइ राजा, नानिके दरबार रे ॥ मरुदेवीयें बेटोजायो, रीखन कुमार रे॥श्राज तो॥ ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ अयोध्यामें उछव हुवे, मुख बोले जयकार रे ॥ घननननन घंट बाजे, देव करे थैकार रे ॥ आज ॥२॥इंशाणी सब मंगलगावे, लावे मोती माल रे ॥ चंदन चरची पाये लागे, प्रजु जीवो चिरकाल रे ॥ श्राज॥३॥ नाजिराजा दान ज देवे, वरसे अखंग धार रे॥गाम नगर पुर पाटण देवे, देवे मणि नंमार रे॥ आज ॥४॥ हाथी देवे साथी देवे, देवे रथ तोखार रे ॥ हीर चीर पीतांबर देव, देवे सवि शणगार रे॥श्राज० ॥ ५ ॥ तीन लोकमें दिनकर प्रगट्यो, घर घर मंगलमाल रे॥ केव लकमलारूप निरंजन, आदीश्वर दयाल रे|आज॥६॥ ___ हारे तुतो नजरमहेरदी करनां वे ॥ टेक ॥में हूं अधम पापकी मूरत, मेरा दोष न धरना वे ॥ हारे ॥१॥ अष्ट जवंतर में नेह कीनो, नवमें जव निनावनां वे॥ हारे ॥२॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, आवागमन निवारनां वे ॥ हारे ॥३॥ ॥अथ स्तवनसमुदाय ॥ १ केरबो॥में मुख देख्यो गोमी पारसको, मेरो सफल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) नयोजी दिन आज ॥आजरे में मुख देख्योगोमीपारस को । मेरो० ॥ टेक ॥ अन्यदेवनकू बहूत में धायो, तो ए न सस्योजी मेरो काज ॥जरे॥१॥नव ज व जटकत शरणे हुं श्रायो, अब तो रखो मोरी ला ज ॥आज रे० ॥२॥ कम हरावन नागकू तारन, संजलाव्यो नवकार ॥ आज रे० ॥३॥ रूपचंद क हे नाथ निरंजन, तारण तरण जहाज॥जलाजी तुम तारण तरण महाराज ॥ श्राज रे ॥४॥ इति ॥ किरपा करो रे गोमी पास जिनेसर, तुम स्वामि अं तरजामी ॥ टेक ॥ जंचे उंचे गढपर पासजी बिराजे, चारे तरफ ज्ञानी ध्यानी ॥ किरपा ॥ १ ॥ नील वरण तोरो अंग बिराजे, बदनोंकी जाउं बलिहारी ॥ किरण ॥२॥ बांहे बाजुबंध बहेरखा बीराजे, कुं मलकी बबि हे न्यारी॥किरण॥३॥ ढूंढत ढूंढत में प्र नु पायो, पूरण पदवी अब पाइ॥ किराधानाथ नि रंजन नाम तुमारूं, रूपचंद पदवी पाश्॥किरण ॥५॥ ___ ३ मुजरा साहेब मुजरा साहेब,साहेब मुजरा मेरा रे ॥ टेक ॥ साहेब सुविधि जिनेसर प्यारा, चरण पखालुं प्रजु तेरा रे ॥मुजरा०॥१॥ केशर चंदन चरचूं अंगे, फूल चढावं सेरा रे ॥मुजरा ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंट बजावं ने अगर उखेवू, करं प्रदक्षिणा फेरा रे॥ मुजरा ॥३॥ पंच शब्द वाजिब बजावू, नृत्य करूं अधिकेरां रे ॥ मुजरा० ॥४॥ रूपचंद गुण गावत हरखत, दास निरंजन तेरा रे ॥ मुजरा० ॥५॥ ४ लागी तेरे दरसकी खुमारीयां ॥ लागी तेरे॥ ॥ टेक ॥ नांग धतुरो मुने केफ न नावे, बिन के फे सुध बिसारीयां रे ॥ लागी ॥१॥ ग्यानके बा न जरी जरी मारे, मारी मोहे प्रेम कटारीयां रे ॥ लागी ॥२॥ तुं तुं करतां मगन जयो हे, रूपचं द पीया वारीयां रे ॥ लागी ॥३॥ __५ घंट बाजे घननननन, इंजलोक हरख जयो । जनमे वर्धमान कुंवर, वीतराग तनननन ॥ घंट॥ ॥१॥ मृदंग ताल गुण बिशाल, ऊलरी नाद जनन नन ॥ घंट० ॥२ ॥ रूपचंद रागरंग, होत ध्यान मगनननन ॥ घं० ॥३॥ ६ निरंजन सांईयां रे, सांश् मेरा टुकसा मुजरा लेत ॥ टेक ॥तुम हो तीरथका देवता रे, हम गिरि वरका मोर॥रुम जुम रुम जुम मेहला बरसे, कॉश्चम उम नाचे मोर ॥ निरंजन॥१॥ हम गुण काली को यली रे, प्रनु गुण श्रांबा महोर ॥ मांजरोंके जोरसें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) कांश करने लाग्या सोर ॥ निरंजन ॥५॥तुम हो अमर देवता रे, हम केसरका डोम ॥ कनक कचोली हाथमां, कांश पूजा करुं रंगरोल ॥ निरंजन ॥३॥ तुम हो मोतनकी लरी रे, हम गुण उमा जोर ॥ रूपचं दकी एही अरज हे, दिलनर दरिसनदोर ॥नि॥४॥ राग कल्यान ॥ ऐसे सहेर बिच कौन दीवान हे वो ॥ टेक ॥ पानीके कोट पवनके कांगरे, दश दरवाजे मंडान हे वो॥ ऐसे ॥१॥ पांच इंडीके त्रे वीस तस्कर, नगरकू करत हेरान हे वो ऐसे ॥२॥ प्रजा पोकार सुनी तब जाग्यो, चेतन राय सुजाण हे वो ॥ ऐसे ॥३॥ ज्ञानको बान वचन रस नेदे, हाथमें लाल कमान हे वो ॥ ऐसे ॥४॥ रूपचंद कहे तेने वारो, कुशमन मान गुमान हे वो॥ऐसे॥५॥ आय रह्यो दिल बागमें, सुन प्यारा जिनजी॥ ए आंकणी ॥ चुन चुन कलीयों तोरे चरणे चढावं, गुण अनंता तोरा रागमें ॥ सुन ॥ १॥ मरुदेवी नंदन आदि जिनेश्वर, खेल अनंता तोरा बागमें ॥ सुन० ॥॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, जीव विकसित बन फागमें ॥ सुन ॥३॥ ___ए रहो रहो रे जादवराय दो घमियां, दोय घ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) मीयां रे अब चार घमीयां ॥०॥ए आंकणी ॥प्रेमका प्याला बोहोत मसाला, पीवत मधुरी सेलमीयां ॥ ॥रहो॥१॥हाथशं हाथ मिला दीयो सांझ फुलडा बिडा सेजमीयां ॥ रहो ॥२॥राजुल बोडी चले गिरनारे, दीपत मोहन वेलमीयां ॥रहो ॥३॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, मुक्तिवधू गुण वेलमीयां ॥ रहो ॥४॥इति ॥ १० बिराजो बंगले में, बिराजो मंदीरमें, प्रजु गो मीचा हो पारसनाथ ॥विणा ए टेक॥चुवा चुवा चंदन और अरगजा, केसरमें गरकाव ॥ विणा १॥ रच्यो नीको प्रनुजीने नत्र बिराजे,मोतियमां तपेरे लिलाम ॥विणा॥ नवसागरमेंनी आइ पड्यो हे, बांहे पकड मुक तार ॥ बिण ॥३॥ रूपचंद कहे नाथ निरं जन, तरणतारण मुफ तार ॥ बि० ॥४॥ ११ कीने देखा हमारा स्वामी, स्वामीजी अंतर जामी रे॥कीने ॥ टेक॥ आठ जवकी प्रीति प्रका शी, नवमे गया शिवगामी रे॥कीने॥१॥ सहसाव नकी कुंज गलनमें,मल्या मुनेअंतरजामी रे॥कीने ॥॥ आप चले गिरनारकी ऊपर, नारी तारी केव ल पामी रे॥कीने॥३॥ कहे नथू प्रनु नेम नगीनो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) कहुं बरं आज शिर नामी रे ॥ कीने० ॥ ४ ॥ १२ राग सामेरो ॥ कुमकुमने पगले पधारो राज, कुम कुमने पगले ॥ टेक ॥ संसार बांगी संजम यादरवा, दान दीघां ढगले || पधारो० ॥ १ ॥ शिबिका देवी स इस पुरुषसें, प्रभु बेसी फरो सघले ॥ पधारो० ॥ ॥ वन जाइ प्रभु दीक्षा लीनी, उपजे ज्ञान चोथुं डगले ॥ ॥ पधारो० ॥ ३ ॥ करम खपावी केवल लीधुं, मोद पहोता तेतो एक मजलें ॥ पधारो० ॥ ४ ॥ नथु क ल्याण कहे चेतने तुं तो, एवा प्रभु जज ले ॥ प० ॥५॥ १३ जुवो मोरी सैयरो दीपे गोडीचाजी केवा रे ॥ टेक ॥ वरखमीये प्रभु आप बिराजो बाजे देवाधिदे वा रे ॥ जुवो० ॥ १ ॥ केशर चंदन जरी रे कचोलां, ने ली शुज गंध बरास रे ॥ जुवो० ॥२॥ श्रांगी रचो मो घर जासुलकी, पूजा करोने नव अंगें रे ॥ जुवो० ॥ ॥ ३ ॥ नथु कल्याण कवि दीपनो श्रावक कहे, श्रद्धा श्री समकित पावुं रे ॥ जुवो० ॥ ४ ॥ १४ मुंगर प्यारो रे ॥ में मोतीडे वधानं रे॥ टेक ॥ मुंगर फरसत पाप मिटत है, गिरि निरखत यानंद पाठं रे ॥ कुंगर० ॥ १ ॥ कांकरे कांकरे सिद्धा अनंता, यदि नाथ तथा गुण गाउं रे ॥ मुंगर० ॥ २ ॥ सूरज कुंम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) नाही निर्मल थश्ये, करी पूजा आंगी रचालं रे॥ ॥ मुंगर ॥३॥ हाथी पोलमें अरिहंतजीके देहरे, धरी निवेद नावना जाऊं रे ॥ मुंगरण ॥ ४ ॥ नथु कल्याण कवि दीपनो श्रावक कहे, शरधाथी सम कित पालं रे ॥ सुगरण ॥५॥ १५ तारंगानी टुंके मूकुंमान गुमानरे॥ताटेक॥ मूल नायकजी हो अजित जिनेश्वर, सोहे देहरु मेरु समान रे ॥ तारंगानी ॥ १ ॥ केसर चंदन अगर कपूर धूप, करें। पूजा वधारोनवान रे ॥ तारंगा ॥ ॥२॥ आंगी रचो पंच पुष्पावरणी, करणी करोने शुजध्यान रे ॥तारं ॥३॥ नथु कल्याण कवि दिपनो श्रावक कहे, मूकी मान गाउने ज्ञान रे॥तारं॥४॥ १६ लेता जाउ रे सामलीया बीडी पाननकी, बीमी पाननकी दील जाननकी रे ॥ लेता॥ टेक ॥ काथा रे चूना लविंग सोपारी, वारी तेरा दील जाननकी ॥ लेता ॥ १॥ ताल मृदंग शरणा सरोदा, बाजी बनी रंग ताननकी॥ लेता॥२॥ सहसावनकी कुंज गलनमें, लगी फरी शुन ध्याननकी ॥ लेता ॥ ॥३॥ कहे नथू प्रनु धर्म प्रकाशित, हुं बलिहारी केवलज्ञाननकी ॥ लेता ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) अथ दीवालीनुं स्तवन. १७ धन धन मंगल रे सकल दिन पूजी प्रजातें चाली॥श्राज मारे दीवाली अजुवाली ॥१॥ गावो गीत वधावो गुरुने, मोती थाल पूरावो॥ चार चार आगे चतुर सुहागण, चरण कमल चित्त सारी रे ॥ आज ॥२॥ धन धु: धनतेरश दीने, काले काली चउदश ॥पाप हणीजें पोसो किजें, कर्म मेलो सर्वे टाली रे ॥ आज मारे ॥३॥ अमासे तो परव दी वाली, फरती काक ऊमाली ॥घेर घेर तो दीवमीया फलके, रात दीसे अजुवाली रे ॥ आज मारे ॥४॥ अमासनी पाडलमी रातें, आठ करम दय टाली॥ श्रीमहावीर निर्वाणे पहोता, अजरामर सुखकारी रे॥आज मारे॥५॥पमवे तो वला जुहारपटो लां, ए रुतु रूमी सारी गुरु गौतमनां चरण पखाली, रीक पामी रढीयाली रे ॥याज मारे ॥४॥बीजे तो वली जावम बीज, बेनरमी श्रति वाहली ॥ ए पांचे दिन होय रे पनोता, एवे हरखे गा रे ॥ आज मारे ॥ ७॥ हरखविजयना पंमित बोले, करोने सेव सुंहाली॥ रूपविजयना पंमित बोले, जय जय वाजे ताली रे॥ आज मारे ॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) १० दीवाली नुं स्तवन ॥ मारे दीवाली रे थइ याज प्रभु मुख जोवाने ॥ सख्यां सख्यां रे सेवकनां काज, ज वडुःख खोवाने ॥ टेक ॥ महावीर स्वामी मुगतें पहो ता ने, गौतम केवल ज्ञान रे ॥ धन श्रमावास्या धन दीवाली मारे, वीर प्रभु निर्वाण ॥ जिनमुख० ॥ मारे दीवाली० ॥ १ ॥ चारित्र पाल्यां निर्मलां ने, टाल्या विषय कषाय रे ॥ एवा प्रजुने वांदियें तो, उतारे जवपार ॥ जिन० ॥ मा० ॥२॥ बाकुला वहोरया वीरजी ने, तारी चंदनबाला रे ॥ केवल लइ प्रभु मुक्त पहोता, पाम्या जवनो पार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ ३ ॥ एवा मुनिने वांदीये जे, पंचमज्ञानने धरता रे ॥ सम वसरण दइ देशना रे प्रभु, तारया नर ने नार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ ४ ॥ चोवीशमा जिनेसरु ने, मुक्ति तथा दातार रे ॥ कर जोडी कवियण एम जणे मारो, ज वनो फेरो टाल || जिनमुख० ॥ मा० ॥ ५ ॥ १ मारुं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचलें रे, मारुं मन मोयुं रे श्री विमलाचलें रे ॥ देखी ने दरखित थाय ॥ विधि शुं कीजें रे जात्रा एहनी रे, जव जवनां दुःख जाय ॥ मारुं ॥ १ ॥ पंचमे रे रे पावन काररों रे, ए समुं तीरथ न कोय ॥ महिमा मोटो रे, महियल एहनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) रे, जरतें हिंयां जोय ॥ मारुं० ॥ २ ॥ एणें गिरी आव्या रेजिनवर गणधरा रे, सिद्धा साधु अनंत ॥ कठिण करम पण ए गिरि फरसतां रे, होवे कर्मनी शांत ॥ मारुं ॥ ३ ॥ जैन धर्मनो जाचो जाणजो रे, मानव तीरथ ए स्तंन ॥ सुर नर किंनर नृप विद्या धरा रे, करता नाटारंज ॥ मारुं० ॥ ४ ॥ धन धन दादाको रे धन वेला घमी रे, धरियें हृदय मजार ॥ ज्ञानविमल सूरी गुण एहना घणा रे, कहेतां न आवे रे पार || मारुं० ॥ ५ ॥ २० बेलनी जंलीनुं स्तवन ॥ जवि प्राणी रे सेवो, सिद्धचक्र ध्यान समो नहिं मेवो ॥ उ जवि० ॥ ए क ॥ जे सिद्धचक्रने रे याराधे, तेहनी कीर्ति जगमां वाधे ॥ जवि० ॥ १ ॥ पहेले पदे रे अरिहं त, बीजे सिद्ध बुध ध्यान महंत ॥ त्रीजे पढ़ें रे सूरी सर, चोथे उवकाय ने पांचमे मुनीसर ॥ नवि० ॥२॥ उठे दर्शन रे कीजें, सातमे ज्ञानथी शिव सुख लीजें ॥ श्रवमे चारित्र रे पावो, नवमे तपथी मुक्ति जावो ॥ जवि० ॥ ३ ॥ जैली बेलनी कीजें. नोक रवाली वीश गणीजें ॥ त्रणें टंकना रे देव वांदीजें, पलेवण पक्किमणां कीजें ॥ जं जवि० ॥ ४ ॥ गुरु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मुख कीरिया रे किजें, देव गुरु नक्ति चित्तमां धरी जें ॥ एम कहे रामनो रे शिष्य, उली उजवजो ज ग दीश ॥ नविण ॥ ५ ॥ इति समाप्त ॥ ॥अथ श्री आनंदघनजीकृत पदो॥ राग आशावरी॥अवधू सो जोगी गुरु मेरा, उस पदका करे रे निवेमा ॥ अवधू० ॥ टेक ॥ तरुवर एक मूल बिन बाया, बिन फूलें फल लागां ॥ शाखा पत्र नहीं कबु उनकू, अमृत गगनें लागां ॥०॥१॥ तरुवर एक पंडि दोउ बेठे, एक गुरु एक चेला ॥ चेलेने जुग चुण चुण खाया, गुरु निरंतर खेला ॥ ॥अ० ॥२॥ गगण मंगलमें अधबिच कूवा, उहां हे श्रमीका वासा ॥ सुगुरा होवे सो जर जर पीके, नगुरा जावे प्यासा॥ ॥३॥गगन मंगलमें गउयां बिहानी, धरती दूध जमाया ॥ माखन था सो विरला पाया, गस जगत् नरमाया ॥ अ॥४॥ थम बिन पत्र पत्र बिन तुंबा, बिन जिन्या गुण गाया॥गावन वालेका रूप न रेखा, सुगुरु सोही बताया ॥१०॥ ॥५॥ आतम अनुनव बिन नहीं जाने, अंतर ज्योति जगावे ॥ घट अंतर परखे सोही मूरत, आनंदघन पद पावे ॥ १० ॥६॥इति समाप्त ॥ . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) श्रवधू एसो ज्ञान बिचारी, वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥ अवधू ॥ टेक ॥ बम्मनके घर न्हाती धोती, जोगीके घर चेली ॥ कलमा पढ पढ न रे तुरकडी, श्रापढ़ी थाप अकेली ॥श्रवधू ॥१॥ सस रो हमारो बालो जोलो, सासू बाल कुंवारी ॥ पियुजी हमारो प्होढे पारणीये, में हुं फूलावन हारी॥ अवधू ॥२॥ नहीं हुँ परणी नहि हुं कुंवारी, पुत्र जणावनहारी ॥ काली दाढीको में कोई नहीं ब्रोड्यो, हजुए हुँ बाल कुंवारी ॥ अवधू० ॥३॥ अढी छीपमें खाट खटूली, गगन उशीकुं तला॥ धरतीको डेडो श्रानकी पीडोडी, तोए न सोड जरा ॥ अवधू ॥४॥ गगन मंगलमें गाय वीश्राणी, वसुधा पूध ऊमाश् ॥ सउ रे सुनो नाइ वलोणां व लोवे, को एक अमृत पाश् ॥ अवधू ॥५॥ न ही जाचं सासरीए नहीं जा पीयरीये, पीयुजीकी सेज बीडा ॥ आनंदघन कहे सुनो नाश् साधु, ज्योतसें ज्योत मिलाइ ॥ अवधू०॥६॥ ३ बेर बेर नही आवे अवसर, बेर बेर नहीं श्रावे ॥ ए टेक ॥ ज्युं जाणे त्युं कर ले जलाइ, ज नम जनम सुख पावे ॥अवसर ॥१॥ तन धंन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) जोबन सबहीं जूगे, प्राण पलकमें जावे ॥ अवसर० ॥ ॥ २ ॥ तन बूटै धन कोण कामको, कायकूं कृपण कहावे ॥ ० ॥ ३ ॥ जाके दिलमें साच बसत है, ताकूं जूठ न जावे ॥ अव० ॥ ४ ॥ श्रानंदघन प्रभु चलत पंथमें, समरी समरी गुन गावे ॥ श्रव० ॥ ५ ॥ ४ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखज देव मनुष्यारा, मनुष्यारा० ॥ टेक ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम जतिव्रतधारा ॥ रिखज देव मनुष्यारा० ॥ १ ॥ नाजिया मरु देवीको नंदन, जुगला धर्म निवारा ॥ रिखन० ॥ २ ॥ केवल लइ प्रभु मुकते पहोता, श्रा वागमन निवारा ॥रिखज० ॥ ३ ॥ श्रानंदघन प्र इतनी विनती, था जव पार उतारा ॥ रिखन० ॥४॥ ५ ए जिनके पाये लाग रे, तुने कही यें केतो, ए जिनके पाय लाग ॥ ए टेक ॥ श्रागेइ जाम फिरे मद मातो, मोहनिंदरीयाशुं जाग रे ॥ तुने० ॥ १ ॥ प्र जुजी प्रीतम बिन नहीं कोइ प्रीतम, प्रभुजीनी पूजा घणी माग रे ॥ तुने० ॥ २ ॥ जबका फेरा पारी करो जिन चंदा, आनंदघन पाये लाग रे ॥ तुने० ॥ ३ ॥ ६ हांरे प्रभु जज ले मेरा दील राजी ॥ ए आंकणी ॥ या पोरकी तो शव घमीयां, दो घमीयो जिन सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) जी रे ॥ हारे ॥१॥ दान पुण्य कर्बु धरमकुं कर ले, मोह मायाळू त्यागी रे॥हारे॥२॥आनंदघन कहे समज समज ले, श्राखर खोवेगा बाजी रे ॥हारे॥३॥ ____७ महोटी बहूये मनगमतुं कीg, महोटी वहये मन गमतुं कीg ॥ ए आंकणी ॥पेटमें पेशी मस्तक रेहेंसी, वेरी साही स्वामीजीने दी● ॥ महोटी० ॥१॥ खोले बेशी मी बोले, अनुनव अमृत जल पीधुं॥ ॥ महो० ॥२॥ बानी बगनी उरकमा करती, बर ती अांखें मनडुं वींधु ॥महो ॥३॥ लोकालो क प्रकाशक बैयां, जणतां कारज सीधुं ॥ महो० ॥ ॥४॥ अंगो अंगें अनुजव रमतां, आनंदघन पद लीधुं ॥ महोटी० ॥५॥ ___ न्हानी वहने परघर रमवानो ढाल, न्दानी व हने परघर रमवानो ढाल ॥ ए आंकणं। ॥ परघर रमतां थ जूग बोली, देशे धणीजीने बाल ॥ न्हा नी० ॥१॥ हलवे चाला करती हीडे, लोकमां कहे बीनाल ॥ न्हानी० ॥२॥ उलंनमा जण जणना लावे, हैडे उपासे साल ॥ न्हानी० ॥३॥ बारे प मोशण जुनी लगारेक, फोकट खाशे गाल ॥न्दा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 22 ) नी० ॥ ४ ॥ आनंदघनशुं रंगें रमतां, गोरें गाल क बूके जाल ॥ न्हानी० ॥ ५ ॥ ए केरबो -- हांरे चित्तमें धरो रे प्यारे चित्तमें ध रो, एती शीख हमारी प्यारे, व चित्तमें धरो ॥ एक ॥ जीवनका क्या हे जरोसा अरे नर, का येकूं बल परपंच करो ॥ एती० ॥ १ ॥ हांरे कूम कफ्ट परद्रोह करो तुम, अरे नर परजवधी न करो ॥ एती । ॥ २ ॥ चिदानंद जो ए नहीं मानो तो, जनम मर के दुःखमें परो ॥ एती० ॥ ३ ॥ १० बलिहारी रे जाउं बलिहारी, महावीर तारी स मोवसरणकी बलिहारी ॥ ए झांकणी ॥ त्रण गढ उप र तखत बिराजे, बेटी बे परखदा बारी ॥ महा० ॥ ॥ १ ॥ वाणी जोजन सहु कोइ सांजले, तारयां बे नर ने नारी ॥ महा० ॥ २ ॥ श्रानंदघन प्रभु एणी पेरे बोले, श्रावा ते गमन निवारी || महा० ॥ ३ ॥ ॥ अथ श्री जशविलासनां स्तवनो ॥ पद पहेलुं ॥ राग श्राशावरी ॥ चेतन ज्ञान की दृष्टि निहालो, मोहदृष्टि देखे सो बावरो, होत महा मत वालो ॥ चेत० ॥ १ ॥ मोह दृष्टि प्रतिचपल करत हे, जववन वानर चालो | योग वियोग दावानल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) लागत, पावत नांही विचालो ॥ चेतन ॥२॥ मोह दृष्टि कायर नर मरपे, करे अकारण टालो ॥ रणमेदान लरे नहीं अरिशें, शूर लरे जी पालो ॥ चेतन ॥३॥ मोह दृष्टि जन जनके परवश, दीन श्रनाथ पुःखालो ॥ मागे जीख फिरे घर घरसो, कहे मुझको कोन पालो ॥ चेतन० ॥४॥ मोह दृष्टि 'मद मदिरा भाती, ताको हात उठालो ॥ पर अव गुण राचे सो अहोनिश, काग अशुचि जीउ कालो॥ चे ॥५॥ ज्ञानदृष्टिमां दोष न एते, करे ज्ञान अजुयालो ॥ चिदानंद सुजस वचन रस, सजा न हृदय पखालो ॥ चेतन ॥३॥ पद बीजं ॥ राग कनमो॥अजब गति चिदानंद घनकी ॥ जव जंजाल सकतिशु होवे, उलट पुलट जिनकी ॥ अजब ॥१॥ ए आंकणी ॥ नेदी परी पति समकित पायो, कर्मवन घनकी॥ एसी सबल कठिनता दीसे, कोमलता मनकी ॥श्रज ॥२॥ नारी नूमि जयंकर चूरी, मोहराय रनकी ॥ सहज अखंग चंमता याकी, दमा विमल गुनकी ॥श्रजना ॥३॥ पापवेलि सब ज्ञान दहनसें, जाली नवव नकी शीतलता प्रगटी घट अंतर, उत्तम लखनकी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ॥अज० ॥४॥ उकुरा जग जानतें श्रधिकी, चरन करन धनकी॥शद्धि वृद्धि प्रगटे निज नामे, ख्याति अकिंचनकी ॥ अज० ॥५॥ अनुनव बिनु गति कोउ न जाने, अलख निरंजनकी॥जस गुन गावत प्रीति निवाहो, उनके समरनकी ॥ अज०॥६॥ __पद त्रीजुं ॥ राग धन्याश्री॥ परम प्रनु सब जन शब्दें ध्यावे ॥ जब लग अंतर नरम न नांजे, तब लग कोउ न पावे ॥ परम ॥१॥ सकल अंश देखे जग जोगी, जो खिनु समता श्रावे॥ ममता अंध न देखे याकों, चित्त चिलं ठरे ध्यावे ॥ परम ॥२॥ सहज सगति अरु जगति सुगुरुकी, जो चित जोग जगावे ॥ गुनपरजाय दरवसुं अपने, तो लय कोउ लगावे ॥ परम ॥३॥ पढत पुरान बेद अरु गीता, मूरख अरथ न जावे ॥श्त उत फिरत लहत रस नांहि, जिलं पशु चर्चित चावे ॥ परम ॥४॥ पुन ससे न्यारो प्रजु मेरो, पुजल आप डिपावे ॥ उनसे अंतर नहीं हमारे, अब कहां जागो जावे ॥ परम॥ ॥५॥ अकल अलख अज अजर निरंजन, सो प्रनु सहज सुहावे ॥ अंतरजामी पूरन प्रगव्यो, सेवक जस गुण गावे ॥ परम ॥६॥इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) पद चोथु ॥ राग श्राशावरी ॥ चेतन जो तुंझान अन्यासी,श्रापहि बांधे श्रापहि बोडे, निजमति शक्ति विकाशी ॥ चेतन० ॥१॥ जो तुं श्राप स्वनावे खेले, आशा बोडी उदासी॥ सुरनर किन्नर नायक संपत्ति, तो तुक घरकी दासी ॥ चेतन०॥ ॥ मोह चोर जन गुण धन लुटे, देत आस गल फांसी ॥ श्राशा बोमी उदास रहे जो, सो उत्तम सन्यासी॥चेतन॥ ॥३॥ जोग ले पराश धरतुं हे, याहि जगमें हांसी ॥ तुं जाने में गुनकुं संचुं, गुण तो जावे नासी॥ ॥ चेतन ॥४॥ पुजलकी तुं श्राश धरतु हे, सो तो सबेहि विनाशी ॥ तुं तो निन्नरूप हैं उनतें, चिदा नंद अविनाशी ॥ चेतन ॥५॥ धन खरचे जन बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी ॥ तोनी पुःखको अंत न श्रावे, जो श्राशा नही गासी ॥ चेतन ॥ ॥६॥ सुख जल विषम विषय मृगतृष्णा, होत मूढ मति प्यासी॥ विन्रम जूमि नई पर श्राशा, तुं तो सहज विलासी ॥चेत० ॥ ॥ याको पिता मोह फुःख जाता, होत विषय रति मासी ॥ नव सुत न रता अविरति प्रानी, मिथ्यामति दे हांसी॥ चेत॥ ॥७॥ श्राशा गेमी रहे जो जोगी, सो होवे शिव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) वास ॥ उनको सुजस बखाने ज्ञाता, अंतरदृष्टि प्रकासी ॥ चेत० ॥ एए ॥ इति ॥ पद पाँचमुं ॥ राग सारंग ॥ जीउ लाग रह्यो पर जावमें, सहज वजाव लखे नहिं अपनो, परियो मोह जंजालमें || जीज० ॥ १ ॥ वंबे मोक्ष करे नहीं करणी, मालत ममता वामें ॥ चाहे अंध जि जलनिधि तरवा, बेठो काणी नामें ॥ जीउ० ॥२॥ रति पिशाच । परवश रहेतो, खिनदु न समस्यो में || श्राप बचा सकत नहीं मूरख, घोर वि षयके घाटमें || जीज० ॥ ३ ॥ पूरव पुण्य धन सब ही ग्रसतु हे, रहत न मूल बढाउमें ॥ तामें तुऊ कैसें बनि यावे, नय व्यवहारके दाउमें || जीउ० ॥ ॥ ४ ॥ जस कड़े छ मेरो मन लीनो, श्रीजिनवर के पामें ॥ याही कल्याण सिद्धिको कारण, जीज वेधक रस घाउ में || जीउ० ॥ ५ ॥ इति ॥ पद बटुं ॥ राग सामेरी ॥ पीउजी मोहें दरिस दीजीयेंरे, तेरे दरिस की में प्यासी, तुं कहां जयो रे उदासी ॥ पी० ॥ १ ॥ पीउ पीठ जपते जर हृदय टुक, नयनो नंदकी बाजी रे ॥ तब देख्या पिउ प्रेमसें पुनी, संकुचि रहि हुं लाजी रे ॥ पी० ॥२॥ रसिक न राख्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) हृदयशंजीरी, सखी हुँ बोहोत वरांसी रे ॥ अब पा ऊ तो पां न मेरुं, राखुं रंग विलासी पी० ॥ ॥३॥ पीउके गुनकी मोहनमाला, कंठ करूं जप जीरे ॥ चकित जये मेरे लोचन चिहुं उर, सूरिज न पंथ निहाली रे॥पी०॥४ ॥ कदे मतिनारी जीवन प्यारे, में हुं तेरी बंदी रे ॥ गोद बीगडं वि नय विनोदें, घर श्रावो आनंदी रे ॥ पी० ॥५॥ - पद सातमुं॥ राग काफी ॥ तो विना उर न जा चुं, जिणंदराय ॥ तो॥में मेरो मन निश्चय कीनो, ए हमां कबु नहीं काचुं ॥ जिणंद ॥ तो ॥१॥ चरन कमल पर भ्रमर मन मेरो, अनुभव रस जर चा ॥ अंतरंग अमृत रस चाखो, एह वचन मन साचुं ॥ जिणंद० ॥ तो० ॥२॥ जस प्रनु ध्यायो महारस पायो, अवर रसें नहीं राचुं ॥अंतरंग फरस्यो दरिस न तेरो, तुज गुण रस रंग माचुं॥ जिणं॥तो ॥३॥ - पद बाग्मुं॥ राग नायकी कनमो॥या गति कौन हे सखी तोरी ॥ या गति कौ॥ए टेक॥श्त उत युंही फिरत है गहेली, कंत गयो चित्त चोरी ॥ या गति कोण ॥१॥ चितवत हे विरहानल बुझवत, सींच नय न जल जोरी ॥ जानत नहीं उहां हे वडवानल, ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) लण जल्यो चिहुं उरी ॥ या २ ॥ चल गिरनार पिया दिखलाऊ, नेह निवाइन धोरी ॥ हिल मिलि मुगति महोलमें खेले,प्रणमेजस या जोरी॥या॥३॥ पद नवमुं॥ राग काफी ॥ देखतही चित्त चोर लीयो हे ॥ दे ॥ सामको नाम रुचे मोय अहनि श, साम बिना कहा काज जीयो हे॥दे॥१॥ सि द्धि वधूके लिये मुफ बोरी, पशुअनके सिर दोष दी योदे॥परकी पीर न जाने तासौं,बेर बसायो जो नेह की योहे ॥दे ॥॥प्राण धरं में प्रान पिया बिन, वज्र हथें मोही कठिन हीयोहे॥जस प्रजु नेमि मिले दुःख मास्यो, राजुल शिव सुख अमृत पीयोहे। दे० ॥३॥ ___ पद दशमुं ॥ राग धन्याश्री ॥ जिन तेरे चरन सरन ग्रहुं ॥ हृदयकमलमें ध्यान धरत हुं, सिर तुज आण वहुं ॥ जिन॥१॥ तुज सम खोल्यो देव खलकमें, पैयें नांहिं कडं ॥ तेरे गुनकी जपुं जप माला, अहनिश पाप दडं ॥ जिन ॥ २ ॥ मेरे मनकी तुम सब जानो, क्या मुख बहूत कहुं ॥ कहे जशविजय करो तुम साहिब, ज्यु नवदुःख न लहुँ ॥ जि० ॥६॥इति ॥ पद अगीयारमुं ॥ राग रामकली ॥षन देव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) हितकारी, जगद् गुरु षन देव हितकारी ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति ब्रह्मचारी ॥ जग द्गुरुः ॥ १॥ वरसी दान देई तुम जगमें, ईलति शति निवारी॥ तैसी काहि करतु नांहि करुना, साहिब बेर हमारी जगदूणा॥मांगत नांहि हम हाथीघोरे, धन कन कंचन नारी ॥ दीयो मोहि चरन कमलकी सेवा, याहि लतग मोहि प्यारी ॥ जगद्ग ॥ ३ ॥ जव लीलावासित सुर मारे, तुं पर सबहीं उवारी॥ में मेरो मन निश्चय कीनो, तुम थाणा शिर धारी ॥ज गद ॥४॥ ऐसो साहेब नही कोउ जगमें, यासें होय दिलदारी ॥ दिलही दलाल प्रेमके बिचें, तिहां हठ खेंचे गमारी ॥ जगद् ॥५॥ तुम हो साहिब में हुं बंदा, या मत देखें विसारी ॥श्रीनय विजय वि बुध सेवकके, तुम हो परम उपकारी ॥ ज० ॥६॥ पद बारमुं॥ राग आशावरी ॥ पांचो घोरा रथ एक जुत्ता, साहब उसकात्तातर सूता ॥ खजलका मद मत मत वारा, घोराकुं दोरावन हारा ॥ पां॥ ॥१॥ घोरे जूठे उर उर चाहे, रथकुं फिरि फिरि उ वट वाहे ॥ विषम पंथ चिहुं उर अंधियारा, तोजी न जागे साहिब प्यारा ॥ पांग ॥ २ ॥ खेडं रथकुं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (হए) दूर दोकावे, बेखबर साहेब दुःख पावे ॥ रथ जंगल में जाये सूके, साहिब सोया का न बूजे ॥प ॥ ॥ ३ ॥ चोर वगारे उहां मिली श्राये, दोनोकूं सद प्याले पाये ॥ रथ जंगलमें जीरण कीना, माल ध नीका उदारी लीना ॥ पां० ॥ ४ ॥ धनी जग्या तब खेडू बांध्या, रास परोना लेई सिर सांध्या ॥ चोर जगे रथ मारग लाया, अपना राज विनय जीजं पाया || पां० ॥ ५ ॥ " पद तेरमुं ॥ श्रीराग ॥ अजब तमासा एक जा या ॥ कोहु जातु है दोनुं जोरे, पिबला श्रगिलेसुं हास्या || जब ॥ १ ॥ आए नजिक मिले जब पिबला, तव अगिला दूरी हु दोरे || पिबला जोरस जोया चाहे अगिला दोरतही दोरे ॥ जब० ॥ ॥ २ ॥ खोह खाड खाते न विचारे, गिला यां खो मुंदी मगे ॥ पिला बपरा बिनुं बिनुं श्रटके, क यरे ऊंखर जाय लगे || अजब० ॥ ३ ॥ तब प्रजने एक ठेर पठाया, उने जाय अगिला बांध्या ॥ पिठ ला तव थे रहा उदासी, साहिबने ही बहु सुख सा ध्या ॥ अजब ॥ ४ ॥ एक नीच यति एकहि म ध्यम, एक उत्तम प्रजुकूं प्यारा ॥ या तिनोकूं विनय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) पिडाने, रहो अधमसेती न्यारा ॥ अजब० ॥५॥ पद चौदमुं ॥ राग श्रासावरी ॥ परम गुरु जैन कहो किम होवे ॥ गुरु उपदेश विना रेमूढा, दरिसण जैन विगोवे ॥१०॥१॥ कहत कृपानिधि समजल कीले, कर्म मेल जो धोवे॥ बाहिर पाप मल अंग न धारे, शुक्ररूप निज जोवे ॥ १०॥२॥ स्याद्वाद पूरन जो जाने, नयनित जसवाचा ॥ गुण पर्याय दरव जो ब्रूनें, सोश्जैन है साचा ॥१०॥३॥ क्रिया मूढमति जो अज्ञानी, चालत चाल अपूढी ॥ जैन दिसा उनमांहि नाहि, कहे सो सबही जूठी ॥पा ॥४॥परपरिणति अपनी कर माने, किरिया गर्वे घहिलो ॥ उनकू जैन कहो क्युं कहिये, सो मूरख मा पहिलो ॥ प० ॥ ५ ॥ जैन नाव ज्ञानी सबमां हि, शिव साधन सदहियें ॥ नाम खसे काम न सीके, नाव उदासे रहियें ॥ प॥६॥ ज्ञान सकल नय साधन साधो, क्रिया ज्ञानकी दासी॥ क्रिया करत धरतु है ममता, याहि गले में फांसी ॥ प०॥ ॥७॥ क्रिया बिना ज्ञान नही कबहुँ, क्रिया ज्ञान बिनु नांहि ॥ क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहतु है, जिऊं जलरस जलमांहि ॥ १० ॥७॥ क्रिया मग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) नता बाहिर दीसत, ज्ञान सगति जस जाजे ॥सद् गुरु शीख सुने नही कबहु, सो जन जनतें लाजे ॥ प०॥ ए॥ तत्त्वबुद्धी जिनकी परिणति हे, सकल सूत्रकी कूची ॥ जग जस वाद वदे उनहीको, जैन दसा जस उंची ॥५०॥ १० ॥ इति ॥ पद पंदरमुं ॥ राग केदारो॥ में कीनो नही तो बिन उरशुं राग ॥ दिन दिन वान चढे गुन तेरी, ज्युं कंचन परजाग ॥ उरनमें हे कषायकी कलि का, सो क्यु सेवा लाग॥में कीनो ॥१॥राजहंस तुं मान सरोवर, उर अशुचि रुचि काग ॥ विषय जुजंगम गरुम तुंहि हे, उर विषय विषनाग ॥ में -॥२॥ उर देव जल बिबर सरिखे, तुं तो समुन श्रथाग ॥ तुं सुरतरु जग वंडित पूरण, और तो सूके साग ॥ में ॥३॥ तुं पुरुषोत्तम तुंही निरंजन, तुं शंकर वमनाग ॥ तुं ब्रह्मा तुं बुधि महाबल, तुंही देव वीतराग ॥ में॥३॥ सुविधिनाथ तेरे गुन फू लनको, मेरो दिल हे बाग ॥ जस कहे चमर रसिक होश तामें, लीजे नक्ति पराग ॥ में ॥५॥इति ॥ पद शोलमुं ॥ राग नह ॥ सुख दारे सुख दाइ, दादो पासजी सुख दाइ ॥ ऐसो साहिब नही को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) . जगमें, सेवा कीजें दिल ला ॥ सुखम् ॥१॥ सब सुख दाइ एह निनायक, एही सायक सुसहा ॥ किंकरकू करे शंकर सरिसो, आपे अपनी उकुराई ॥ ॥सख ॥२॥ मंगल रंग वधे प्रजु ध्याने, पाप वेलि जाये करमाश् ॥ शीतलता प्रगटे घट अंतर, मिटे मोहकी गरमा ॥ सुख ॥ ३ ॥ कहा करुं सुर तरु चिंतामनिकों, जो में प्रनु सेवा पाश् ॥ श्रीजस विजय कहे दरिसन देख्यो, घर श्रांगन नवनिधि श्राश् ॥ सुख ॥ ४ ॥ इति ॥ __पद सत्तरमुं॥ राग देशाख ॥ अब में सच्चो सा हिब पायो॥ टेक ॥गकुर और न होवे अपनो, जो दीजे घरमायो ॥ संपत्ति अपनी खिनुमे देवे, वेतो दीलमें ध्यायो ॥१० ॥१॥ औरनकी जन करत चा करी, दूर देश पग घासे ॥ अंतरजामी ध्याने दीसे, वेतो अपनी पासे ॥ अब० ॥२॥ उर कबहुं कोउ का रन कोप्यो, बहुत उपाय न तूसे ॥ चिदानंदमें म गन रहतु हे, वेतो कबहु न रूसे ॥ अब० ॥३॥ उरनकी चिंता चित्त न मिटे, सब दिन धंधे जावे ॥ थिरता गुन पूरन सुख खेले, वेतो अपने नावे ॥ अब० ॥४॥ पराधीन हे लोग औरको, जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) तें होत वियोगी ॥ सदा सिक सम शुद्ध विलासी, वे तो निज गुण जोगी ॥ अंब० ॥५॥ जिऊं जानो तिळं जगजन जानो, मेंतो सेवक उनको ॥ पक्षपात तोपरशुं होवे, राग धरत हुँ गुनको ॥अब० ॥६॥ नाव एक हे सब झानीको, मूरख नेद न जावे ॥अपनो साहिब जो पहिचाने, सो जस लीलापावे॥॥॥ अब में सच्चो साहिब पायो,ज्ञान ध्यान चित लायो॥या की सेव करतहुं याकुं, मुझमन प्रेम सुहायो॥श्रबणा पद अढारमुं॥राग देव गंधार ॥अजब रूप जि नजीको ॥ तुम देखो माइ,अजब रूप जिनजीको॥ टेक ॥ उनके धागे ओर सबनको, रूप लगे मोहि फीको ॥ तुम देखो० ॥१॥ लोचन करुणा अमृत कचोले, मुख सोहे अति नीको ॥ तुम देखो॥२॥ कवि जसविजय कहे ए प्रज्जु साचो, नेमजी त्रिजुव न टीको ॥ तुम देखो ॥३॥ :पद उंगणीशमुं॥ ताल चोतालो॥ पवनको करे तोल, गगनको करे मोल, रीवको करे हिंडोल,ऐसो को नर रे॥टेक ॥१॥ परको काते सूत, बंजेकू पमावे पूत, घटमें जो बोल नूत, वाको कौन घर रे ॥ पव न॥२॥ बीजलीसे करे वाह, धुळू चलावे राह, Jain Educationafternational For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) समुजको लावे बाह, नीर जरा जररे ॥ पवन०॥३॥ बरो दिनके बरी रात, वाकी कोण मात तात, इतनी बतावे बात, सोही मेरो गुर रे ॥ पवन ॥४॥ __ पद वीशमुं ॥ राग सारंग ॥ हम मगन नये प्र नु ध्यानमें, ध्यानमें ध्यानमें ध्यानमें॥ हम॥ए यांकणी ॥ बिसर गइ मुविधा तन मनकी, अचिरा सुत गुन शानमें ॥ हम ॥१॥ हरि हर ब्रह्मा पुरं दरकी रीध, श्रावत नही को मानमें ॥ चिदानंदकी मोज मची हे, समता रसके पानमें ॥ हम ॥२॥ इतने दिन तुम नांही पीलान्यो, मेरो जनम गयो अजानमें ॥ अब तो अधिकारी हो बेठे, प्रनु गुण अखय खजानमें ॥ हम ॥३॥ गश् दीनता सबही हमारी, प्रजु तुम समकित दानमें ॥ प्रजु गुण अनु जवके रस धागे,श्रावत नही को मानमें ॥ हम ॥ ॥॥ जिनही पाया तिनही बिपाया, न कहे कोउके कानमें ॥ ताली लागी जब अनुजवकी, तब समजे कोउ सानमें ॥ हमा॥ प्रजु गुण अनुजव चंद्रहा स जीजं, सो तो न रहे म्यानमें ॥ वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लीयो मेदानमें । हम ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) ॥अथ श्रीचिदानंद कृत पदो ॥ पद पहेढुं ॥ राग गोमी ॥ अवधू निरपद विर ला को, देख्या जग सब जोश ॥ श्रवधू ॥ टेक ॥ सम रस नाव नला चित्त जाके, थाप उबाप न हो ॥अविनाशीके घरकी बातां, जाणेगे नवि सोइ ॥ अवधूं ॥१॥ राव रंकमें नेद न जाणे, कनक उप ख सम लेखे ॥ नारी नागणिको नही परिचय, तो शिव मंदिर देखे ॥ श्रवधू० ॥२॥ निंदा स्तुति श्रव ण सुणीने, हर्ष शोक नवि आणे ॥ ते जगमें जोगी सर पूरा, नित चढते गुणगणे ॥ अवधू ॥३॥ चंड समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंजीरा॥ श्रप्र मत्त नारंग पेरे नित्य, सुरगिरिसम शुचि धीरा ॥ श्रवः ॥४॥ पंकज नाम धराय पंकशें, रहत कम ल जिम न्यारा ॥ चिदानंद ऐसा जिन उत्तम, सो साहेबका प्यारा ॥ अव०॥५॥ पद बीजुं ॥ अवधू खोल नयन अब जोवो, हग मुंदी कहा सोवो ॥श्रवधूणाटेक॥ मोह निंद सोवत तुं खोया, सरवस माल अपाणा ॥ पांच चोर अजहूं तोये खूटत, तास मरम नहि जाएया ॥ अवधू० ॥ ॥१॥ मिली चार चंमाल चोंकमी, मंत्री नाम धरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only For Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) या॥पा केफ प्याला तोहेके,सकल मुलक ठग खाया ॥अवधू॥२॥शत्रुराय महाबल जोझा, निज निज सेन सजाये ॥ गुणगणेमें बांध मोरचे, घेख्या तुम पुर आये ॥ १० ॥३॥ परमादि तुं होयके पियारे,परव शताफुःख पावे॥गया राज पुर सारथ सेंती, फिर पाना घर आवे ॥ अवधू ॥४॥ सांजलि वचन विवेके म तिका, बिनमे निजदल जोड्या ॥ चिदानंदसी राम त रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोया ॥ अ० ॥५॥ पद त्रीजुं ॥ रागप्रनाती ॥ चालणां जरूर जाकू ताकुं कैसा सोवणां ॥ ए श्रांकणी ॥ जया जब प्रात काल,माता धवरावे बाल, जग जन करत, सकल मुख धोवणां ॥ चा०॥ १॥ सुरनिके बंध बूटे, घूवम जये अपूठे ॥ ग्वाल बाल मिलके, विलोवत वलोवणां ॥ चा॥२॥ तज परमाद जाग, तूंनि तेरे काज लाग॥ चिदानंद साथ पाय, वृथा न खोवणां ॥ चा ॥३॥ - पद चोथु ॥राग आशावरी ॥मारग साचा कोउ न बतावे, जासुं जाय पुबीये ते तो, अपणी अपणी गावे ॥ मारग ॥ ए आंकणी ॥ मतवारा मतवाद वा दधर, थापत निज मत नीका ॥ स्यादवाद अनुन व बिन ताका, कथन लगत मोय फीका ॥मा॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) मतवेदा ब्रह्मपद ध्यावत, निश्चय पख उरधारी ॥ मी मांसक तो कर्म बंधते, उदय नाव अनुसारी ॥ मा० ॥२॥ कहत बौध ते बुद्ध देव मम, दणिक रूप दर सावे ॥ नैयायिक नय वाद ग्रही ते, करता कोउ रावे ॥मा ॥३॥ चार्वाक निजमनःकल्पना, शून्य वाद कोउ गणे ॥ तिनमें नये अनेक नेद ते, अप पी अपणी ताणे॥ मा० ॥४॥ नय सरवंग साधना जामें, ते सरवंग कहावे ॥ चिदानंद ऐसा जिन मा रग, खोजी होय सो पावे ॥मा ॥५॥ पद पांचमुं ॥ जाग अविलोक निज शुभता स्वरू पकी ॥ ए आंकणी ॥ जामें रूप रेख नांही, रंच पर पर गंही, धारे नही ममता, सुगुण जव कूपकी ॥ जा ॥१॥ जाकी हे अनंत ज्योत, कबहुं न मंद होत, चार ज्ञान ताके सोत, उपमा अनुपकी ॥ जाण ॥२॥ उलट पुलट ध्रुव, सत्तामें बिराजमान, शोना नहि कहि जात, चिदानंदपकी ॥ जा ॥३॥ ___ पद बहुं ॥ राग प्रजाती ॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग लागो रे॥ए आंकणी॥तप जप संजम दानादिक सहु, गिणती एक न आवे रे ॥ जियसुखमें ज्योलो ए मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) ॥ विषय ॥ १ ॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत दुःख पावे रे ॥ तेतो प्रगटपणे जगदीश्वर, इस विध नाव बतावे रे ॥ विषय० ॥ २ ॥ मन्मथ वश मातंग ज गतमें, परवशता दुःख पावे रे ॥ रसनालुब्ध होय ऊख मूरख, जाल पड्यो पछतावे रे | वि० ॥ ३ ॥ घ्राण सुवास काज सुण चमरा, संपुटमांदे बंधावे रे ॥ ते सरोज संपुट संयुत फुनि, करटीके मुख जावे रे ॥ वि०॥४॥ रूप मनोहर देख पतंगा, पकत दीपमां जाई रे ॥ देखो याकूं दुःख कारनमें, नयन जये हे सहा इरे ॥ वि०॥५॥ श्रोत्र इंद्रिय आसक्त मृगला, बिन मैं सीस कटावे रे ॥ एक एक आसक्त जीव इम, नानाविध दुःख पावे रे ॥ वि० ॥६॥ पंच प्रबल वर्त्ते नित जाऊं, ताकूं कहां ज्युं कहिये रे ॥ चिदानंद ए वचन सुणीने, निज स्वभावमें रहियें रे ॥ वि० ॥७॥ पद सातमुं ॥ अनुभव मित्त मिलाय दे मोकूं, स्या म सुंदर वर मेरा रे ॥ अनु० ॥ शीयल फाग पिया संग र मुंगी, गुण मानुंगी में तेरा रे ॥ ज्ञान गुलाल प्रेम पीचका री, शुचि श्रद्धारंग नेरा रे ॥ श्र० ॥ १ ॥ पंच मिथ्यात निवार धरूंगी में, संवर वेश जलेरा रे ॥ चिदानंद ऐसी दोरी खेलत, कबहुं न होय जव फेरा रे ॥ श्रणाशा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३९ ) पद आठमुं ॥ राग जंगलो काफी ॥ जुठी जगत् की माया, जिणे जाणी भेद तिथे पाया ॥ जू० ॥ ए श्रांकणी ॥ तन धन जोबन सुख जेतां, जाणहुं श्र थिर सुख तेतां, नर जिम बादलकी छाया || जून १ ॥ जिम नित्य नाव चित्त थाया, लख गखित वृखन की काया ॥ बुजे करकंरु राया ॥ जू० ॥ २ ॥ इम चिदानंद मनमांदी, कटु करियें ममता नांही ॥ स गुरुयें नेद लखाया ॥ जू० ॥ ३ ॥ पद नवसुं ॥ राग बिहाग ॥ बोल मत पिया पि या ॥ ए आंकणी ॥ रे चातक तुं शब्द सुण मेरा, व्याकुल होत हे जीया ॥ फूटत नांदि कठिन श्रति घन सम, निठुर जया ए हिया ॥ बो० ॥ १ ॥ एक शोक्य दुःखदायी कंत जिने, कर कामण वस कीया ॥ डुजे बोल बोल खग पापी, तुं अधिका दुः ख दिया || बोल० ॥२॥ करण प्रवेश उठी होय व्या कुल, विरहासन जल तिया ॥ चिदानंद प्रभु इन अवसर मिल, अधिक जगत् जस लिया ॥ बो०॥३॥ पद दशमं ॥ वांसलमी वेरण थईने लागी कां मु ज केडे ॥ ए देशी ॥ हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत अनित तजी चित्त धारियें ॥ हो वालमजी वचनतणो ति ॐ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) डो मरम विचारियें ॥ ए आंकणी ॥ तुमे कुमतिके घर जावो बो, निज कुलने खोट लगावो बो, धिगू ए व जगत्की खावो डो॥होत्री०॥१॥ तुमे त्याग थ मी विष पीयो बगे, कुगतिनो मारग लीयो बो, ए तो काज अजुगतो कीयो नगे ॥ हो प्री॥२॥ ए तो मो हरायकी चेटी,शिव संपत्ति एहथी बेटी, ए तो साकर तेग खपेटी ॥ हो प्री०॥३॥ एक शंका मेरे मन श्रावी , किण विध एमुक चित्त जावी , एतो डाहण जगमें चावी जे ॥ हो प्री॥४॥ सहु रिकतु मारी खाये , करी कामण मत नरमाये , तुमे पुण्यजोगे ए पाये ॥होप्री० ॥५॥ मत थांब काज बाउल बोवो, अनुपम नव विरथा नवि खोवो, अब खोल नयण प्रगट जोवो ॥ हो प्री० ॥६॥ण विध समता बहु समजावे, गुण अवगुण मही सहु दरसा वे, सुणि चिदानंद निज घर आवे ॥ हो प्री०॥७॥ - पद अगीधारभु ॥ केरबो ॥ समज परी मोहे, समज परी मोहे ॥ जग माया अब जूठी ॥ समज० ए श्रांकणी ॥ काल काल तुं क्या करे मूरख, नही जरुंसा पल एक घरी ॥ जग ॥१॥ गाफिल दिन जर नांही रहो तुम, शिरपर घुमे तेरे काल अरी ॥ Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज० ॥२॥ चिदानंद ए बात हमारी प्यारे, जाणे तुम चित्तमाहे खरी॥ जग ॥३॥ ॥जिनदासकृत पदो॥ - पद पहेलुं ॥ राग चर्चरी कल्याण ॥ समता सुख वास श्रास, दास तेरो चावे, बिसन विणासकुं श्राप, मदसुं बाथ आवे ॥ स ॥ ऐसो कोश् सुजट सूर, दर्शन सोही पावे ॥ समता ॥१॥ सुरपति सुख सेज त्याग, गुण तुमारा गावे ॥अब निरखत जिनरा ज बबी, तृप्ति नहिं पावे ॥सणार॥ जोबन तन धन तजी तेरो, चरण सरण जावे ॥जिनदासने उर न रुचे, एक बोधबीज पावे ॥ समता ॥३॥ ___ पद बीजं ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ तेरे चरणकमल से लगी, महाराज मेरी श्रासा॥ ते ॥ शठ कम निपटही दलनकू, पूज प्रनु पासा ॥ मद मार मुगत पद लहि, सिक बिच बसत बासा ॥ ते ॥१॥ जप ले जिनराज श्राज, खलक बीच खासा ॥ बालस उडावि अंगको, तज जगत्का तमासा ॥ ते ॥२॥ पलक पलक नज ले प्रजु, बीसर मत एक सासा ॥ नगति एह मुगति खरी, युं बोलत जिनदासाते॥३॥ पद त्रीजुं ॥राग उपर प्रमाणे॥अंगके कसाय धन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रय की, आसा कैसी करणी ॥अं॥ रावणको राज गयो, लायो पर घरणी॥अब बल जल राख ६. लंका मनहरणी ॥ अंगके० ॥१॥धाम चोर राज खाय, धन गले सब धरणी॥अब खरच्यो नहिं खेत्र सात, खायो खोयो परणी॥अं॥२॥ सेव ले जिनदास सुमति, जवजलकी तरणी॥ अब समकित शिरदार सेव, शिव सुख पद वरणी ॥ अंग ॥३॥ • पद चोथु ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ लगरहि तुम दरिसणकी, मुज मन श्रास रे ॥ कुगुरुने कियो मे रो, ग्यानको बिणास रे ॥ लग ॥१॥ कर्मने मो हे खुब कस्यो, हु नहिं खुलास रे ॥ जिम तिम मोहे तार लीजो, आयो चरणपास रे ॥ लग ॥ ॥२॥ लोनमांही लपट रह्यो, कियो ममतामें वास रे॥ जोबन धन धस्यो रह्यो, निकल गयो सास रे ॥ लग ॥३॥ तप जप बिन जनम गयो, काव्यो डे में घास रे॥ जगत् सर्व धुत खायो, उग बन्यो जिनदास रे ॥ लग ॥४॥ पद पांचमुं ॥ यो जिनदास जूगे रे जूठगे॥ वाने ले लाकमी कूटो ॥ यो ॥ सुकृत सामो पग नहिं जरतो, ग्यान हीयाको खूटो॥ सुधास्यो सुधरे नहि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) घडता, जैसो सकडको बुंगे ॥ यो॥१॥ जणवा गणवाका गुणं नहि आया, कोरोही पकड्यो पूंगे। गपोमा सुणकर लोक पूजता, ए अलग डालको ढूं ठगे ॥ यो॥२॥पंमित गुरुकी सोबत पाइ, चेत्यो नहिं हीयाको फूटो ॥ साचा नरको संग न करतो, कूम कपट नहिं बूटो ॥ यो ॥३॥ जूगेहि बोले जूगेहि चाले, कपट करे एक मूगे ॥ साचो ए श्र सार देख, जिनदास सबसूं रूगे ॥ यो० ॥४॥ पद बहुं ॥ समर समर जिया श्रीनवकार, ए पद तो तेरो काज सुधारे सवि, पावे जवजलको तुं पा र ॥ समर ॥१॥ देव धर्म गुरु दृढ करी सेवियें, कदिय न होये तेरी हार ॥ समर ॥२॥ तप जप संजम सार खजानो बन्यो, खरची लीजोजी येही खार ॥ समर० ॥३॥ अरजनमाली अरु गजसुक मालकू, तुरत दीयो है तुस तार ॥ समर० ॥४॥ समकित सेजसुं खिल लह्यो हे हीयो, करी हे सुमता घरनार ॥ स ॥५॥ कहेणकू जिनदास उताव लो, करणेकू बमो हे गमार ॥ समर ॥६॥ पद सातमुं॥ अंतर मेल मिव्यो नहीं मनको, उ पर तन क्या धोया रे॥ अंत ॥ टेक ॥ सोल सण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) गार सजीरे शरीरपर, मुखमा काचमें जोया रे॥ अंतर ॥१॥अगर अतर अबीर अरगजा, गंदी मोह्या रे ॥ अंतर ॥॥सरस आहार करी तनने पोष, त्रिया पलंगपर सोया रे ॥ अंतरण ॥३॥ कहे जिनदास जे अक्षय अमर पद, जब निरख्या तब रोया रे ॥ अंतर ॥४॥ ॥ चंद्रविजय कृत पदो ॥ पद पहेलु ॥ राग शोर ॥ हरीयालो हुंगर प्यारो॥ टेक ॥ ढूंढत ढूंढत गई गिरनारे, मिलगयो नेम प्यारो रे ॥ हरीयालो ॥१॥ सहसावनकी कुंजगलनमें, लीधो ने संजम नारो रे ॥ हरी ॥ ॥२॥ चंदश्री कहे जे हे श्रीजिनवर, या जवथी मुने तारो रे ॥ 1 हरीयालो० ॥३॥ पद बीजं ॥ राग गुजरी ॥ मेरो मन लागी रह्यो, श्रीमहावीरके चरणसें ॥ ए आंकणी ॥ सिकारथ कुलनंदन हेसो, राणी त्रिशला देवीको जायो॥ मन लागी० ॥१॥ जन्मथकी प्रनु मेरु कंपायो, सांसो दीयो हो मीटायो॥ मन लागी ॥२॥ क्षत्री कुंडमें जन्म लीयो हे, मुक्ति पावापुरमें पायो ॥ मन ला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) गी० ॥३॥जो ध्यावे सोइ फल पावे, चंदकीरति गुण गावे ॥ मन लागी० ॥४॥ पद त्रीजुं ॥ गजल ॥ राजूल पुकारे नेम पिया, एसी क्या करी॥ मेरेकुं डोमके चले, चूक हमसे क्या परी॥राजु ॥१॥ हुश्श्राशाकी निराश, उदासी नता घमी ॥ प्यारा बस नही हमेरा, प्रीतम पीरमें पमी ॥ राजु ॥२॥ हमसे रह्यो न जाये, प्रीतम तुम विना घमी ॥ संयम लीजीयें दयाल, दया धर्म श्रादरी ॥ राजु ॥३ ॥ निशिदिन तुमेरा नाम, देते ज्ञानकी करी॥ मुनि चंद विजय चरण कम ल, चित्तमें धरी ॥ राजु ॥४॥ पद चोथु ॥राग विजास॥प्रजुजीको दरिसन पायो री, आजमें प्रजुजीको दरिसन पायो॥टेक॥ वांबित पूरण पास चिंतामणि, देखत कुरित गमायोरी॥श्रा ज०॥१॥ मोहनी मूरत महिमा सागर, कीरति सब जुग बायो॥याज ॥नानुचद प्रन्नु सकल संघकू, आनंद अधिक उपायो री ॥ आचण ॥३॥ ॥श्रीज्ञानसारकृत पदो॥ पद पहेदूं ॥राग आशावरी॥क्या नरोसा तनका, अवधू क्या । जिन्नरूप बिन जिनका ॥ श्रव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ____ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) धृ०॥ ए श्रांकणी ॥ बिनमें ताता बिनमें सीरा, लि नमें नूखा प्यासा ॥ बिनमें रंक रंक ते राजा, बिनमें हर्ष उदासा ॥ ॥१॥ तीर्थंकर चक्री बलदेवा, इंड चंज धरणिंदा ॥ असुर सुरवर सामानिक नर, क्या राणा राजिंदा ॥ ॥॥ संसारी जीय पुज ल राते, एही धर्म प्रचारा ॥ पुजल संगते जनम मर ण गण, ज्युं जल बीच पतासा ॥ १० ॥३॥ जिन्न जाव पुजलतें जावे, तुंश्रकलंक अविनाशी॥ ज्ञानसा र निजरूपें नाही, जनम मरण नवपासी॥०॥४॥ - पद बीजें ॥ राग बीहाग ॥ दरवाजा बोटारे, नि कल्या सारा जग उनहींसें ॥ दर॥ए टेक ॥ क्या बंधु क्या मा बाबु,क्या बेटा क्या घोटारे॥ दर ॥१॥ दय गय करणी दोय कर चरणी, क्या को मोटा गेटा रे ॥दर ॥२॥ क्या पूरव क्या उत्तर पंथा, दक्षिण पछिम मोटा रे ॥ दर ॥३॥ ज्ञान सार दरवाने पाये, या सिडसनोटा रे॥ दर॥४॥ । पद त्रीजुं ॥ राग धनाश्री ॥ कौन किसीको मित्त, जगतमें कौन किसीको मित्त॥ए श्रांकणी ॥ मातता त उर जात सजनसें, कांहि रहेत निचिंत॥जगार॥ सबही अपने स्वारथ के है, परमारथ नहीं प्रीत ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) खारथ विणसे सगो न दोसी, मित्ता मनमें चिंत ॥ ज० ॥२॥ ऊठ चलैगो श्राप एकीलो, तुंही तुं सु विदित ॥ को नहीं तेरो तुं नही किसको, एह श्र नादी रीत ॥ ज० ॥३॥ तातें एक नगवान नजन की, राखो मनमें नीत ॥ ग्यान सार कहे एह धन्या श्री, गायो श्रातम गीत ॥ ज०॥४॥इति ॥.. ॥हरखचंद कृत पदो॥ __ पद पहेतुं ॥राग पंजाबी॥श्रीजिनपास दयालसें, लगा मेरा नेहरा ॥ श्रीजिनपास ॥ तुं सदानीला, लगा मेरा नेहरा ॥ श्रीजिन ॥ ए श्रांकणी ॥ हा ल हकीकत तुंही जाने, ज्युं वीते दयाल ॥ लगामे रा० ॥१॥ अश्वसेन नंदन जग वंदण, वामाजीके लाल ॥ लगा मेरा ॥२॥ हरखचंद सेवक अपन नका, मिटे जव जंजाल ॥ लगा मेरा ॥३॥ पद बीजुं ॥ बाजत रंग बधाइ नगरमें ॥ बा०॥ जयजयकार जयो जिनशासन, वीर जिणंदकी मुहा ॥ न बा ॥१॥ सब सखीयन मिलि मंगल गाये, मोतीअन चोक पूरा ॥ न० ॥ बा ॥२॥ केसर चंदन जरीय कचोली, साहिब ज्योति सवा॥ न० ॥ बा०॥३॥ हरखचंद प्रजु दरसन देखत, हे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) तसुं श्रावत नैन जराश् ॥ न ॥ बा० ॥ ४॥ - पद त्रीजुं ॥ मारे में तो प्रजुजीसें प्रीत करी, श्रीन मिनाथ जिनेश्वरजीसें, लगी लगन खरी॥ माई रे ॥१॥ माता वप्रा विजय नृपति सुत, मिथिला जनम पुरी ॥ पणदश धनुष शरीर कनकद्युति, सेवत चरण हरी ॥ मा०॥५॥ दस हजार बरसको श्रायु, महिमा जगत् नरी ॥ दोष अढार रहित हितकार क, साधी शिवनगरी॥माण ॥३॥ जब में चरण कमल चित्त दीनो, तबही विपत्ति टरी॥ हरखचंद आनंद चित्त पायो, मनकी श्राश फली॥ मा ॥ - पद चोथु॥केरबो॥ जलांजी मेरोनेम चल्यो गिर नार, एकेलीजानसें ॥मेरो॥राजुल उत्नी अरज करे बे, जलांजी मेरी अरज सुनो महाराज ॥ एकेली० ॥१॥ तोरण श्राय चले रथ फेरी, जलांजी उदांतो पशुधनकी सुनी जे पोकार ॥ एकेती० ॥२॥ सह सावनकी कुंजगखनमें, जलांजी उहांतोपंच महाव्रत धार ॥ एकेली ॥३॥हरखचंद प्रजु राजुल विनवे, जलांजी मेरो होजो मुक्तिमें वास ॥ एके ॥४॥ ॥अमृतकृत पदो ॥ पद पहेलु ॥ श्रीपारस प्रजु साहिब मेरे, तुम हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) जगमें जयकारा ॥ निज सेवक पर करुणाकरके, कीजे कलु उपगारा॥ श्री० ॥ १॥ श्री समेत शिखर पर सोहे, प्रजुउत्तंग विहारा॥अति सुंदर प्रनु बिंब वि राजे, गजे बबि मनुहारा ॥ श्री० ॥२॥नव नम तें बहुकाल गमाया, पाया नहिं नवपारा॥ अब कबु शुन संयोग उपाया, पाया नर अवतारा ॥ श्री॥३॥ मोह सुनट मुक अंतर वैरी, उर्जय विषय विकारा॥ प्रनुमुना पेखतही जीता, वीता फुःख विस्तारा ॥ श्री०॥४॥ राज धिप्रजु में नहिं चाहूं, चाहुं नहिं धन दारा ॥ श्रीजिन नक्ति सहित नित्य चाई, अमृत धर्म उदारा ॥ श्री० ॥ ५॥ .. ___ पद बीजं ॥ राग सोरठ मल्हार ॥ हो राज निंजु थारे छारें, नेम नवल प्यारा, नव नव नेह संचार रे॥ हो ॥ टेक ॥ उमंग घुमंग घन गरजन लागे, पीउ पीज पपश्या पुकार रे ॥ हो ॥१॥श्म विलप ती राणी राजुल बोले जश्चढ्या गढ गिरनाररे ॥ हो ॥२॥ अमृत पद मधुपति श्म विलसे, श्रात म अनुजव सार रे ॥ हो ॥३॥ इति ॥ . - पद त्रीजु ॥श्री सुपास जिनराज ॥ ए देशी ॥ आदीसर जिनराज, त्रिजुवनके महाराज ॥ आज Jain Educationa InterXonal For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) हो थायो रे, मैं शरणे प्रभुजी तुम तणेजी ॥ १ ॥ उस्यो ग्यान अंकूर, प्रगट्यो पुण्य पंकुर, याज हो जागी रे, मुफ मनमें तुमची सेवना जी ॥ २ ॥ लगन लगी जरपूर, दोष गये सब दूर, याज हो बोडुं रे, नहि तुम पद सेवा सुखकरूं जी ॥ ३ ॥ नाजिराया कुल चंद, मरुदेवीके नंद, आज हो राखो रे, प्रभु मु जकुं निज चरणे सदा जी ॥ ४ ॥ अमृत धर्म सुजा ए, शिष्य कमा कल्याण, आज दो रागे रे, प्रभु श्रागे विनति करे जी ॥ ५ ॥ इति ॥ पद चोथुं ॥ राग केरबो ॥ रसना सफल नई, में तो गुन गाये महाराजा ॥ रसना० ॥ ए आंकणी ॥ परम आनंद प्रगट जयो मेरे, जब देखे जिनराज ॥ रसना० ॥ १ ॥ अति उज्ज्वल जस सुन जिनजीको, संच्यो सुकृत समाज ॥ रसना० ॥ नाक नमन कर तां प्रभुजीकूं, साख्यां श्रातम काज ॥ रसना० ॥२॥ पदपंकज प्रभुके फरसतही, दूर गई दुःख दाऊ ॥ रसना० ॥ कहत क्षमा कल्याण सुपाठक, अब मोही अविचल राज ॥ रसना० ॥ ३ ॥ इति ॥ 1. पद पाचमुं ॥ राग केदारो ॥ गोमी गाइयें मन रंग, एक ध्यानें एक तानें ॥ कर केदारो संग ॥ गोमी० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) ॥ १ ॥ जात्रा कीजे अमृत पीजे, नीर वढेरी गंग ॥ रोग सोग क्वेश नासे, खालस नावे अंग ॥ गो० ॥२॥ दोगतां प्रभु नाम लिजे, आणी मन उबरंग ॥ अजय ते हने उंघ मांदे, कदिय न होवे चित्त जंग ॥ गो० ॥ ३ ॥ पद बहुं ॥ हांरे हुं तो मोदी रे लाल, जिनमुख माने मटके | टेक ॥ नयण रसालां ने वयण सुखा लां, चित्तहुं लीधुं चटके || प्रभुजी केरी जक्ति करतां, करम ती कस तटके ॥ हांरे० ॥ १ ॥ मुऊ मन लो मी मरती पेरे, जिनगुण कमले अटके ॥ रत्नचिं तामणि मुकी राचे, कहो कोण काच तो कटके ॥ हांरे० ॥ २ ॥ ए जिन थुणतां क्रोधादिक सहु, श्रास पासथी पटके || केवलनाणी बहु सुखदाणी, कुमति कुगतिने पटके || हांरे० ॥ ३ ॥ ए जिनने जे दिलमां न खाणे, तेतो जुन्या जटके || जावनक्तिशुं उलग करतां, वांबित सुखडे सटके || हांरे० ॥४॥ मूरत सं जव जिनेश्वर केरी, जोतां हइडं हटके ॥ नित्यलाज कहे प्रभु ए मदोटो, गुण गाऊं हुं लटके ॥ हांरे०॥५॥ पद सातमुं ॥ राग खमायच ॥ महाराजा विन कैसें काज सरे ॥ जमत जमत लख चोराशी में, सुख दुःख सौ जिय रुलत फिरे ॥ महाराजा० ॥ १॥ यौ रिपु कर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) म वैरी नटकावे, ताहीसुं मेरो प्राण डरे ॥ न ॥ ॥॥ जो जीय सुखकी वांग चाहे, प्रनु सेवाशुं सब काज सरे ॥ महाराजा ॥३॥ पद श्रापमुं ॥ राग काफी ॥प्रजुजीसें लगो मारो नेह, सखीरी कहो अब कैसे बुटे री॥ प्र॥ टेक ॥ धिग धिग् जगमें वाको जीयो, अपणा प्रजुजीसें रुसे री ॥ प्र० ॥१॥जो कोप्रजुजीसें नेह करेगो, शिव पुरनां सुख लेहसे री॥ प्रण ॥२॥ सेवाराम प्रजु गांग्रेसमकी, लगीप्रीत नही बूटे री ॥॥३॥ पद पहेढुं ॥ हो महाराज सरण मोही राखो जी॥ हो॥ अनेक जम जोधा मेरी लार लगेहै, ज्यु तीतर पर बाज ॥ हो॥१॥ मोह करम मोहि घेर रह्यो है, मेरी रखजो लाज ॥ हो ॥२॥ लालचंद की तेही विनति, नवसागरशुं तार ॥ हो ॥३॥ - पद बीजुं ॥ राग सोरठ ॥ राजरी बधाइ बाजे ॥ ए आंकणी ॥ सरणा शिरोदा नोबत बाजे, घन ज्युं गाजे ॥ राजरी ॥१॥ इंशाणी मिल मंग ल गावे, मोतीअन चोक पूरावे ॥ राजरी०॥॥ सेवक प्रजुजी\ अरज करे , चरणकी सेवा प्यारी लागे ॥ राजरी ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) राग रामग्री ॥ रे जीव जिनधर्म कीजीयें, धर्मना चार प्रकार ॥ दान शियल तप नावना, जगमां एट लो सार ॥ रे जीव० ॥१॥ वरस दिवसने पारणे, आदीश्वर अणगार ॥ श्कुरस वहोरावीयो, श्री श्रे यांस कुमार ॥ रे जीव० ॥२॥ चंपा पोल उघामीयां, चारणीये काढ्यां नीर ॥ सतिय सुना यश थयो, शियल मेरु गंजीर ॥रे जीवन ॥३॥ तप करी काया शोषवी, सरस नीरस करी आहार ॥ वीरजिणंदे व खाणीयो, धन धन्नो अणगार ॥रे जीव० ॥४॥श्र नित्य नावना नावतो, धरतो निश्चल ध्यान ॥ नरत अरीसाजुवनमें, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ रे जीव०॥५॥ जैन धर्म सुरतरु समो, जेनी शीतल बाय ॥ समयसुंद र कहे सेवता, मनोवाडत फल पाय ॥ रेजी० ॥६॥ पद बीजें ॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, वेरन निसा कहांसें आ॥ सो॥ ए आंकणी ॥ निना कहे में तो बाली रे जोली, बडे बडे मुनिजनकू नाखू रे ढोली ॥ सो० ॥१॥ निझा कहे में तो जमकी दासी, एक हाथमें मुक्ती, उर दुसरे हाथमें फासी॥ सो॥ ॥२॥ समय सुंदर कहे सुनो ना बनीयां, आप मु वे सारी मुब गश्ऽनियां ॥ सो० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) १ गऊल-राजुल कहे नाथ गये, साथ परहरी ॥ नहीं अर्ज मेरी गर्ज, कलु दीलमें धरी ॥ राजुलम् ॥ ॥१॥ तेरे दर्शकी में तर्सी, देखु महेल पर चढी॥ देखी नाथ साथ जान, मेरी अखियां ठरी ॥ रागा ॥॥श्रायो तोरनसें फीरायो, रथ शामने फरी॥ कीनि पशुधन म्हेर फेर, अमें क्या करी ॥ रा॥ ॥३॥ श्राप जवकी जाणी प्रीत, रीत दीलमें नज री॥श्राये नवमे नव जोग, लोग गये बीसरी॥रा॥ ॥४॥ोमी राजुलसी नार, लीनी शिववधू वरि ॥ कहे सुत प्रजुदास चित्त, चरणसें धरी ॥ रा ॥५॥ ___ पद बीजं ॥ तुमरी ॥ पीया गिर चले गये रे, अ ब क्या मेरा होयगा जिनजी ॥ पीया॥ए आंकणी॥ जग दीये रे ॥ अब० ॥१॥ रात दिवस मुज निंद नहीं थाती, दया दिलमें धरनी चैयें तेरे रे॥अब॥ ॥२॥ कहे सुत प्रजुदास कर दोनो जोमी, राजुल नेमजी साथ गये गये रे ॥ अब० ॥ ३ ॥ इति ॥ पद पहेलु ॥ गजरो चढावं रे, मारा धुलेवा धणी ने॥ गजणा एश्रांकणी ॥ चंपा चंबेली, गुलाब लाऊं रे॥ जाइ जु मालती, विधिशुं गुंथावं रे ॥मारा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) ॥गण॥१॥ अगर धूप अदत, नैवेद्य मंगाबुरे ॥ धूप दीप फल सुगंध, पुण्य पातुं रे॥ मा० ॥ ग ॥२॥ अष्ट अव्य आदिनाथ, नावे नावु रे ॥ रिखनदास पूरो आश, गुण गावं रे ॥ मा० ॥ ग० ॥३॥ पद पहेलु ॥ जिनराज नाम तेरा, राखं रे ह मारा घटमें ॥ ए श्रांकणी ॥ जाके प्रजाव मेरा, श्र ज्ञानका अंधेरा, नाग्या नया उजेरा ॥ राखुं रे ॥ जिन० ॥१॥ सुरत तेरी रागे, देख्या विनाव त्यागे, अध्यात्मरूप जागे ॥ राखुं॥ जि ॥२॥ मुजा प्र मोद कारी, कषनेश ज्युं तीहारी, लागत मोहे प्यारी ॥ राखंग ॥ जि० ॥ ३ ॥ त्रैलोक्यनाथ तुमही, हम है अनाथ गुनही, करिये सनाथ हमही ॥ राखं॥ जि० ॥ ४॥ प्रजुही तिहारी साखे, जिनहर्ख सूरि जांखे, दिल माफि याहि राखे ॥ राखं रे॥ जिय पद पहेलं ॥ आजकी आंगी जोर बनी, गोमी पास जिनेसरके अंगकी ॥ श्रा० ॥ टेक ॥ केसर चं दन चर्चु अंगे, बिचमांहेजी बुट्टी गुलाबनकी॥श्राज की॥१॥चंद्रज्योत तोरं मुखहुँ बिराजे, तेरे बद नोकी जाउं बलिहारी ॥ श्राजकी० ॥२॥कहे मबुक चंद एप्रनु साचो, पूजा करो ए जिनेसरकी॥श्रा०॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) पद बीजं ॥ मिलावनां मिलावनां मिलावनां रे,गोडी जीको दरस मिलावनां ॥ टेक ॥ अनुलव मेवा नेज दे प्रजुजी, उन मोहे दरिस दिखावनां रे॥ गोणा॥ अंतरजामी अंतर निरखो, द्यो दरिसन सुख पावनां रे ॥ गोडीजीको ॥२॥ रामविबुध कहे जिनप्रनु प्यारा, तनका ताप मिटावनां रे ॥ गोमीजी ॥३॥ पद त्रीजु ॥ समेत शिखर चालो जश्य मोरी स जनी, समेत शिखर चालो जश्ये ॥ टेक ॥ देश देशके जात्रा आवे, अतिसुख अतिसुख चहीयें।मो॥स मेत॥१॥ वीशेट्रंके वीश जिनेसर, वंदीने पावन थश्य ॥ मो॥समेत॥२॥ मन वच काया प्रदक्षिणा देकर, मुक्ति परमपद पश्ये ॥ मो॥ समेत ॥३॥ पद चोथु ॥ जज ले मनुवा गोमी पारसकू॥ जज ले०॥ टेक ॥ मन बच काया लगाय लोयणा, बांग सकल चमका रसकू ॥नज ले ॥१॥ अनय दान यो फुःख सवि चर व्यो, घर करो नविया रसकूँ ॥ ॥नज ले॥॥द्यानत गावे हरख वधावे, पाम्या ए नर नारस... ॥ जज ले ॥३॥ इति ॥ पद पांचमुं॥ तुं जगमांहे दीवो प्रजुजी, तुं जग मां दीवो ॥ टेक ॥ तीन जगत्के नाव प्रकाशत, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) कबुये न पवन न डीवो ॥ प्रजु० ॥ १ ॥ तूम नहीं जनवाद अनुपम, तेल कपूर न पीवो ॥ प्रजु० ॥२॥ देव विजय प्रनु चरण शरणके, बोत बरस चिरंजीवो ॥ प्रजु ॥३॥ पद बहु॥पारसनाथ आधार प्रनु मेरो ॥पाणाटेक॥ श्रा जव परजव वांडित पूरे, शिवपदको दातार रे॥ ॥ मेरो०॥ १॥ वामाजीको नंदन नीरख्यो, ते पा म्या नवपार रे॥ मेरो०॥॥ कहत शामल आशा पूरो मेरे मनकी, सेवककी करो सार रे ॥ मेरो॥३॥ पद सातमुं॥ अजब ज्योति मेरे जिनकी ॥ तुम दे खो मार, अजब ज्योति मेरे जिनकी ॥ टेक ॥ चंड सूरज कोम एकग कीजें, होड न आवे मेरे प्रजुकी ॥तुम देखो॥१॥ जगमग ज्योति जडावका घेणां, शोजा लील वरनकी ॥ तुम देखो॥२॥हीरविजय प्रजुपास संखेसर, आशा पूरो मेरे मनकी॥तु॥३॥ पद आठमुं॥कर कर कर कर कर कर, करने काज तारं॥ अवसर फरी नहीं आवे, तुं मान्यने कह्यु मा रुं ॥ कर ॥१॥ आईं रुठं मनुष्य, तन, अमरने बे प्यारं ॥ करी अकर्म कर्म बांधी, नाख्युं काढी बा 5 ॥ कर ॥२॥ मायाना अंधारा मांही, लाग्युं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) तुने लारं ॥ खाराने मी करीने, मी कडं खारुं॥ कर ॥३॥ सुतने दारा संबंधी, मली खूटे धारूं ॥ जो मले तुने ज्ञान नाव, तो मले का आरुं ॥ करण ॥४॥ सद्गुरुनी साह्य विना, मिटे न अंधारूं॥कहे सुत प्रजुदास, अधिक सारं सारं ॥ करण ॥५॥ . पद नवमुं ॥ चेतन काची रे महीका मेरा ॥ टेक ॥ पड गया बुंद बीखर गया डेरा, लोक कहे घर मेरा रे ॥ चेतन ॥१॥ उपर पटतें नूलण सोहे, जीतर बोत अंधेरा रे ॥ चेतन ॥२॥ जूग ग ग बुनियामें, जूग तन धन मेरा रे ॥ चेत न० ॥३॥ एही अरज तुं कर ले लाश, ए जग को नहिं तेरा रे ॥ चेतन ॥४॥ नवल कहे बिन बिन मत बिसरो, अपना कर लो सवेरा रे॥चेतन॥५॥ __ पद दशमुं ॥ प्रनुपास चिंतामणि मेरो॥ हारे प्रनु पास ॥ टेक ॥ मिल गयो हीरो ने मिट गयो फेरो, नाम जपुं नित्य तेरो रे ॥ प्रजु ॥१॥प्रीत लागी मेरी प्रजुसें प्यारी, जैसो चंद चकोरो रे ॥ प्रजु॥ ॥२॥ आनंदघन प्रजु चरण सरण हे, दीयो मु क्तिको मेरो रे ॥प्रज्जु ॥३॥ इति ॥ पद अगियारमुं॥चं प्रजुजीसें ध्यान रे, मोरी लागी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५ए) लगनवा॥चंगालागी लगनवा जोडीन बूटे, जबलग घट में प्राण रेमोरी॥चं॥१॥ दान शियल तपजावनाना बो, जैनधर्म प्रतिपालरे॥मोगाचंगाशा हाथ जोम कर अरजकरत है,वंदत शेठ खुशाल रे॥मोरीचं॥३॥इति पद बारमुं ॥ मारो मुजरो मानीने लीजें, हो गोमीराय अरज सुणीजे ॥ मुजरो मानीने लीजें ॥ टेक ॥ मुज सेवक पर किरपा करीने, दिल नरी द रिसण दीजे ॥ हो गोमी० ॥१॥ तुं अविनाशीअंतर वसीयो, तुम दीलमां परतीजें ॥ हो गोमी० ॥ २॥ गुणनिधि गोडी दिलमां धरतां, सकल मनोरथ सी के ॥ हो ॥ ३ ॥ रूपविबुधनो मोहन पत्नणे, प्रह उठीने प्रणमीजें ॥ हो गोमी० ॥४॥ इति ॥ ___ पद तेरमुं ॥ राग पंजाबी ॥ पास प्रनु जिन रा या, दील लाया मेरा सां॥पास ॥ ए आंकणी ॥ तन मन मेरे सबही उसस्यां, जीया मेरा आनंद पाया ॥ ॐ दील ॥१॥ अखियां मेरी प्रजुजीकू नि रखे, ताता थे तान बजाया ॥ दील ॥२॥ कर जोमी प्रनुजीकू वंदना करकें,न्यायसागर गुन गाया ॥ दील ॥३॥ इति ॥ पद चौदमुं ॥ राग खमायच॥ करुंसलाम आज, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरख हैयामां पातुं ॥ में गावु आज ॥ करुं सलाम ए आंकणी॥दोउ कर जोमीने अरज करूं मैं, मारा मननी साची कहं बौ. शिवनगरीको राज मागं बौ. तुमकुं दानेश्वरी जाणी जाचुंग ॥ करुंग ॥१॥तुम तो देव बमा हो जिनेसर, तीन जुवनको जी तुम हे नरेसर ॥ प्रजुजीकुं चढता चंदन केसर, तुं हे ब्रह्मा ने तुं हे महेसर ॥ करुं० ॥२॥ तात अश्वसे न वामाजी के जाया, पास प्रनु जिनेसर राया ॥ मे रारे मनकुं बहु तुम नाया, रंग कहे शिव लेनेकुं आया ॥ करुं० ॥३॥ इति ॥ __ पद पहेवू ॥तुमरी॥ते मुक्त पुर गये रहे रे, वारीस कल करम दल खयकर॥ते मु॥ए टेक ॥ अविनाशी अविकार हे, परम हे शिवधाम रे ॥ समाधान सरवं गे रूपी, मेरे मन वसे वसे रे ॥ वा ॥१॥ शुद्ध बुद्ध अविरुफ, वहे अनादि अनंतरे ॥वीर प्रजुके था गे गौतम, अमृत पद लइ रहे रे ॥ वारी ॥२॥ ___ पद बीजं ॥ केरबो ॥ | पियाजी मत चालो, थाने अरज करूं कर जोड ॥ नलांजी पिया अरज करूं कर जोम ॥ ३० ॥ १॥ मुज सरिखी नही सुंद री रे, तुम मत जाउँ बगेम ॥थें ॥२॥ तुमे श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा वालहा रे, बो तमे शीररा मोड ॥ थें ॥३॥ एसो अवसर फिर नहीं आवे, क्युं करो दोमादोम ॥ थें ॥५॥ साचुं ध्यान हृदयमां धारु, महोटां क रमनो मोम ॥ थें ॥५॥ नेम राजुल दोन मोक्ष सिधाये, गुमान कहे कर जोड ॥ थें ॥ ६ ॥ इति॥ __ पद त्रीजुं ॥बीसर मत नाम जिनंदाजीको॥वि॥ टेक ॥ प्रजुजीको नाम चिंतामनि सरिखो, निर्मल नाम सदा नीको ॥ विस॥१॥ नाजिराया मरू दे वीका नंदन, तीन जुवन शिर हे टीको ॥ विस ॥ ॥२॥ चतुर कुशल रंग चोलशुं राचो, यह हे रंग पतंग फीको ॥ विसर० ॥३॥ ___ पद चोथु ॥ केरबो-देखोरे जिनंदा प्यारा, प्यारा जिनंदा जगवान ॥ देखो० ॥ ए आंकणी ॥ सुंदर रूप स्वरूप विराजे, जगनायक नगवान ॥ देखो० ॥ ॥१॥ दरस सरस निरख्यो जिनजीको, दायक चतुर सुजान ॥ देखो० ॥२॥ शोक संताप मिट्यो अब मेरो, पायो अविचल जाण ॥ देखो ॥ ३॥ सफल नई मोरी श्राजकी घमीयां, सफल नये नैनुं प्राण ॥ देखो० ॥ ४॥ दरिसन देख मिट्यो फुःख मेरो, श्रा नंद घन उपकार ॥ ५॥ इति ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) पद पांचमुं ॥ राग सोरठ गिरनारी ॥ मुने वाहा लो लागे बे जिन राजरो दीदार ॥ मुने ॥ श्रांकणी ॥ नाजिया मरुदेवीका नंदा बो जी, तीन भुवन शि रदार ॥ मुने० ॥ १ ॥ मुकुट अनोपम हीरे जड्यो बे जी, कुंमल मुगताफल हार ॥ मुने० ॥ २ ॥ अद्भुत रूप अनुपम विलोकत, उपजत जाव अपार ॥ सह जानंद ऐसी बबी पेखत, पायो जवजल पार ॥ मु० ॥ ३ ॥ पद बतुं ॥ मूरत मोहनगारी जिनंदा तोरी मूरत मोहनगारी ॥ एकणी ॥ दरिस तोरो मोकुं दरि स देवे | उनकी में हे बलिहारी ॥ जिनंदा० ॥ १ ॥ हरिहर ब्रह्मा मोरे दिल नहि आवत ॥ लागत ए मोये प्यारी ॥ जिनंदा० ॥ २ ॥ त्रिसला मात मल्हा रज गावे, पावत शिव दरबारी ॥ जिनंदा० ॥ ३ ॥ पद सातमुं ॥ राग बिहाग || नाजिराजा घर जाई, सब मिल देत बधाई ॥ एकणी ॥ नाजि राजाजी कुं पुत्र जयो हे, सब सखियन मिल मंगल गाई ॥ सब० ॥ १ ॥ इंद्राणी मिलि मंगल गावे, मोतीयन चो क पुराई ॥ सब ॥ २ ॥ श्रीश्रदिश्वर दरिसन कर रे, चंद विजय गुण गाई ॥ सब० ॥ ३ ॥ इति ॥ पद श्रमुं ॥ राग काफी ॥ खतरा दूर करनां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) दूर करनां, एक ध्यान प्रभुका धरनां ॥ खतरा दूर क रनां ॥ दू० ॥ टेक ॥ जब लग पांचो निर्मल करना, तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा० ॥ १॥ क्रोध मा न माया परिहरनां, समितिगुप्ति चित्त वरनां ॥ ख तरा० ॥ २ ॥ संवर जाव सदा मन धरनां, आतम दुर्गति हरनां ॥ खतरा० ॥ ३ ॥ धन का कंचनकुं क्या करना, आखर एक दिन मरनां ॥ खतरा० ॥४॥ ज्ञान उद्योत प्रभु पाये परनां, शिवसुंदरी सुख वर नां ॥ खतरा० ॥ ५ ॥ इति ॥ पद नवसुं ॥ पानी में मीन पियासी रे, सुन सुन यावत हांसि रे ॥ टेक ॥ सुखसागर सब ठोर नस्यो हे, तुं कां जयो उदासी रे || पानी० ॥ ॥ आत्मज्ञान बिन नर जटकत है, क्या मथुरा क्या कासी रे ॥ पानी० ॥ २ ॥ मान मुनि कहे ए गुरु साचो, सेह जें मिले अविनाशी रे || पानी० ॥ ३ ॥ इति ॥ पद दशमं ॥ जिनसें प्रित लागी, लागी लागी मोरी जिनमें प्रीत लागी ॥ टेक ॥ काल अनंतें अब प्रभु पा यो, जाग्य दशा मोरी जागी ॥ लागी० ॥ १ ॥ अब तोरे चरण शरणपें आयो, जवजव जावळ जागी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लागी० ॥२॥ श्री चिंतामणि पूजा करतां, माया मुकत अब मागी ॥ लागी ॥३॥ पद अगीयारमुं॥ में तो तोरी आजही महीमा जाणी ॥ टेक॥ कायकुं नव बिच यही जीउ जमता, कायकुं बोत फुःख दानी ॥ मेंतो ॥१॥ एसी शाखा में बोत सुनी हे, जैन पुरान बिखानी ॥ मेंतो ॥२॥ नूधरकुं सेवा फल दीजें, हम जाचक तुम दानी ॥ ॥ मेंतो ॥३॥ ___ पद बारमुं ॥ राग बिहाग ॥ शीयल नित पालो प्रानी, शीयल धरमको मूल रे ॥ शीयल ॥ टेक ॥ शीयल सती सीतायें पादयु, अग्नि कुंम जयो पानी रे ॥शीयल० ॥१॥ शीयल सती सुलझायें पाट्यु, चा लणी में नर लीयो पानी रे॥शीयल ॥२॥ शीयल शेठ सुदर्शने पादयु, शूली थइ विमानी रे ॥ शी यल०॥३॥ दान शीयल संयम व्रत पाल्यां, शीवसुख आवादानी रे॥ शीयल ॥४॥ __ पद तेरमुं ॥ रागधन्याश्री॥ताल चोताल ॥शांति जिनेश्वर साहेबा रे, तीन नुवनको महीमा गजे ॥ शांति ॥ ए श्रांकणी ॥ स खाणी थारे वारे, क र जोम करते मनुहारे॥ शांति ॥१॥ मोहनी मू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) रत लागे प्यारी, बहेर बहेर में निरखुं निहाली ॥ कांतिविजय साहेब मोरा रे, नव नव चरण शरण मोहे तोरा ॥ शांति॥॥इति ॥ ___ पद चौदमुं॥राग धन्याश्री॥प्रजुजी मोरे नैननमें बस रो॥ए आंकणी॥नानिराजा मरुदेवीको नंदन, शुक्क ध्यानको धरैया ॥ मो॥॥अपरानाचे किन्नर गुण गावे, मुखसें बोले थाथैयां ॥मो॥॥ मृदंगकी धिमक सुणी, जनरंग हीतमच्चो, बहेर बहेर खेत बलैं यां ॥ मो० ॥३॥ इतनी अरज सुनी, अमृत नजर नरी, कुशल कल्याण करैया ॥ मोरी० ॥४॥ ___पद पंदरमुं ॥ जिनजीसें हमारी लगन लगी॥ए श्रांकणी ॥ अजब अनोपम सूरत जिनजीकी, मूरत जिनजीकी, देखत सूरत चित्त ठरी ॥ जिनजी० ॥ ॥१॥ मोतनलाल कहेरे अपननसें, चरण कमल पर चित्त पर। ॥ जनजी० ॥२॥ति ॥ पद शोलमुं॥ बलिहारी जाऊं, वारी महावीर ता री समोवसरणकी बलिहारी॥ ए आंकणी॥त्रण ग ढ उपर तखत बिराजे, बेठी ने परखदा बारी॥महा० ॥१॥ वाणी जोजन सहु कोश् सांजले, तास्यां ने नर ने नारी ॥ महा० ॥२॥ आनंदघन प्रजु एणी परे Jain Educationalerational For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोले, श्रावा ते गमनने निवारी ॥ महा ॥३॥ पद सत्तरमंकाफी॥ बंदात क्युनले, श्रीजिनवर को नाम ॥६॥ ए आंकणी॥ काल अनंता बहु कुःख सहीयां, कबुए न पायो मान ॥ चरण जिनवरके अब थे पायो, मीट्यो मन अनिमान ॥ बं० ॥१॥ कीमी कुंजर एक करि जाणे, राखे हृदयमा ध्यान ॥ कर जोमी गुमान गुण गावे, पावे पदवी विमान॥॥॥ पद अढारमु ॥ कोण कर जजाल, जगमे जीवना थोमा ॥ को॥ ए श्रांकणी ॥ माता पिता तो जनम दीयो हे, करम दीयो रे कीरतार ॥जगमेंा॥जूठीरे काया ने जूठी रे माया, जूग सब संसार जगमें॥ ॥२॥ कोश मरे दस वीस वरसमें, को बुढा कोश बाल ॥ जगमें॥३॥ एही संसार हे उसका पा नी, धूप पडे मर जाय ॥ जगमें ॥४॥ एही संसार हे अदकी खामीयो, जे फिर आवे कोय वार ॥ जग में ॥ ५ ॥ चेतन राय समजकर चालो, ज्युं पामो नव पार ॥ जगमें ॥६॥ __ पद उंगणीशमुं ॥ फरसे रे महाराज, आज राज झझि पाई ॥फ॥ नवको बिघन दूर गयो, पूरव पुण्य उदय जयो, जिन तुमारो दर्श लह्यो, आनंदधून Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) बाई॥ फ॥१॥ पूजत शिव पावत हे, श्रागम युंगवता हे॥शांतिके घर जावत हे, रिद्धि लय लाई ॥फार सुरशशि (देवचंद) कृत स्तवनो. __स्तवन पहेढुं ॥ रीत सरवथी न्यारी, होजी तमा री रीत सरवथी न्यारी॥ ए श्रांकणी ॥ मुठी बाकुल माटे प्रजु रीज्या, चंदनबालाने तारी॥ हो ॥१॥ चमकोशीयो गयो देवलोके, करणी ते के सुधारी॥ ॥ हो ॥२॥ सूरशशिना वाला रसिक शिरोमणि, चरणकमलनी बलिहारी॥ हो ॥३॥ स्तवन बीजं ॥ आंखलमी श्रणीयाली,होजी तमा री आंखलड़ी अणियाली ॥ ए श्रांकणी ॥ श्रांखमी जोश्ने माझं मन ललचाएं, वदन सकोमल नाली ॥ ॥ हो ॥१॥ नैन कचोला रुमां प्रेमनां नयां , कीकी मनोहर काली ॥ हो ॥२॥ नखशिख रूप ताहारं जे निरखे, नित नित तेने दीवाली ॥ दो॥ ॥३॥ सूरश शिना वाला रसिक शिरोमणि, लागी डे तुम संग ताली॥ हो० ॥४॥ ___ स्तवन त्रीजुं ॥ मुखमलाने मटके, होजी तमारा मूखमलाने मटके ॥ ए आंकणी॥मधुर प्रवाली हसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ने जुलं बो, मन हरी व्यो बो लटके ॥ हो ॥१॥ नृ गुटी बाण मारो गो मोहन, कालजा वच्चे खटके ॥ हो ॥२॥वशीकरण विद्या वसावो बो नेणमां, तुम चरणे चित्त अटके ॥ हो ॥३॥ सूरश शिना वाला रसिक शीरोमणि, लेहेरुं श्रावे नेम चटके ॥४॥ स्तवन चोथं ॥ मूरतीये मनमु लोजाणुं, होजी त मारी मूरतीये मनसु लोनाएं ॥ ए श्रांकणी ॥ अंगें आजूषण धस्यां बहु जाती, निरख्यां सफल रे वहा j॥ हो ॥१॥ धन दोलत बीजी कोण कामकी, जेने प्रज्जु खजानो नाणुं ॥ हो ॥२॥ तुम करुणा थी मनोरथ फलीया, एमां फेर नही निश्चें जाएं। ॥ हो ॥३॥ सूरशशिनां बहु कारज कीधां तमे, चूल्या नथी एके टाणुं॥ हो ॥४॥ - स्तवन पांचमुं ॥धन धन रे दीवाली मारे आजु नी रे, में तो बबी निरखी जिनराजनी रे॥धन धनरे दीवाली मारे आजनी रे॥ टेक ॥ पहेरी आंगी अलौ किक जातिनी रे, माही बुट्टी दीसे नात जातनी रे॥ धन ॥ १॥ मणि हीरला मुकुटमा जड्या बहु रे, काने कुंमलनी शोना शी कहुं रे ॥ धन॥२॥ मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ने किरपा करी ते हुँ कहुं कशी रे, मारे वहाले मुऊ सामुंजोयुं हसी रे॥ धन ॥३॥ प्रज्जु शांति जिणंद हृदये वस्या रे, यश् सूरशशिनी चडती दशा रे॥धणा॥ स्तवन बई॥धन धनरे चोघमीयु मारे थाजनुं रे, में तो मुखडं जोयुं जिनराजनुं ॥धन ॥१॥ टेक ॥ वालाना वदनपर वारं कोटि चंद्रमा रे, प्रजुने निशि दिन वंदुं बुं हुं तो खमा रे ॥ धन०॥॥प्रनु नुं मुखउँजोतां रढ लागशे रे, दुःख जनम मरणतुं जा गशे रे॥ धन ॥३॥ वालो मननां मान्यां ते सुख आपशे रे, करी पोतानो अक्षयपद थापशे रे॥धन ॥४॥ गाउं गीत गान तान सहु सोहामणां रे, सू रशशिने सदाते वधामणां रे ॥ धन ॥५॥ स्तवन सातमुं ॥ धन धन श्राजुनो दिन रलीया मणो रे, सूरज सोनानो जग्यो सोहामणो रे ॥धन॥ टेक ॥ वाहाणुं वातां प्रजुने चरणे नम्यो रे, जिनराज ते माहरे मन गम्यो रे ॥धन ॥ १॥ नव ग्रह स मा थया मारे आजथी रे, वली दशा ते श्री जिनरा जथी रे ॥धन ॥२॥मुह जोतां ते दुःख सरवे ग युं रे, वालानुं ध्यान सदा चित्तमा रह्यं रे॥धन०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 30 ) ॥ ३ ॥ श्रापी सेवा ते शुद्ध मनयी खरी रे, सूर शशि उपरे करुणा करी रे ॥ धन० ॥ ४ ॥ स्तवन श्रमुं ॥ मारे आज यानंद वधामणां रे, ढुं तो लेउं रे वादालाजीनां जामणां रे ॥ मा० ॥ टेक ॥ मुने दास पोतानो जाणीयो रे, थडातां ठेका श्र यो रे ॥ मारे० ॥ १ ॥ श्राप्यं दर्शन जे डुर्लन देवने रे, मुने कीधुं तुं रहेजे मारी सेवमें रे ॥ मारे० ॥२॥ एवो दीधो जरोसो साचा गुरु रे, प्रभु विना जगमां मि थ्या सहु रे ॥ मारे० ॥ ३ ॥ महेर करीने महारा मनमां रम्या रे, सुरशशिने जिनराजजी गम्या रे ॥ मारे० ॥४॥ छाथ पद ॥ सवा लाख टकानी जाये एक घमी, एक घमी रे जाय एक घमी ॥ स० ॥ ए संसार जैसा सांबेला, घमपण या घोने चडी ॥ मागी तुंगीने छत्र धरायो, केनो कंदोरो केनी कमी | सवा० ॥ १ ॥ साधो जाइ जिनने संजारो, जन्म दशा जेम यावी चडी ॥ कहे लींगो जो जगवंतने, मोक्ष जवानी ए वात खरी ॥ स० ॥ २ ॥ इति ॥ अथ पद ॥ चेतन तुं क्या करे यारी, दिवाने कर्म सों जारी ॥ तेरी संपत् सबे हारी, समऊ ले शीख तुं सारी ॥ चे० ॥ १ ॥ सऊन तुं मोहका संगी, चलत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) हे चाल बेढंगी॥घर दाराका हेरंगी, कीता नहिं बात ए चंगी॥०॥॥अनादिकी जूल हे तेरी, कुमतिसों चेतना घेरी॥संग लगि दार दे फेरी, गो रे मोहकी चेरी ॥ चे०॥३॥ज्ञानी तुं ज्ञान बिन नूला, प्रेमके फं दमें फूला॥सही रासी कर्मकी हला, सयाने समज तुं दूला ॥ चे ॥४॥ खोज कर एक तुं मेरा, आपमें आप पद तेरा ॥ अमृत कहे पासजी केरा, सेवीयें पदयुग सवेरा ॥ चे ॥ ५॥ इति ॥ सवैयो । नगर नरेसर रूगे,खान सुलतान रूठो, अमिर उमराव रूठगे, सकल सनाये॥ काका कुटुंब रूगे, सासरे मोसाल रूठो, अवल पमोशी रूगे, नांही परनायें ॥ जननी वनिता रूठी, सुत सुता बाप रूठगे, नाइ नाश्बंध रूठगे, दिलमा न लाये ॥ जगवंत नवतारन, नक्तके उझारन, सब जग रूठगे प्रजु, तुं नां रूठो चाहियें ॥१॥इति ॥ ॥अथ श्री पार्श्वनाथजीनी लावणी॥ अगम अगमधु बाजे चोघमा,सवाई मंका साहेब का, बननं बननं अवाज होता,महेल बनाया गगनोंका ॥ कल्याण पारसनाथ नामका,नित बाजता हे चोघमा, तीन लोकमें सच्चासाहेब,पारसनाथ अवतार बडा॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 32 ) बनारसी नगरी में तेरा जनम है, माता वामाके नंदा ॥ अश्वसेन के कुल में शोने, जैसा शरदपूनम चंदा ॥ स्वर्ग लोकमें हुवा थानंदा, इंद्राणी मंगल गावे ॥ तेत्रीश क्रोम देवता मिलकर, छव करने यावे ॥ २ ॥ कोइ श्रावता कोइ गावता, कोइ नाम लेता हे देवा ॥ चोसठ इंदर रज करंता, चंद्र सूरज करता सेवा || केइ सुर नर साहेब के श्रागें, अरज करता खडा खमा ॥ जिनकेस रूपको पार न पावे, जिनका गुण हे सबसें बना ॥ ३ ॥ डर देशसें खाया जोगी, बडे जोर तपसा करता ॥ नी चें लगाता ज्वाला जोगी, बडे बडे जोकें खाता ॥ बार बरसकी उमर जिनजीकी, बोटेपनमें बहोत कला ॥ ब रोवरी के लीये सोबती, तपसीकूं देखन चला ॥१४॥ ज्ञान देख के बोले जोगी सें, ऐसी तपस्या क्युं करता ॥ जो गी तेरे बड़े लकडे में, नाग नागणी दो जलता ॥ पारस नाथ जोगी शुं कहेता, तोबी तपसी नही सुनता ॥ लक मे दीये फेंक जंगल में, लोक तमासा देखता ॥ ५॥ क्या कीया बे जोगी तुमने, नाग नागणी जला दीया ॥ सर न नवका दीया नागकूं, धरणेंद्र पदवी पाया ॥ बमी उमेदसें या साहेब, संवत्सरीका दान दीया ॥ मा ता पिताकी श्राज्ञा लेकर, महाराजाने योग लीया ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजबोकें चले जंगलमें, जुगतीसें काउसग्ग कीया। बडे धीर गंजीर तुमने, तीन लोकमें नाम कीया उष्ण कालकी बमी धूपमें, निरंजन निराकार खमा ॥कमग सुरने कीया कमाका, नननंडल बादल चमा ॥॥ उदी दिनको कमगसुरने, पीबला दावा जगवाया ॥ मेघमा लिकी सेना लेकर, जलकू जलदी बुलवाया ॥ बमा कीया घमघोर जोरसे, पवन चलाया मतवाला॥ कमम कमर कर हुवा कमाका, चमक बीजका अजुवाला || मूसल धारें मेघ बरसता, गगन गाजता चोताला ॥ सात खूमकी बमी ऊमीमें, प्रनु खमा हे मतवाला॥ नाक बराबर थाया पानी, नाथ निरंजन धीर बमा । पराजय नहीं होय जिनुका, ऐसा प्रनुका ध्यान चमा ए संकटसें सिंहासन मोत्या, दूवा घंटका अवाजा ॥थ वधि ज्ञानसें इंसें देख्या, धा धा धरणी राजा ॥ध रणीधर जलदीसें आया, पदमावतीकू संग लीया ॥ पदमावतीने लीयेशीरपर, शेषनागके बत्रकीया॥१॥ कोमिउपाय कीये कमग्ने, कुबइलाज नही चलता ॥ तरनेवाला साहेब उनकुं, बलने वाला क्या करता ॥ जीते श्रीजिनराज हारके, कमउहाथ दो जोम खमा॥ धरणीधर साहेबके आगे,अरजी करता खमा खमा ११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) केवल बेश् शिवपूरकू पहोचे, पारसनाथ मुफ मतवाला ॥लगी ज्योतमें ज्योत दीपकी,तपेतेजका अजुवाला॥ वीसनगरमें पारसनाथका, देवल बनाया तेताला ॥ बडे देवलमें इंदर सोहे, घंट वाजता चोताला ॥१२॥ बमी जुगतसे सिंघासन कर, कोट बनाया देवलका ॥ जगोजगोपर शिखर चढाया, बमा काम दरबाजेका ॥ नामंडलके आगे शोजता, मूल गंजारा आरसका ॥ पी. पचीश देरीयां सोजित, सिरे काम सिंहासनका ॥ मूलनायकके उपर सोहे, सहस फणा महाराजजीका॥ चोमुखकी चतुराश बनी हे, एसा काम में नही देखा। अढारसे पांसह सवा, मुहूर्त फागुणमास बमा ॥शु दित्रीजकू तखते बेठे, जगोजगोपर नाम चला॥१४॥ देस देसके संघ बहु मिलकर, तेरे दर्शनकुं श्राया ॥ जगत् गुरू जिनराज जगत्में, बमी तेरी अकल माया॥ धर्मचंद जोश्ता सवाश्ने, बमा सामी वात्सत्य कीया। सकल संघकी याज्ञा लेकर, बमा शिखर नीसान दीया ॥१५॥ करमचंदने देवचंदने, खेमचंदने खुब कीया ॥ पारसनाथकुंतखत बेगके, जगोजगोपर नाम कीया ॥ कीर्तिविजय गुरु राजजी प्रणमुं, पायगुरुका राज बडा॥ गबुबचंद साहेबके आगे, जिनशासनका काम बमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) ॥१६॥तेजा गावतचंगरंगसें, ग्यान ध्यानसें खमाखमा॥ हाथ जोमकर अरजी करता,पारसनाथजी तुंही बडा॥ बड़ा काम तेरे हे साहेब,मुखसें नहिं कह्या जाता॥शिव रमणीकुं वरी हे जिनजी, नविजनकू सुखके दाता॥१७॥ ॥अथ नेमनाथजीनी लावणी॥ ॥ नेमनाथ मोरी अरज सुनीजें, में हुं दासी चर नोकी ॥ तोरन आइ फेर मत जाउं पीया, तुमकुं सोग न जादवकी ॥ नेम ॥१॥ जान ले तुम ब्याहन आए, लारे सेना माधवकी। बपन्न कोम जादव मिल आये, ए अवसर नहीं फिरनुंकी ॥ नेम० ॥२॥ रथ फेरी गिरिवरकुं सिधाये, हमकुंबांडी नव जवकी। मेरे सामरे श्याम सबुने, शहां नहीं अब रेनेकी ॥ नेमण ॥३॥ सुण जिनजी में तोकुं कडं, देखुं शोना गि रिवरकी ॥ मात पिता वंधव सब बंमी, जागुं संगें जादवकी॥ नेम ॥४॥हाथ जोरके विनवे राजुल, बात सुनो पियु मुफ घरकी॥ हमकुंबोड चले निर धारी, अब हे प्रीतम सरणेकी ॥ नेम० ॥५॥ नेम कहे तुम सुनो हो राजुल,विषय रस हे विष सरखी॥ए संसार असार निरंतर, कर करनी ए तरतुं की ॥नेम० ॥६॥पीयुजी पासे संयम लीनो, जिनसे कारज सर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) रॉकी ॥ तपस्या करीने उत्तम कीनी, ए नवपार क तरतुंकी ॥ नेम॥ ॥ पीयुजी पहेलां राजुल नारी, पहोतां सेज परमपदकी॥ केवल पामी नेम सिधाये, एही शोना हे जिनकी ॥नेम॥ ७॥ चतुरकुशल ए कही लावनी, जिनसें काया ऊझरनुंकी॥ अरिहंत ध्यान धरे दिलमांहे, फिर फेरानहिं फिरनुंकी ॥ ए॥ ॥अथ श्री जिनदासजी कृत घन ॥ १॥ अरे तुम जपो मंत्र नवकार, जिनुंसे उतरोगे नवपार ॥ होय तेरी कायाको आधार, सफल कर ले थपनो अवतार ॥ ध्यान तुम मनमें धरो नर नार, खाण फुःखकी ए हे संसार ॥ करो प्रजु न्याल अब जिनदास, रखो प्रनु मुफ चरणोके पास॥१॥ २॥ सरक जा कुमती नार काली, तेरी संगतसें गई लाली ॥ सोबत समताकी में टाली, श्रातमा तप में नहिं घाली ॥ अनंत नव वीत गया खाली, वेद ना निगोदकी जाली ॥ अमरपद जिनदास मागे, स दा पद प्रजुजीकुं लागे॥२॥ ३॥ सीस नित नामुं नाजिनंदन, चरण पर चडे केसर चंदन ॥ करत सब इंसादिक बंदन, कटत हे कर्मोका फंदन ॥ साध्यो तें शिवपुरको साधन, सर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) जीवनकुं सुख कंदन ॥ जिनंद गुण जिनदास गावे, सीस चरणोंसें नमावे ॥३॥ ४॥ बोलत हैया मेरा हसकर, चढावु चंदन चू वा घसकर ॥ पेठा में धर्मोमें धसकर, पापदल दूर ग या खसकर ॥ चेतन हुवा खडा कमर कसकर, हग या कोका लसकर ॥ श्री जिनराज जहाज खासा, शरण जिनदास लीया बासा ॥४॥ ५॥ समज मन मेरा मतवाला, तकें नहिं कोड हटकणवाला ॥ वस्या तेरे हश्ये कुगुरु काला, दिया तें सुरगतिकुं ताला ॥ फेरतो ममताकी माला, वाल तो जगवंत पर नाला ॥ दयासें दे दिया ताला, देखो जिनदासका चाला ॥५॥ ६॥ कीया में गणधर प्रेमपती, मुके वरदायक हे सरसती ॥ करी निर्मल निग्रंथ मति, पंठ पर खमे जागता जति ॥ मुजे बलवंत न सोल सती, मीटी मेरी उर्गतकी सब गति ॥ऐसा धन जिनदास गावे, अचलपद नक्तिसे पावे ॥६॥ ____॥ बीकट घट उरगतका नारी, नीर ज्यां जर ती कुमति नारी ॥ बरठी उन नैनोकी मारी, मुख्या केश कामी संसारी॥श्नोकी हो रहि खूधारी, जीत्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) G कोइ सत्य धरमधारी ॥ प्रभु तुम परमारथ पाया, सरण अब जिनदास आया ॥ ७ ॥ ८ ॥ चेत नर निगोदका बासी, कराई जगमें तें हांसी ॥ कुमतिकि पकी गले फांसी, सुमतिसुं रखी हे ऊदासी ॥ कुमति बसी सेज खासी, मान रह्यो ममताकुं मासी ॥ हियो खोल अरिहंतको परखो, करो जिनदास च्याप सरखो ॥ ८ ॥ [ ॥ फल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी नहीं मानी ॥ कीया नहीं गुरु निग्रंथ ग्यानी, कान सें लगी कुमति रानी ॥ जगत् में उतर गया पानी, गति तेरी डुरगतिकी ठानी ॥ सेवक तोरा जिन दास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ ए ॥ १० ॥ सफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रों की तें मानी ॥ किया निज गुरु निर्ग्रथ ग्यानी, कानसें लगी सुमति रानी ॥ जगत्में अधिक चढ्यो पानी, गति तेरी सुरगतिकी ठानी ॥ सेवक तेरा जिनदास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ १० ॥ ॥ अथ शीखामानी लावणी ॥ ॥ चल चेतन अब उठ कर अपने, जिनमंदिर जइयें ॥ कीसी की मूंकी ना कहीयें, कीसी की बूरी ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) कहीयें ॥ चल० ॥ ए श्रांकणी ॥ चरन जिनवरजी का नेट्या ॥ चरण ॥ जवनव संचित पाप करम स ब तन मनका मेट्या ॥ सुकृत कीजें, महाराज॥ सुकृत ॥ जिनवरका गुण जज लीजें, समकित अ मृत रस पीजें, लाल जिनन्नक्तिको लहीयें रे॥लान ॥ चल ॥१॥ करो मत मुखसे बमा॥करोगातज तामस तन मनकी सुमता, सें रेनां नाश् ॥रीतसें बोलो, मेरी जान ॥रीत०॥ आतम समतामें तोलो, मत मरम पारका खोलो, मौन कर तन मनसें र हियें रे॥ मौन ॥ चल॥२॥ जोबन दिन चार तणो संगी रे॥ जोबन ॥ अंत समय चेतन उठ चाले, काया पडि नंगी ॥ प्रीत सब त्रूटी, मेरी जान ॥ प्रीतः ॥ श्राऊखाकी खरची खूटी, चेतनसे काया रूठी, सुख दुःख श्राप किया सहिये रे ॥ सुख०॥ चल ॥३॥ जगत्से रहेनां ऊदासी रे ॥ जग ॥ परख्या में जिनराज हरो, मेरी उरगतकी फांसी ॥ तजो सब धंदा, मेरी जान ॥ तजो ॥ जिनवर मु ख पूनम चंदा, जिनदास तुमारा बंदा, मेरे एक जि न दर्शन चहिये रे ॥ मेरे० ॥ चल ॥४॥१॥ ॥तुम नजो जिनेसर देव, मुगति पद पाय॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) मुगति॥ अब अचल अखंडित ज्योत, सदा सुखदा ३॥ ए आंकणी ॥ में रुट्यो चोराशी मांहे, मुल्यो में जरमा जुट्यो ॥ महारेजदये अनंतां पुःख, बांध्यां जब कर्म ॥ में कदियेक हर्ज रंक, फिस्यो तजि शरम ॥ फिस्यो॥अरु कदियेक राजा जयो, गरथको ग रम ॥ जब गरव आण कर बोल्यो, पारकां मर्म ॥ पार॥ पण निर्मल जुगमें जैन, कीयो नहीं धर्म ॥ अब मनख जनममें चेत, घडी सुन थारे ॥ घमी० ॥ अब० ॥१॥ में सुर नरका सुख वास, अ नंती पाया ॥ अनं० ॥ महारे शिव समताका सूख, हाथ नहीं आया ॥ में कुगुरु ने कुदेव, जला कर ध्या या ॥ जला ॥ में ऊलयो अनादि अग्यान, विषय लोग नाया ॥ में पड्यो लोजके फंद, जोडतो माया ॥ जोड ॥ पण लग्यो अंत जब श्राय, कालने खा या ॥अब परहर सब परमाद, धर्म कर ना रे ॥ धर्मः॥ अब० ॥२॥अब पुर्खन अवसर लही, तूं सुकृत कर रे ॥तू सुकृ०॥ अब दान शीयल तप जा व, हीयामें धर रे ॥ तुं करमकी माला काट, पाप प रिहर रे ॥पाप०॥ अब वार वार कहुं तोहे, जगत्सें तर रे॥ तुं निर्मल नयणे देख, नरकसुं मर रे ॥न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) र॥तुं शीख सुगुरुकी मान, अग्यानी नर रे ॥ अब परत्रिया कर जान, बेन ने मा॥ बेन॥अब० ॥३॥ अब जिनवर मुज मन नायो, सदा गुन गाऊं ॥ स दा० ॥ अब इतनी किरपा करो, नरक नही जाऊं। अब नव नवमांही देव, जिनेसर पाजं ॥ जिने ॥ में मन वच काया करी, चरण चित्त लाजं ॥ए दया धरम हितकार, सदा में चाउ ॥ सदा॥ए चारासा के मांहे, फेर नहिं श्राऊं ॥ युं अरज करे जिनदास किरत ए गा॥ किरत ॥ अब० ॥४॥ ॥२॥ ॥शीखामणनी लावणी॥ कब देखु जिनवर देव, जगद् गुरु ग्यानी ॥ जगण ॥को थाप समो नही उर, जो अंतरध्यानी॥ए आंकणी ॥ अब विषम वन संसार, जगत्में न टक्यो ॥जग॥ मुळे अनमतमें ले जाय, नरकमें पट क्यो ॥ अब लडं दरिसण जिनवरका, 1 दिन कब ऊगें ॥ 5 ॥ मुऊ मनकी वंडित आश, अधिक सब पूगे ॥ अब जिनदरसन बिन नयन, करे मुफ पानी ॥ ऊरे ॥ कोश् ॥१॥ थारे कुगुरुको उपदेश, हि यामें गयो ॥हिया० ॥ पण सरस नेद समकितको जीव नही पायो ॥ अब जैन धर्म निज माल, Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) मूरख मत खोवे ॥ मूरख० ॥ ए सुमति सुरगको पंथ श्रमरगत होवे | छाव डुर्लज जिननक्तिकी, लही निज टानी ॥ लही ० ॥ कोइ० ॥ २ ॥ ब सुर नर गावे गीत, जब जग लागी ॥ जब० ॥ जिहां नाचत नृत्य अनेक, लसकुं त्यागी ॥ अव मोहत मन नरपतिका, गगनधुनि गरजे ॥ गग० ॥ ए जिन वर महिमा अनंत, ध्यान दिल धरजे ॥ एसी अधि क बबी जिनजीकी, मेरे मन मानी ॥ मेरे० ॥ को इ० ॥ ३ ॥ अब जिन चरणोसें रंग, अधिक दिल लागो ॥कि० ॥ में पस्यो जिन गुन छाजब, सुरं गी वाघो ॥ श्रा सफल घडी समकितकी, हाथ ब श्राइ ॥ हाथ० ॥ में गगन गमनकी पांख, श्रमूलक पाइ ॥ अब बोलत युं जिनदास सुनो जिनवानी ॥ सुनो० ॥ कोइ० ॥ ४ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ शीखामणनी लावणी ॥ ॥ एक जिनवरका निज नाम दियामे लेनां ॥ हिया० ॥ गु लगी लगन जिनवरसें, आप खुश रहेनां - सदा खुश रहेनां ॥ ए की ॥ अव निर खुं जिन दीदार, दरस कव पाउं ॥ दर० ॥ जगमें जिनवर निज नाम निरंजन ध्यानं ॥ अब रहे न For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) यन लोनाय, हियो नित फरके ॥ हियो० ॥ मोहे जिनदरसनकी श्रास, पाप सब सरके॥ अब सुरपति निरखत रूप, नजर नर नेनां ॥ नजर ॥ अब॥१॥ अब मिट्यो मरण नव नवको, श्रास मुफ पूरो ॥ स० ॥ में जपुं जिणंदको नाम, मेनुं नहीं रो॥ ए घनघाति घाले घेर, करम सब चूरो ॥ कर॥ में कुरगति नमतां आयो, आप हजूरो ॥ अब शुज न जरां मुफ निरख, मुगती पद देनां ॥ मुग०॥ श्रवण ॥२॥ अब हे हीराकी खान, ग्यान निज करनी॥ ग्या॥ ए मुगति पंथ दातार, सुमतिकी घरनी ॥ ब शुक्ल ध्यानकी पेमी, चढा नीसरनी ॥ चढा ॥ एसा जगमें संत सुजान, मुक्ति पद वरनी ॥ अव आपो मया कर करके, अमर सुख चेनां ॥ अमर ॥अब ॥३॥ अब बैठ करूं में मोज, आनंदके घर में ॥श्रा॥ में परख्या श्री जिनराज, जगत् कुण नर मे ॥ में फुःख जोगता हे अनंत, करे कुण लेखो ॥ कण्॥ में अरज करूं तन मनसें, नजर नर देखो॥अब बोलत युं जिनदास, सरवरस बेनां ॥ स॥ अ॥४॥ ॥ उपदेश लावणी॥ ॥खबर नहिं आ जुगमें पलकी रे ॥ खबर ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) सुकृत करनां होय तो कर ले, कोन जाने कलकी ॥ ए यांकणी ॥ या दोस्ती हे जगवासकी, काया मं डलकी ॥ काया० ॥ सास उसास समर ले साहेब, आयु घटे पलकी ॥ खबर० ॥ १ ॥ तारामंगल रवि चंद्रमा, सब हे चलने की || सब० ॥ दिवस चारका चमत्कार ज्युं, बीज लिया जलकी | खबर० ॥ २ ॥ कू ड कपट कर माया जोगी, करि बातां बलकी ॥ क रि० ॥ पापकी पोटली बांधी सिरपर, कैसें होय हल की ॥ खबर० ॥ ३ ॥ या जुग हे सुपनेकी माया, जै सी बुंदा जलकी ॥ जैसी० ॥ विषसंतां तो वार न लागे, दुनियां जाये खलकी ॥ खबर ॥४॥ मात तात सुत बांधव बाई, सब जुग मतलब की ॥ सब० ॥ काया माया नार हवेली, ए तेरी कबकी ॥ खबर० ॥ ५ ॥ मन मावत तन चंचल हस्ती, मस्ती हे बलकी ॥ मस्ती० ॥ सद्गुरु अंकुश धरो सीसपर, चल मारग सतकी ॥ खबर० ॥ ६ ॥ जब लग हंसा र हे देहमें, खुसिया मंगलकी || खुसि० ॥ हंसा बोम चल्या जब देही, मिटियां जंगलकी ॥ खबर० ॥ ॥ ७ ॥ दया धरम साहेबको समरन, ए बातां सत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ज्य) की ॥ ए बातां ॥ राग द्वेष उपने नही जनकुं, वि नत। अखमलकी ॥ खबर० ॥6॥५॥ ॥सुमति कुमतिनी लावणी॥ हारे तुं कुमति कलेसण नार, लगी क्युं केडे ॥ लगी ॥ चल सरक खडी रहे दूर, तुजे कुण बेडे॥ ए आंकणी ॥ हारे तुं सुमतिको नरमायो मुझे क्युं बोडी ॥ मुळे ॥ मेरी सदा शाश्वती प्रीत, बिनकमें तोमी ॥ तुझ बिन सुनि मेरी सेज, कहुँ कर जोडी ॥ कहुं ॥ ज चलो हमारे संग, सुखें रहो पहोडी ॥ यु जूर जूर कुमती आंसु, अांखसे रेडे ॥श्रांख ॥ चल ॥१॥ हारे तेरी नरक निगो दकी सेज, सेंति में रूग्यो ॥ सेंति ॥ पकड्यो सा चो जिनराज, संग तेरो बूट्यो ॥ तेरी मूरख माने वात, हैयाको फूट्यो ॥ हैया ॥ में सहेज हुवो हुँ दूर, तार तेरो त्रूट्यो ॥ तुं कर दूरसे बात, आव म त नेडे ॥ आ ॥ चल ॥२॥ तेरी अनंतकालकी प्रीत, पलक नही पाली ॥ पलक०॥सुमतिके लागो संग, मुके क्यों टाली ॥ युं सुमतिको सिरदार, सुना वे गाली ॥ सु०॥ तेरी हम दोनुं हे नार, गोरी उर काली ॥ तुं हमकू ठेले दूर, सुमतिकुं तेडे ॥ सुम॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८६) ॥ चल० ॥ ३ ॥ अब कुमतिको ललचायो, रती नही रुगियो || रती० ॥ सुनकर सूत्रकी शीख, साच होय लगियो | चेतन कुमतिके सेज, दूरसुं नगियो | दूर ०॥ जिनराज वचनको ग्यान, हैयेमे जगीयो ॥ जिनदास कुमति तुं बात, खोटी मत खेडे ॥ खो० ॥ चल० ॥४॥ ॥ उपदेश लावणी ॥ ॥ तुम तजो जगत्का ख्याल, इसकका गानां ॥ इस० ॥ तेरि अल्प उमर खुट जाय नरक उठ जा ना || तेरे सिरपर बेठा काल, करे हे हांसा ॥ में वोलुं साची बात, जूठ नही मासा ॥जू० ॥ तूं सूता हे कुण निंद, किसी कर खासा | छाब सेव देव जि नराज, खलक में खासा ॥ खल० ॥ तेरा जोबन पतं गका रंग, जू सब थासा ॥ अव ही ये धरो मेरि सीख, समज रे दिवाना ॥ सम॥० ॥ १ ॥ अब बुरी जली सब बात, मून कर रीजें ॥ मून० ॥ ए मुख मीठा संसार, भेद नही दीजें ॥ कर वीतराग विसवास, हिये धर लीजें ॥ हिये० ॥ पण नीच नारका संग, मांहें मत जींजें ॥ सात विसनको संग, प्रीत मत कीजें ॥ प्रीत० तोहें डुरगति दे पहोचाय, तेरो तन बी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 9 ) जे ॥ तुं सुख दुःखका सिरदार, रंक नहीं राना ॥ रं क० ॥ तुम० ॥ २ ॥ तुं बिसर गया जुंग बीच, ना म जिनवरका ॥ नाम० ॥ पच रह्या कुटुंब के काज, किया फंद घरका || तें दया धरम बिन खोया, जन म सब नरका ॥ जनम० ॥ तें पल्ले बांध्यां पाप, क साई सरखा || अब लिया नही ए लाज, बखत पर करका ॥ बखत ॥ तेरी वीति बात सब जाय, जन म ज्युं खरका | अब सुखो सीख सूतरकी, सुलट रे शाना ॥ सुल० ॥ तुम० ॥ ३ ॥ तेरी चरण सेज पर पोढ्या, नंद दिन यया ॥ यनं० ॥ मेरी जगी भूख सब प्यास, सुधारस पाया || मेरे सिरपर तुम सिरदार, जिनेसर राया ॥ जिने० ॥ में चाउं चर नकी सेव, सफल कर काया ॥ ब द्यो दोलत द रसनकी, मेरे एहि माया ॥ मेरे० ॥ युं कारज करे जिनदास, अलप गुण गाया || अब बुरा कुगुरु उप देश, धरो मत काना ॥ धरो० ॥ तुम० ॥ ४ ॥ ७ ॥ ॥ उपदेश लावणी ॥ ॥ तजो काम मद मान लाल, जिनवर गुण नज लीजे ॥ कमाई सुकृतकी कीजें ॥ कमा० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) ॥ ए की ॥ नहीं परख्या जिनराज, धंधे में होय र ह्यो वीतो ॥ सुखदायी संवर समताको, रसक्यों नहिं पीतो ॥ लाल तुम मनुष्यातन जींतो रे ॥ लाल० ॥ दान शील तप जाव विना तोरो, जन्म जाय रीतो ॥ धर्म बीन कारज नहीं सीजै रे ॥धर्मात ॥ १ ॥ निशिदिन जल से नयन मेरो दिल, जिनद रिसन चावे रे ॥ मे ॥ इष्यो जगत् जंजाल लाल, जिनवर नक्ति जावे ॥ सबी सुर नर मंगल गावे रे || स०॥ सुगम कंठ सुरपतिको अ जब धुनि, अंबर गरजावे ॥ जजन धन लालच में रीजे रे ॥ जजन० ॥ तजो० ॥ २ ॥ जिंदगानी दिन चार, जीव तुं मनमें क्युं मेलो रे ॥ जीव तुं० ॥ जोबनकी गुमराइ गरवमें, खूब बन्यो घेलो ॥ बाण जिन बानी का जीलो रे ॥ बाण० ॥ तप तरवार जाव कर जाला, वैरि करम ठेलो ॥ करमकुं दावानल दीजें रे ॥ कर म० ॥ तजो० ॥ ३ ॥ जिनमुख बरसे मेघ, मिठ्यो जीजत जव जव फेरा || मिढ्यो० ॥ दरिसन द्यो x रित प्रभु, तरसे तन मन मेरा ॥ मेटो मुज घन घातिका घेरा ॥ मेटो० ॥ युं खरज करे जिनदास दि या तुम, मुगतिमांहे डेरा ॥ मेरो तन दर्शन बिन बीजे रे ॥ मेरो० ॥ त० ॥ ४ ॥ ॥ ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (नए) ॥ उपदेश लावणी॥ ॥ श्रगम पंथ जानां हे नाइ रे ॥ अगम०॥ ग्या न ध्यान समकित संजमसे, सुधरे कमाइ ॥ अग म॥ ए श्रांकणी॥ मेल मन अंतरकी ग्रांटी रे॥ मे० ॥ कर्म उदय चेतनकुंपमी हे, निगोदकी घांटी। महा पुःख पाया ॥ महाराज, महा उःख पाया ॥ जिनवर मुखसे नहिं गाया, निज प्राणकुं नहि सम जाया॥नही तिल नर साता पारे ॥ नही तिल न र० ॥ ग्यान ॥१॥ तन धन जोबन नही अपना रे ॥ तन ॥ कुटुंब कबीला बहेन जानेजा, रजनीका सुपनां ॥ सबी विरलावे॥ महाराज, सबी विरलावे॥ फिर चेतन मन परतावे, कलु संपत् संग नही था वे, धर्म निज कर ले सुखदा रे ॥ धर्म ॥ग्यान॥ ॥२॥ नरम तुऊ अंतर घट लागो रे ॥ जरम॥ उदय हेत कुमति संगतसें, विषय पवन लागो॥ पाप संग चाले ॥ महाराज, पाप संग चाले ॥ चेतनकुं नरकमें घाले, जिन मारग शुझ नहीं पाले, जपो जि नवरकू लय लारे ॥ जपो ॥ ग्यान ॥३॥ पाप मेरो नव जवको कापो रे ॥ पा॥ मुगतिदान अ मर फल पदवी, सेवककू श्रापो ॥ विनती मानो॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ महाराज, वीनती मानो ॥ अरदास हियामें था नो, सेवककू अपनो जानो ॥ देव दीगग जिनवर न्या रे ॥ देव दीगण॥ ग्यान ॥ ४॥ अरज अब सेवक यु करता रे ॥ अरज॥ नवजलसे मो हे पार उतारो, निगोदसे मरता ॥ श्री जिन बानी ॥ महा राज, श्री जिन बानी ॥ अमृतसें अधिकी जानी, जि न दास हियामें श्रानी, कीर्ति जिनवरकी में गाइ रे ॥ कीर्ति ॥ ग्यान ॥ ५॥ ॥ए॥ ॥अथ श्री नेमजीनी लावणी॥ ॥ दे गया दगा दिलदार, सुनो मेरि मार ॥ सु० ॥ लग रही नेम दरसनकी, सरस असना॥ ए आंकणी ॥ अब अजब अलीजो नेम, मेरे शिर बाजे ॥ मेरे ॥ जादवकी देखी जान, जगत् सब लाजे ॥ एसो नेम नवल ए खवींद, अनोखो बाजे ॥ अनो० ॥ सुर नर सब गावे गीत, गगनमें गाजे ॥ अब दोम दोम सब पुनीयां, देखन आ॥देणादे॥ ॥१॥ अब चट्या नेम तोरणकं, आनंद दिल धर कर ॥ आनं० ॥ सज थाये सुरंगी साज, किलोला कर कर ॥ में पायो परमानंद, हरख हियो जर कर ॥ हरख ॥ ले गयो पति नेमनाथ, मेरो चित्त हर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए१) कर ॥ सखि सुख संपत् आंगन में, आज चल आश् ॥ आ ॥ दे ॥॥ अब इण अवसरमें सुरत, श्यामकी लागी॥ श्या० ॥ पशुअनकी सुनी पोकार, दया दिल जागी ॥ जिन लही परवतकी वाट, तृष्णा कुं त्यागी ॥ तृष्णा ॥ शिवरमणीके शिरबिंद, बन्यो वैरागी ॥अब महेल चढी राजुलकुं, खमी बटका॥ खमी० ॥ दे॥३॥ अब रेतीके सरवरमें, टिके न ही पानी ॥ टिके ॥ जिन गुण गाया नहीं जाय, अलप जिंदगानी॥अब कठिण जीव फुरगतिको बन्यो में दानी ॥ ब० ॥ जिनदास करो नव पार, दया दि ल आनी ॥ अब सरण सतीके बेठ, लावनी गा॥ लाव ॥ दे० ॥४॥ ॥१०॥ ॥श्री आदिनाथनी लावणी ॥ ॥श्री आदिनाथ निर्वाणी, नमुं एसें ध्यानी ॥ नमुंग ॥ जव जीव तरनके काज, बनाई बानी ॥ तु म नाजिराय कुलधारी, बमे अवतारी॥ बडे० ॥ खुल रही खलकमें खूब, केसरकी क्यारी ॥ तुम मम ता मनकी मारी, आतमा तारी ॥ आत ॥ तज दीनी प्रीत विषयनकी, जान कर खारी॥ तुम खरी मुगति पटराणी, जगत्में जानी ॥ जग० ॥ नव० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥१॥ जान्या सुर नर सुख रासी, हुआ हे उदासी ह० ॥ जल गइ अवर जंजाल, जगतकी फांसी॥तुम जगत् पति अविनासी, मुगतके वासी ॥ मुग ॥ शि व मंदिरमें सुख सेज, विबाई खासी ॥ तुम करी स फल जिंदगानी, मेरे मन मानी ॥ मेरे ॥ नव० ॥ ॥२॥ बडे ज्योतवंत जिनराज, जगत्में बाजे ॥ ज॥ तेरो दरिसन हे सुखदायि, सुधारे काजे॥तेरी धुनि गगनमें गाजे, वे सुरपति लाजे ॥ वे सु ॥ गलगया गरव पाखंग, कामना लांजे ॥ नाटक नाचे इंसाणी, अधिक धुनि श्रानी ॥ अधिक० ॥ जव० ॥३॥ तेरी महिमा कहिय न जावे, पार नही पावे ॥पार ॥ गंधर्व सुरपति सब देव, तेरे गुन गावे ॥ तेरे चरनुं से लपटावे, सरपति लय लावे ॥ सरस०॥ नर नार हियाके मांहे, नक्ति तेरी चावे॥तृष्णाही सब विरला पी, मुगतिकं वानी ॥ मग ॥ न० ॥४॥ मरुदेवी कूखका जाया, अमर पद पाया ॥ अमर ॥ उपन्न कुमारी नारि, मिली जस गाया ॥ पुरगतिकापुःख विरलाया, सफल करी काया ॥ सफल ॥ जिनदास निरंजन देख, सरन तेरे आया ॥ समकितकी सहेज पीगनी, मिली मोहे टानी ॥ मिली० ॥ न० ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only For Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) ॥ मगसी पारसनाथनी लावणी ॥ ॥ मूलक बिच मगसी पारसका, बाज रह्या डंका ॥ मुगतिगढ जीत लीया बंका रे ॥ मुग० ॥ मूलक० ॥ एकणी ॥ करमदल बलकूं दाय कीया रे ॥ कर॥ मुगति महेल में केलि करे, अनुभव अमृत पीया ॥ सासता जीया, महाराज ॥ सा० ॥ कल्याण कारज कीया, अमरापुर पदवी लीया ॥ कमठ जसका कर गये फंका रे ॥ कम० ॥ मू० ॥ १ ॥ प्रभु पारस जज ले जा इरे ॥ प्र० ॥ जाव जरमका मेट जोत, तेरी जगमें सवाइ ॥ टेककूं टालो, महाराज ॥ टेक ॥ चंचल चित्तसें मत चालो, गुमान गरवने गालो, गरवसें धूल मली लंका रे || गर० ॥ मूलक० ॥ २ ॥ मेरे शुभ जाग्य उदय आया रे ॥ मेरे० ॥ इण पंचम श्रारामां हे प्रभु, मगसी पास पाया ॥ पापसें करता, महाराज ॥ पाप० ॥ जव्य जीव ध्यान दिल धरता, श्रावक सम रण करता, मरण दुःख मिठ्या मेरे अंगका रे ॥ मर ० ॥ मूलक० ॥ ३ ॥ महीमा मगसी की अब जानी रे ॥ मही० ॥ नहीं उधमी मेरी आंख बिलोया, प रब विना पानी ॥ में जिनवर जाच्या, महाराज ॥ में जिन० ॥ जिनदास जिनंदसें राच्या, मगसी पारस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) हे साचा, करो मत मनमें कोई शंका रे ॥ करो॥ मूलक० ॥४॥ ॥अथ केशरीयाजीनी लावणी ॥ सुणजो बातां राव सदा शिव, मत चढ जानो धूलेवा ॥ गढपति उनका बमा अटका, मत डेमो तुमें उन देवा ॥ ए आंकणी ॥ सकतावत चूडावत बोले, हमहीनोकर उनहींका ॥ हिंङपति वाकुं हाथ जोडे, तीन नुवन शिर हे टीका ॥ सु० ॥ १ ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल सबेही, सुर नर वाळू ध्यावत हे॥ चं जमुनि दर्शन यावे, मनकी मोजां पावत दे॥सु०॥ ॥२॥ गया राज उनहींकू आपे, निर्धनियाकू धन देवे ॥ खाजां खिलावे सुंदर लमका, सदा सुखी जे प्रनु सेवे ॥ सु० ॥३॥ तारे जिहाज समुअमें जश्, रोग निवारे नव नवका ॥ नूप जुजंगम हरि करी नदीयां, चोर न बंधन अरि दवका॥सुणाशा धौधौ धौं धौ धौसा बाजे, दसो दिसामें हे मंका ॥ जाउ ताती या नहीं चलाइ, मत बतलावो गढ बंका ॥ सु० ॥ ॥५॥ रानाजीखे ऊमरावजीकों, मानत नांहीं वे वातां ॥थांकी कीधी थेंहिंज पावे, में नहीं श्रावु थां सांथा ॥ सु॥६॥ मूब मरोमे चमे अनिमाने, जहेर न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) स्या हे नजरुं ॥ रुषजदेव है साहेब सच्चा, देख तमासा फज में || सु० ॥ ७ ॥ मयाराम सुत जणे मूलचंद, बने सितांबर तुम देवा ॥ फोज विखर गइ घर घर घोडा, लता राखो तुमदेवा ॥ सु० ॥ ८ ॥ ॥ अथ चार मंगलनुं स्तवन ॥ ॥ राग सामेरी ॥ कीजें मंगल चार, आज घरें नाथ पधारया ॥ कीजें० ॥ ए यांकणी ॥ पहेलुं मंग ल प्रभुजी कूं पूजुं, घसी केसर घनसार ॥ श्राज० ॥ १ ॥ बीजं मंगल अगर उखेवुं, कंठे वकुं फुल हार ॥ आज० ॥ २ ॥ त्रीजुं मंगल आरती उतारुं, घंट बजा वुं रणकार ॥ ज० ॥ ३ ॥ चोथुं मंगल प्रजुगुण गायुं, नाचुं यैथैकार ॥ ज० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे नाथ नीरंजन, चरण कमल जाउं वार ॥ ज० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ राग सामेरी ॥ चारो मंगल चार ॥ श्रज मारे चारो मंगल चार ॥ ए आंकणी ॥ दीगे दरस सरस जिनजीको, शोजा सुंदर सार ॥ ज० ॥ १ ॥ बिनु बिनु जन मन मोहन चरची, घसी केसर घन सार ॥ ज० ॥ २ ॥ धूप उखेवुं करूं यारती, मुखे बोलुं जयकार ॥ ज० ॥ ३ ॥ विविध जातके पुष्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगावं, मोगर लाल गुलाल ॥ आज ॥४॥ समव सरण आदीसरजीको पूजु, चोमुख प्रतिमा चार ॥ आज ॥५॥ हिये धरी नाव नावना नावं, तुम प्रनु तारणहार ॥ आज ॥६॥ सकलचंद सेवक जिनजीको, आनंदघन उपकार ॥ आ० ॥७॥ ॥अथ मांगलिक दीपक ॥ ॥ दीवो रे दीवो मांगलिक दीवो ॥ आरती उता रो ने बहु चिरंजीवो ॥ दी० ॥१॥ सोहामणुं घर पर्व दीवाली, अंबर खेले अबला बाली॥दी० ॥ दे वपाल लणे इणे देव अजुवाली, नावे जगते विघन निवारी ॥ दी ॥२॥ देवपाल नणे श्ण कलिकाले ॥ आरती उतारी राजा कुमारपालें ॥ दी० ॥ तम घर मंगलिक अम घर मंगलिक, चतुर्विध संघ घर में गलिक दीवो ॥ दी ॥३॥शत ॥ ॥ अथ महोटी आरती ॥ ॥पहेली रे आरती प्रथम जिणंदा, शत्रुजयमंग ण षन जिणंदा ॥ जय जय आरती आदि जणं दकी ॥ दुसरी आरती मरुदेवी नंदा, जुगला रे धरम निवार करंदा ॥ जय० ॥१॥ तीसरी आरती त्रिनु वन मोहे, रत्न सिंहासन मारा प्रजुजीने सोहे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (LUG) ॥ जय० ॥ चोथी धारति नित्य नवी पूजा, देवरु पज देव छावर न दूजा ॥ ज० ॥ ५ ॥ पांचमी श्र रति प्रभुजीनें जावे, प्रभुजीना गुण सेवक इम गावे ॥ ज० ॥ ३ ॥ धरति किजें प्रभु शांति जिणंदकी ॥ मृगलंबनकी में जाउं बलिहारी, जय जय आरति शांति तुमारी ॥ विश्वसेन अचिरा देवीको नंदा, शांति जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ जय० ॥ ४ ॥ आर ती कीजें प्रभु नेम जिणंदकी, शंख लंबनकी में जाउं बलिहारी ॥ श्र० ॥ समुद्रविजय शिवादेवीको नंदा नेम जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ ० ॥ २ ॥ आरति कीजें प्रभु पास जिणंदकी, फलिंदलंबनकी में जाउं बलिहारी ॥ ० ॥ अश्वसेन वामा देवीको नंदा, पास जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ ० ॥ ६ ॥ यारति किजें महावीर जिणंदकी, सिंद लंबनकी में जाउं ब लिहारी ॥ ० ॥ सिद्धारथ राया त्रिशला देवीको नंदा, वीर जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ ० ॥ ७ ॥ धारति किजें प्रजु चोवीश जिणंदकी, चोवीस जि णंदकी में जाउं बलिहारी ॥ चोवीसे जिणंद मुख पूनम चंदा ॥ ० ॥ ८ ॥ कर जोमी सेवक इम बोले, नहि कोइ महारा प्रभुजीने तोले ॥ ० ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (LUG) ॥ अथ श्री चक्रेश्वरी मातानी आरती ॥ ॥ जय जय यारति देवी तुमारी, नित्य प्रणमुं तुम चरणारी ॥ जय० ॥ १ ॥ श्री सिद्धाचल गिरि रखवाली, नाम चक्केसरी जग सौख्याली ॥ जय० ॥ ॥ २ ॥ विधिपगछनी शासन देवी, सकल श्री संघने सुख करेवी ॥ जय० ॥ ३ ॥ निलवट टीलडी रत्न बिराजे, काने कुंमल दोय रवि शशि बाजे ॥ जय० ॥ ॥४॥ बांदे बाजुबंध बहेरखा सोहे, नीलवर्ण सहु जन मन मोहे ॥ जय० ॥ ५ ॥ सोवन मय नित्य चूनडी खलके, पाये घूंघरमा घम घम घमके ॥ जय० ॥ ॥ ६ ॥ वाहन गरुम चड्यां बहु प्रेमे, तुऊ गुण पार न पामुं केमे ॥ जय० ॥ ७ ॥ चूनमीजमामां देह Dosy. ति दीपे, नवसरा हारे जग सहु कीपे ॥ जय० ॥ ८ ॥ नित नित मानी आरति उतारे, रोग सोग जय दूर निवारे ॥ जय० ॥ ए ॥ तस घर पुत्र पुत्रा दिक बाजे, मनोवांछित सुख संपत् राजे ॥ जय० ॥ ॥ १० ॥ देवचंद्रमुनि आरति गावे, जयो जयो मंग ल नित्य वधावे ॥ जय० ॥ ११ ॥ ॥ अथ श्रीनेमनाथजीनो नवरसो प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ गरबानी देशी मां ॥ समुद्र विज For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) य कुल चंदलो ॥ शामलीयाजी॥ शिवादेवी मात म लार ॥ वर पातलीयाजी ॥एक दिन रमवा नीसख्या ॥ शा॥ श्राव्या आयुधशालामांहे ॥ व ॥१॥ सारंग धनुष चढावियुं ॥शा ॥ तेणे हव्या आका शें ॥ व०॥ चक्र उपामीने फेरव्यु ॥ शाागदा लीधी करमाहे ॥ व० ॥२॥ नेमे संख वजामीयो ॥शा ॥ तेणे मोल्या महिना मेर ॥ व० ॥ शेष ना ग तिहां सलसख्या ॥ शा० ॥ खलजलीया सायर सर्व ॥ व ॥ ३ ॥ गिरिवर टूक त्रूटी पड्यां ॥शा॥ थरहर कंपे लोक ॥ व० ॥ कोश्क वैरी ऊपनो॥शा॥ श्म करता कृष्ण विचार ॥ व० ॥४॥ आल्या तिहां उतावला ॥ शा० ॥ जिहां डे नेम कुमार ॥ व ॥ रूपचंद रंगें मन्या ॥ शाण ॥ ताहारुं बल जो वानी खंत ॥ व०॥५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ कृष्णे कर लंबावीयो ॥ हसि बो लो जी ॥ तुमे वालो नेम कुमार ॥ अंतर खोलो जी ॥ कमलनाल परें वालीयो ॥ हसी० ॥ क्षण नवि लागी वार ॥ अंत ॥१॥ नेमे कर लंबावीयो॥ हसीन ॥ कृष्णे नवि वाल्यो जाय ॥ अंत ॥२॥ हाले कृ ष्ण हिंचोलीया ॥ हसीमा तिहां हरि मन ऊंखो था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) य ॥ ० ॥ २ ॥ नारी जो परणावीयें ॥ हणतो बल बेरुं थाय ॥ ० ॥ इम विचारी कृष्णजी ॥ ६० ॥ निज अंतेजर समजाय ॥ ० ॥ ३ ॥ विवाद नेम मनाववा ॥ ह० ॥ स यार्ड सघली नार ॥ ० ॥ रूपचंद रंगें म व्या ॥ ६० ॥ ताहारं अतुली बल अरिहंत ॥ श्रं ॥ ४ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राधाजी ने रुक्मिणी ॥ मोरा गि रधारी ॥ सत्यनामा जांबुवती नार ॥ मुकुटपर हुंवारी ॥ चंद्रावती शणगारिये ॥ मोरा० ॥ गोपी मली ब त्रीश हजार ॥ मुकुट ॥ १ ॥ विवाह मानो नेमजी ॥ देवर मोरा जी ॥ मने करवाना बहु कोम ॥ ए गुण तोराजी ॥ नारी विनानुं श्रांगणं ॥ देवर० ॥ जेम लुएं धान ॥ ए गुण० ॥ २ ॥ नारी जो घरमा वसे ॥ देवर० ॥ तो पामे परोणो मान ॥ ए गुण० ॥ ना री विना नर हाली जिसा ॥ देवर० ॥ वली वांढा क देशे लोक ॥ ए गु० ॥३॥ बोकरवाद न कीजीयें ॥ देव० ॥ तमे म करो ताषा ताए ॥ ए गुण० ॥ रूपचंद रंगे मया ॥ देवर० ॥ हवे उत्तर आपे नेम ॥ ए० ॥४॥ ॥ ढाल चोथी ॥ नेम कहे तमे सांजल | मोरी जाजी जी || किश्यो काम विकार ॥ में गत पार्म जी ॥ नारी मोहे जे पड्या | मोरी० ॥ ते रमव मिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) गति चार ॥ में ॥ १॥रावण सरिखो रोलव्यो ॥ मोरी० ॥ जे लश् गयो सीता नार ॥ में ॥ ना। विषनी कुंपली ॥ मोरी०॥ मायानी मोहन वेल ॥ में ॥२॥ बपन्न कोडि जादव मिट्या॥ मोरी० ॥ श्म कहे ते वारोवार ॥ में ॥ रूपचंद रंगे मल्या ॥ मोरी० ॥ नेम नहिं परणे निरधार ॥ में ॥३॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ अवला बोल न बोलीये ॥ वर राजाजी ॥ तमे परणो नेम कुमार ॥ म करो दवा जाजी ॥ एकवीश तीर्थंकर थया ॥ वर ॥ ते तो सर्वे परण्या नार ॥ म करो ॥१॥ नारी खाण रत न तणी ॥वर॥ तेनु मूल्य केणे नवि थाय॥ म करो ॥ नारीमाथी नर नीपना ॥ वरण ॥ तुम सरिखा श्रीनगवान ॥ म करो॥२॥ नेम न बोले मुखथकी ॥ वर ॥ मांड्युं विवानुं मंमाण ॥ म करो ॥ उग्र सेन घर बेटमी ॥ वरण ॥ ते नामे राजुल नार ॥म करो ॥३॥ ली, लगन उतावलुं ॥ वर० ॥ श्रा प्यां लीलां श्रीफल हाथ ॥ म करो जमण लाडू लापसी ॥ वर ॥ वली सेवश्यो कंसार॥ म करोग ॥४॥ श्राबी जलेबी पातली ॥ वरण ॥ वली मांहे घेवरनो नाग ॥ म करो ॥ खारी पुरीने दहीथरां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) ॥ वर० ॥ वली खाजांने मगदल | म करो० ॥ ५ ॥ लाखसाइ रेशमी ॥ वर० ॥ मांहे मोतीचूरनो स्वाद ॥ म करो० ॥ क्रूर रांध्यो कमोदनो ॥ वर० ॥ मां मसूरी दाल ॥ सबल दीवाजाजी ॥ ६ ॥ खा रेक खजूर ने टोपरां ॥ वर० ॥ वली चारोली ने झाख ॥ सबल० ॥ लविंग सोपारी एलची ॥ वर० ॥ वली पाननां बीडां चार ॥ सबल० ॥ ७ ॥ सजन कुटुंब सं तोषीयां ॥ वर० ॥ बहु कीधी पेरामणी सार ॥ सब ल० ॥ जान लेई यादव चढ्या ॥ वर० ॥ वली पाख रीया केकाण || सबल० ॥ ८ ॥ हाथी रथ शणगारी या ॥ वर० ॥ वली केशरीया असवार ॥ सबल० ॥ इंद्र जोवाने श्राविया ॥ वर० ॥ इंद्राणी गावे गीत ॥ सबल० ॥ ए ॥ तोरण याव्या नेमजी ॥ वर॥ ते ने निरखे राजुल नार ॥ सबल० ॥ रूपचंद रंगे म या ॥ato | ए जोवा सरखी जान ॥ सब० ॥ १० ॥ ॥ ढाल बही ॥ सखी कहे वर शामलो ॥ ए दीसे जी ॥ ते निरखे राजुल नार ॥ हइमुं हीसे जी ॥ काला गयवर हाथीया ॥ ए दी० ॥ वली कालो मेघ मलार ॥ ५० ॥ १ ॥ काली अंजन खडी ॥ ए दीसे जी ॥ तेनुं मूल केणे नवि थाय || हइडुं० ॥ काली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) कस्तूरी कही ॥ ए दीसे जी ॥ काला कृष्णागरु केश ॥ हश्डंग ॥॥ रूपचंद रंगे मव्या ॥ ए दीसे जी ॥ सखि शामलीयो जरतार ॥ हश्रुं ॥३॥ ॥ ढाल सातमी॥ पशुश्र पोकार सुणी करी ॥शुध लीधी जी॥ विचारे श्रीवीतराग॥ तेणे दया कीधीजी ॥ जो परणुं तो पशु मरे ॥ शु०॥ मूकी अनुकंपा जाल ॥ तेणेगा॥ श्म जाणी रथ वालीयो ॥ शु० ॥ फेरव तां दीनदयाल ॥ तेणे ॥ पशुबंधन सर्व तोडीयां ॥ शु॥ ते सर्व गयां वनमाहे ॥ तेणें ॥२ ॥रूपचं द रंगे मन्या ॥शु॥ प्रजु दीधुं वरसीदान ॥तेणे॥३॥ ॥ ढाल आठमी ॥ राजिमती धरणी ढव्यां ॥ मोरा वहालाजी॥ अवगुण विण दीनानाथ ॥ हाथ न काट्योजी ॥ आंगण आवी पागा वदया ॥ मोरा॥ दत्रियकुलमां लगावी लाज ॥ हाथ ॥१॥ तमे पशु तणी करुणा करी॥ मोराण ॥ तमने माणसनी नहिं म्हेर ॥ हाथ० ॥ आठ नव थयां एकगं ॥ मोरा॥ कीधा तुमशुंरंग रोल ॥ हाथ ॥२॥ नवमे नवे तमे नेमजी ॥ मोरा॥ मुऊने कां मेली जाउँ ॥ हाथ॥ मारी आशा अंबर जेवडी ॥ मोरा०॥ तमे केम उ पाडी कंत ॥ हाथ ॥३॥ में कूमां कलंक चढावि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) यां ॥ मोरा० ॥ नाख्यां अणदीगं बाल ॥ हाथ०॥ में पंखी घाख्यां पांजरे ॥मोरा ॥ वली जलमां ना खी जाल ॥ हाथ ॥॥ में साधुने संतापीया ॥मो रा॥ में माय वीडोड्यां बाल॥ हाथ ॥ में कीमी द र उघामियां ॥ मोराण ॥ वलि मरमना बोल्या बोल ॥ हाथ ॥५॥श्रणगल पाणी में जयां॥मोरा॥में गुरु ने दीधी गाल हाथ में कठिण करम कीधां हशे ॥ मोरा०॥ ते आवी लागां पाप ॥ हाथ ॥६॥ श्म क रतां राजुल आवियां॥ मोरा ॥ श्रीनेमीश्वरनी पास ॥ हाथ ॥ रूपचंद रंगे मन्या ॥ मोराण ॥राजुल लीयो संयम जार ॥ हाथ ॥७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ श्रीनेम राजीमती एकगं ॥सा हेलडीयां ॥ ज चढियां श्रीगिरनार ॥ जिनगुण वे लडियां ॥ पूंठेथी राजुल रिजावियां ॥ सा॥ संजम वंती राजकुमार ॥ जिन ॥१॥ आझा लेश् राजुल एकली ॥ सा॥ गिरनार उपर गुफामांहे ॥ जिनः॥ वाटें जातां वर्षा थयो ॥ सा ॥ जीजाणां राजुलनां चीर ॥जि॥२॥ गुफामांहे जश्शूकव्यां ॥ सा॥ लागु ते काचुं नीर ॥ जिन ॥ अति सुकुमाल सोहामणुं ॥ सा॥राणी राजिमतीनुं शरीर ॥ जिनम्॥ रहनेमि त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) पस्या करे॥सा॥देखि राजिमती निचोवे चीर ॥ जि न॥३॥प्रगट थश्तेबोलीयो॥सानाजीम करो मन उदास॥ जिन॥४॥नेम गयो तो नबुं थयुं ॥सा॥ आपणे करशुंजोगविलास ॥ जि ॥ उत्तम कुलनो उपनो ॥ सा ॥ तुं बोल विचारी बोल ॥ जिन ॥ ॥५॥ संयम रत्नने हारीया ॥ सा ॥ वली कीधीत्र तनी घात ॥ जि० ॥ रहनेमि तव बोलिया ॥ सा॥ माता राजिमती उगार ॥ जि० ॥६॥ नेमीशर कने मोकल्या ॥ सा ॥ फरी लीधो संयम जार ॥ जि . नेम राजुल केवल ल॥ सा ॥ पहोता मुक्ति म कार ॥ जिन॥७॥पीयु पहेलां मुगतें गयां ॥ साण ॥ राजिमती तेणि वार ॥ जिन ॥ रूपचंद रंगे मल्या ॥ सा ॥ प्रनु उतारो नवपार ॥ जिन ॥ ७॥ ॥अथ दानशियल तप नावनानुं चोढालीयुं प्रारंजः॥ ॥हा॥प्रथम जिणेसर पाय नमी, पामी सुगुरुप्रसा द ॥ दान शियल तप नावना, बोलिश बहु संवाद ॥१॥ वीर जिणंद समोसस्या, राजगृही उद्यान ॥ समवसरण देवे रच्युं, बेग श्रीवर्डमान ॥२॥ बेठी बारे परखदा, सुणवा जिनवर वाण ॥ दान कहे प्रतु हुँ वहुं, मुऊने प्रथम वखाण ॥ ३ ॥ सांजलजो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) सहुको तुमे, कुण बे मुझ समान ॥ अरिहंत दीक्षा अवसरे, छापे पहिलं दान ॥ ४ ॥ प्रथम पहोर दातारनुं, लीये सह कोई नाम ॥ दीधारी देखल च ढे, सीके पंडित काम ॥ ५ ॥ तीर्थंकरने पारणे, कुण करशे मुऊ होड ॥ वृष्टि करुं सोवन तणी, सामी बारह कोम ॥ ६ ॥ हुं जग सघलुं वश करूं, मुऊ महो टी बे वात ॥ कुणकुण दानथकी तस्यां ते सु जो अवदात ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ललनानी देशी ॥ ॥ धन सारथवाद साधुने, दीधुं घृतनुं दान ॥ ललना ॥ तीर्थकर पद में दियुं, तिथे मुऊने अनि मान ॥ ललना ॥ १ ॥ दान कहे जग हुं वडुं, मुफ सरिखुं नहिं कोय ॥ ललना ॥ इद्धि समृद्धि सुख संप दा, दाने दोलत होय ॥ ललना || दा० ॥ २ ॥ सुमु ख नामे गाथापति, प मिलान्यो अणगार ॥ ललना ॥ कुमर सुबाहु सुख लघुं, ते तो मुऊ उपगार ॥ ललना ॥ दा० ॥ ३ ॥ पांचसें मुनिने पारणं देतो वोहोरी आण ॥ ललना ॥ जरत थयो चक्रवर्त्ति जलो, ते पण मुऊ फल जाए ॥ ललना ॥ दा० ॥ ४ ॥ मा सखमने पारणे, पडिलाच्यो इषिराय ॥ ललना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥ शालिन सुख जोगवे, दान तणे सुपसाय ॥ ल लना ॥ दा० ॥५॥ आप्या अमदना बाकुला, उत्तम पात्र विशेष ॥ ललना ॥ मूलदेव राजा थयो, दानतणां फल देख ॥ ललना ॥ दा ॥ ६ ॥ प्रथम जिणेसर पारणे, श्री श्रेयांस कुमार ॥ खलना॥ सेल मीरस वहोरावीयो, पाम्या नवनो पार ॥ ललना ॥ दा० ॥७॥ चंदनबाला बाकुंला, पडिलाच्या महा वीर ॥ ललना ॥ पंचदिव्य परगट थयां, सुंदररूप शरीर ॥ ललना ॥ दा ॥ ॥ पूरव जव पारेवहुँ, शरणे राख्युं सूर ॥ ललना ॥ तीर्थंकर चक्रवर्तिप णे, प्रगट्यो पुण्यपंगुर ॥ ललना ॥ दा॥ ए॥ गजनवे शशलो राखियो, करुणा कीधी सार ॥ ल लना ॥ श्रेणिकने घरे अवतस्यो, अंगज मेघ कुमा र ॥ ललना ॥ दा ॥ १० ॥ एम अनेक में उमस्या, कहेतां नावे पार ॥ ललना ॥ समयसुंदर प्रनु वीर जी, मुफ पहेलो अधिकार ॥ ललना ॥ दा॥११॥ ॥दोहा॥ ॥शियल कहे सुण दान तुं, किस्यो करे अहंकार॥ आमंबर आठे पहोर, याचकशुं व्यवहार ॥१॥अं तराय वसि ताहरे, नोग करम संसार ॥ जिनवर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) कर नीचा करे, तुऊने पड्यो धिक्कार ॥२॥ गर्व म कर रे दान तुं, मुफ पूंजें सहु कोय ॥ चाकर चाले बागले, तो झुं राजा होय ॥३॥ जिनमंदिर सोना तएं, नवु निपावे कोय ॥ सोवन कोडि दान दिये, शियल समुं नहि कोय ॥४॥ शियलें संकट सवि टले, शियले जस सोनाग॥शियले सुर सांनिध करे, शियल वमो वैराग ॥५॥ शियले सर्प न आनडे, शियले शीतल आग ॥ शीयले अरिकरी केशरी, जय जाये सवि नाग ॥ ६ ॥ जनम मरणना जयथकी, में बोमाव्या अनेक ॥ नाम कहुँ हवे तेहनां, सांज लजो सुविवेक ॥७॥ ॥ ढाल बीजी ॥ पास जिणंद जुहारीयें॥ ए देशी ॥ ॥ शियल कहे जग हुँ वडं,मुफ वात सुणो अति मीठी रे॥ लालच लावे लोकने, में दान तणी वात दी ठी रे॥ शि॥१॥ कलह कारण जग जाणीये, वली विरति नही पण कांरे॥ ते नारद में सीजव्यो, मुक जु ए अधिकार रे॥ शि॥२॥ बांहे पहेस्या बेर खा, शंखराजाये दूषण दीधो रे ॥ काप्या हाथ क लावती, ते में नवपल्व कीधा रे ॥ शि० ॥३॥ रावण घर सीता रही, तो रामचंझे घर आणी रे ॥ सीतार्नु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) कलंक उतारीयु, में पावक कीधो पाणी रे ॥ शि॥ ॥४॥ चंपा बार उघामियां, वली चारणीये काढ्यु नीरोरे ॥ सतीय सुनमा जस थयो, में तस कीधी नीरो रे ॥ शि ॥ ५॥ राजा मारण मांमियो, राणी अनयाये दूषण दाख्यो रे ॥शूली सिंहासन में की यो, में शेठ सुदर्शन राख्यो रे ॥ शि० ॥६॥ शील सन्नाह मंत्रीशरे,श्रावतां अरिदल थंन्यो रे ॥ तिहां पण सांनिध में करी, वली धरम कारज श्रारंज्यो रे ॥ शि ॥ ७॥ पहेरण चीर प्रगट किया, में अ कोत्तरसो वारो रे ॥ पांमवनारी सौपदी, में राखी मा म उदारो रे ॥ शि० ॥ ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका, व ली शीलवंती दमयंती रे॥ चेमानी साते सुता, राजि मती सुंदरी कुंती रे ॥ शि ॥ ए॥ इत्यादिक में न इस्या, नर नारीनां वृंदो रे ॥ समयसुंदर प्रनु वीर जी, पहेलो मुऊ आणंदो रे॥ शि० ॥ १० ॥ ॥दोहा॥ ॥ तप बोट्युं त्रटकी करी, दानने तुं अवहील॥ पण मुफ आगल तुं किश्यु, सांजल रे तुं शील ॥ ॥१॥ सरसां जोजन ते तज्यां, न गमे मीग नाद॥ देह तणी शोना तजी, तुऊमां किस्यो सवाद ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) नारी थकी मरतो रहे, कायर किस्युं वखाण ॥ कूम कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुक श्रादरे, बंमी सहु संसार ॥ श्राप एक तुं नांजतो, बीजा नांजे चार ॥४॥ करम निका चित्त त्रोमवा, नांगँ जव जय नीम ॥अरिहंत मुक ने आदरे, वरस मासी सीम ॥ ५ ॥ रुचक नंदी सर उपरे, मुफ लब्धे मुनि जाय ॥ चैत्य जूहारे शाश्वतां, आनंद अंग न माय ॥ ६ ॥ महोटा जोय ण लाखना, लघु कुंथु आकार ॥ हय गय रथ पायक तणां, रूप करे अणगार ॥७॥ मुफ कर फरसे उ पशमे, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अहावीश ऊपजे, उत्तम तप संजोग ॥ ७॥ जे में ताख्या ते कडं, सु णजो मन उदास ॥ चमत्कार चित्त पामशो, देशो मुक शाबास ॥ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ नणदलनी देशी ॥ दृढप्रहार अति पापीयो, हत्या कीधी चार हो। सुंदर ॥ ते पण तिण नव उमस्यो, मूक्यो मुक्ति म कार हो ॥ सुंदर ॥ १॥ तप सरिखं जग को नही, तप करे कर्मनुं सूम हो ॥ सुंदर ॥ तप करवू अति दोहिलु, तपमां नही को कूड हो ॥ सुंदर ॥ तप०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९१) ॥॥ सात माणस नितमारतो, करतो पाप अघो र हो ॥ सुंदर ॥ अर्जुनमाली में उफस्यो, बेद्यां कर्म कठगेर हो ॥ सुंदर ॥ तप ॥३॥ नंदीषेणने में कि यो, स्त्रीवसन वसुदेव हो ॥ सुंदर ॥ बहुंतेर सहस अंतेउरी, सुख नोगवे नित्यमेव हो ॥ सुंदर ॥ तप॥ ॥४॥ रूप कुरूप कालो घणो, हरिकेशी चंमाल हो ॥ सुंदर ॥ सुर नर कोमि सेवा करे, ते में कीधी चाल हो ॥ सुंदर॥ तप॥॥विष्णुकुमर लब्धे कियु, लाख जोयण- रूप हो ॥ सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे का रणे, ए मुफ शक्ति अनुप हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ॥ ६॥ अष्टापद गौतम चढ्या, वांद्या जिन चोवीश हो ॥ सुंदर ॥ तापस पण प्रतिबुजव्या, तेणे मुफ अ धिक जगीश हो। सुंदर॥तप० ॥ ७॥ चौद सहस श्रणगारमां, श्री धन्नो अणगार हो। संदर॥ वीर जि णंद वखाणीयो, ए पण मुफ अधिकार हो ॥ सुंदर ॥तप० ॥ ॥ कृष्ण नरेसर श्रागले, उक्कर कार क होय हो ॥ सुंदर॥ ढंढण नेमीप्रशंसीयो, मुफ म हिमा सवि तेह हो॥ सुंदर॥ तप०॥ ए॥ नंदीषण वहोरण गयो, गणिकाये कीधी हास हो ॥ सुंदर ॥ वृष्टि करी सोवन तणी, में तस पूरी श्राश हो ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५) सुंदर ॥ तप ॥ १० ॥ एम बलजन प्रमुख बहु, ता ख्या तपसी जीव हो ॥सुंदर ॥सयमसुंदर प्रनु वीर जी, पहेलो मुफ प्रस्ताव हो ॥ सुंदर॥ तप०॥११॥ ॥दोहा॥ ॥नाव कहे तप तुं किस्युं, बेड्यु करे कषाय ॥ पूर्व कोमि जो तप तपे, दणमां खेरु थाय ॥१॥ खंधक आचारज प्रते, तें बाल्यो सवि देश॥अशुन नियाj तुं करे, क्षमा नही लवलेश ॥२॥वैपायन ऋषि हव्या, दमा सांब प्रद्युम्न साह ॥ते तप क्रोध करी तिहां, दीधो द्वारिका दाह ॥३॥ दान शियल त प सांजलो, म करो फूल गुमान ॥ लोक सहुको साख दे, धर्मे नाव प्रधान ॥४॥ आप नपुंसक बगे त्रणे, ये व्याकरण ते साख ॥ काम सरे नहिं कोश्नु, नाव नणे मुज पाख ॥५॥ रस विण कनक न नीपजे,जल वि ण तरुअर वृद्धि ॥ रसवति रस नहि लवण विण, तिम मुजविण नहि सिकि॥६॥ मंत्र जंत्र मणि औष धि, देव धर्म गुरु सेव ॥ नाव विना ते सवि वृथा, ना व फले नितमेव ॥७॥ दान शियल तप जे तुमे, निज निज कह्यां वृत्तंत ॥ तिहां जो नाव न हुँत तो, को सिकि नवि हुँत ॥ ॥ नाव कहे में एकले, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तास्यां बहु नर नार ॥ सावधान थश् सांजलो, ना म कहुं निरधार ॥ ए॥ ॥ढाज चोथी॥ कपूर होये अति उजलो रे॥ए देशी॥ ॥ काननमांहे काउसग्ग रह्यो रे, प्रश्नचंद कृषि राय ॥ ते में कीधो केवली रे, तत्क्षण करम खपाय ॥१॥ सोलागी सुंदर, नाव वमो संसार ॥ ए तो बीजो मऊ परिवार ॥ सो॥ दानादिक विण एकलो रे. पहोंचाहुं नवपार ॥ सो ॥२॥ ए श्रांकण। ॥ वंस उपर चढी खेलतो रे, एलापुत्र अपार ॥ केवल झा नी में कियो रे, प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो॥३॥ नूख तृषा खमे अति घणी रे, करतो कूर थाहार ॥ केवल महिमा सुर करे रे, कूरगमुअणगार ॥ सो॥ ॥४॥ लाने लोन वाधे घणो रे, श्राण्यो मन वैरा ग ॥ कपिल थयो मुनि केवली रे, ते ए मुफने सो नाग ॥ सो० ॥५॥ अर्णिकासुत गबनो धणी रे, दीपजंघा बनि जाण ॥ कीधो अंतगम केवली रे, गंगाजल गुणखाण ॥ सो० ॥ ६॥ पन्नर तापस नणी रे, दीधी गौतमे दिक ॥ तत्कण किधा केवली रे, जो मुफ मानी शीख ॥ सो ॥७॥ पालक पापीयें पीलिया रे, खंधक सूरिना शिष्य ॥ ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) नम मरणथी बोगव्या रे, आपे मुऊ आशीष ॥ सो० ८ ॥ चंद्र रुद्र ने चालतां रे, दीघो दंमप्रहार ॥ नव दीक्षित थयो केवली रे, ते गुरु पण ते शिवार ॥ सो० ॥ ए ॥ धन रथकारक साधुने रे, पकिलाज्यो उल्लास ॥ मृगलो जावना जावतो रे, पहोतो स्वर्ग आवास || सो० ॥ १० ॥ निज अपराध खमावती रे, मूक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दियुं रे, नि र्मल केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊ परे रे, देखी पुत्रनी शद्धि ॥ मुकने मनमांहे धरयो रे, तत्क्षण पामी सिद्धि ॥ सो० ॥ १२ ॥ वीर वंदन चाल्यो मारगे रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दर्पुरनामे देवता रे, तेह थयो मुऊ संग ॥ सो० ॥ १३ ॥ प्रभुपाय पूजन नीसरी रे, दुर्गिला नामे नार ॥ कालधर्म वच मां करी रे, पहोती स्वर्ग मकार ॥ सो० ॥ १४ ॥ का यानी शोजा का रिमी रे रूप किस्युं श्रनिमान ॥ ज रत धारीसा भुवनमां रे, पाम्या केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ॥ १५ ॥ श्राषाढभूति कला निलो रे, प्रगट्यो जरत स रूप ॥ नाटक करतां पामियो रे, केवलज्ञान अनूप ॥ सो० ॥ १६ ॥ दीक्षा दिन काउसग्ग रह्यो रे, गजसु कुमार मशाण ॥ सोमल शीश प्रजालियं रे, सिद्धि " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) ॥ गयो शुन जाण ॥ सो० ॥ १७ ॥ गुणसागर थयो के वली रे, सांजली पृथिवीचंद | पोते केवल पामियो रे, सेव करे सुर इंद ॥ सो० ॥ १८ ॥ एम अनेक में उ या रे, मूक्या शिवपुर वास ॥ समयसुंदर प्रभु वीर जी रे, मुऊने प्रथम प्रकाश ॥ सो० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ वीर कहे तुमे सांजलो, दान शियल तप नाव || निंदा बेति पापिणी, धर्म कर्म प्रस्ताव ॥१॥ पर निंदा करतां थकां पापे पिंक जराय ॥ वेढ राढ वाघे घणी दुर्गति प्राणी जाय ||२|| निंदक सरिखो पापियो, मूंडो कोइन दीठ ॥ वलि चंडाल समो कह्यो, निंदक मूख यदि ॥ ३ ॥ श्राप प्रशंसा श्रापणी, करतो इंद नींद ॥ लघुता पामे लोकमां, नासे निजगुण वृंद ॥ ४ ॥ को कहेनी म करो तुमे, निंदा ने हं कार || आप आपणे गमे रहो, सहुको जलो सं सार ॥ ५ ॥ तो पण अधिको नाव बे, एकाकी समर ॥ दान शियल तप त्रणे जलां, पण जाव विना कय ॥ ६ ॥ यंजन यांखे श्रांतां, अधिको आ णी रेख ॥ रजमांही तज काढतां, अधिको जाव विशे ष ॥७॥ जगवंत व अंजण जणी, चारे सरिख गणंत ॥ चारे करी मुख श्रापणां, चनविध धर्म जयंत ॥ ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) ॥ ढाल पांचमी ॥ वीर जिणेसर एम जणे रे, बेठी परखदा बार ॥ धर्म करो तुमे प्राणिया रे, जिम पामो जव पार रे ॥ धर्म हैये धरो ॥ १॥धर्मना चार प्रकारो रे, नवियण सांजलो ॥धर्म मुक्तिसुख करो रे॥धर्म ॥ए श्रांकणी॥धर्मथकी धन संपजे रे, धर्मथकी सुख होय॥धर्मथकी आरति टले रे, धर्म समो नहिं कोय रे ॥ धर्म ॥२॥ पुर्गति पमतां प्राणिया रे, राखे श्री जिनधर्म ॥ कुटुंब सदको कारि मुं रे, मत नूलो जवि नर्म रे ॥ धर्म ॥३॥ जीव जिके सुखिया हृया रे, वली होशे जे जेह॥ के जिन वरना धर्मथी रे, मत को करो संदेह रे ॥धर्म ॥ ॥४॥ सोलसें बासठसमे रे, सांगानेर मकार ॥ पद्म प्रनु सुपसाउले रे, एह नण्यो अधिकार रे॥ धर्म॥ ॥५॥ सोहम स्वामी परंपरा रे, खरतर गछ कुलचं द॥ युगप्रधान जग परगमो रे,श्री जिनचंद सूरिंदरे ॥ धर्म ॥६॥ तास शिष्य अतिदीपतो रे, विनय वंत जसवंत ॥ आचारिज चढती कला रे, जिनसिंह सूरि महंत रे॥धर्म ॥७॥ प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना रे, सकलचंद तस शिष्य ॥ समयसुंदर वाचक जणे रे, संघ सदा सुजगीश रे ॥ धर्म ॥ ॥ दान शियल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) तप नावनो रे, सरस रच्यो संवाद ॥ जणतां गुणतां जावणुं रे, शछि समृद्धि सुप्रसादो रे ॥धर्म ॥ ए॥ इति श्री दान शियल तप नावनुं चोढालियुं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीशीतल जिन स्तवन।मोशालानी देशी॥ ॥शीतल जिन सहेजानंदी, थयो मोहनी कर्मनिक दि, परजायिक बुद्धि निवारी, परिणामिसें नाव समा री॥मनोहर मित्र ए प्रनु सेवो॥१॥वर केवलनाण वि लासी, अगनान तिमिर जयनाशी ॥ थयो लोकालोक प्रकाशी, गुणपर्यव वस्तु विलासी ॥ म ॥२॥ अद य स्थिति अव्याबाध, दानादिक लब्धि अगाध ॥ जे शाश्वता सुखनो स्वामी, जम इंघिय लोग विरामी॥ म० ॥३॥ जे देवनो देव कहावे, जोगीश्वर जेहने ध्यावे॥ जसु ाणा सुरतरु वेली, मुनिहृदय श्रारामें वेली ॥ म ॥ ४ ॥ जेहनी शीतलता संगें, सुख प्र गटे अंगोअंगे, क्रोधादिक ताप शमावे, जिनविजय आणंद सनावे ॥ म ॥५॥ इति ॥ ॥अथ पराधीनता विषे ॥ दोहा ॥ पर आश्रय सो कष्ट है, अरु लखु करी विश्वास; शिर धास्यो शशि शंजुनें, तौहू कृशता तास. १ बिन कारनहि मूढ जन, परके घरकू जात; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) लघुता पावे सोश ज्यु, कृष्ण पद शशि रात. २ कष्ट मूर्खपन जानियें, कष्ट तरुण धनहीन; कष्टहितें सो कष्ट जो, पर घर वासहि कीन. पराधीनता जीवकू, जीवित मरण निदान; तातें सो नदि कीजियें, जो व्है पुःख महान. ४ सुख दुःख है प्रारब्धवश, कहा होय पर श्राश; कर्म विख्यो सो नां मिटे , कहा होय बनि दास. ५ दास ताहिको होश्यें, जो व्है पर उपकारि; ऐसो ईश्वर एक अरु, सजन विरलो धारि. ६ पर श्राश्रय असि धार है, चूकत काटत पाय; जय श्रधिको सुख है तनक, सो न कीजियें नाय. परकी श्राश निराश है, कबहू पूरे नांहि; श्राश कीजियें शकी, सब सुख हे ता मांहि. ७ ॥अथ अक्कल विषे श्ररिक्ष बंद ॥ अकलवान नर होय, नही नूखे मरे; अकलवान नर होय, काज ताको सरे, अकलवान नर होय, सदा ते सुख लहै; (परिहां ) अकलवान नर होय, दैवतें सुख सहै. १ अकल सकलतें अधिक, मान अति देत है; नूप करत है मंत्रि, सव्हा तिहिं लेत है; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) कल मिलावें राज, सबै जग जानही; ( प रिहां ) कल दैव श्राधीन, नहीं इनसानहीं. २ अकलवान परदेश, जाइ सुख पावहीं; कलवान के गेह, सकल चलि घ्यावहीं; अकलवानकूं सर्व, देत यति मान है; ( प रिहां ) कलवानकूं दैव, करत बहुमान है. ३ अकलहींतें नये ग्रंथ, अकल मंदिर बंधे; कल हितें किये जहाज, अकल देशहि संधे; अकल चलाये धर्म, अकल मर्महि दियो; (परिह) कल देव ढिग रांक, कतु नहि चालियो. ४ अकल विना पशुतुल्य, कहावे आदमी; अकल विना नर जान, नहीं पीडा समी; कल विना नहि रोग, वैद्य मिटावे है; ( परिदां ) कल दैवको दान, जुं सैद होवे है. ५ कल हितें सब होत, जगत्मे काज है. कल हितें सब होत, स्थापना राज है; कल हितें सब होत परम पावन सही; ( प रिहां ) दैव विना कबु प्रकल, हुको चालत नहीं. ६ अकल बतावन छाकल, अकलतें गुरु दुवै; अकल हितें गत विकल, अकलतें नै कुवे; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) कलह किये तलाव, पाज किय लंककी; 1 ( परिहां ) दैव पास नहीं चले, कल बनाये वस्त्र, शस्त्र कीने घने; कल बनाये गेह, बडे सब जो बने; कल बनाये धातु, सबदि व्यवहार है; ( परिहां ) दैव विना यह अकलशुं, सर्व असार है. ॥ अथ गुण विषे दोहा ॥ २ वडे वंश तातें वडे, वमी लाज घट माहि; घर सरवरकों सजरम, लहतज श्रादर न्याइ. १ हर कर हरमुख हर हृदय, हरि घर अंग विराज; समुद्र तजि लागे सही, जो गुणनें उदेराज. गुण वि कोउ नां चहै, गुणतें श्रादर होत; ज्यूं गुण विना कमान सो, चाहत नहि को जोत. ३ गुन बिन मनुष्य क्या करै, भूख मरे लहि दुःख; गुन वालो घोडे च, पावै बहुहि सुख. लक्ष्मी सो जावै चली, गुण नहि जात पलाय; जीवत सुखकों देत है, मुवे कीर्त्ति श्रादाय. गुण सो ऐसो लीजियें, जायें है निर्वाह; प्रदेशमें बंधव हुवै, मान देत नर नाह. गुन विन पशुवत आदमी, खात फिरत जगमांहि; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only कल इस रंककी 9 ४ Ա Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) एक सींग अरु पूल नहि, सर लक्षण दि. ७ गुण सबदकें लीजियें, जात पात न विचार; दतात्रेयने वीश गुरु, करि गुन लीने सार. ॥अथ स्त्री विष दोहा॥ ॥ मोह्या दानव देवता, नर मोह्या संसार; . नारी महियल मोहनी, कहि नरपति सुविचार. १ ज्यां नारी त्यां नर वसे, नर त्यां वसती नार; कवि नरपति श्म उच्चरे, जिम शिव शक्ति संसार.५ जोअंतां हियडं हसै, व्है रलियाश्त मन्न; कहि नरपति सुण बापमा, नारी नाम रतन्न. ३ जो नारी नयणे मिले, जाणे दीठी जाख; वावणहारो एक जण, चावणहारा लाख. नारी वीण दहामो कीसो, कह किम रयणि विहा; अति चाख्या रस रूअमा, ते श्रासमी न हाइ. ५ नारायण नारी वडे, कीधो दैत्य संहार; कहि नरपति सुण बापमा, तिरिया त्रिभुवन सार.३ नारी पाखें नवि सरे, किम वाधे संसार; तिरिया सविहूं वालही, अमिय तणा नंमार; ७ श्रांबा रायण सेलमी, मीगं एह अपार; तिरिया तोले को नहीं, कहि नरपति सुविचार. ७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) शिर जीतर जे शेरमो, मयणतणो ए माग; कवि नरपति श्म उच्चरे, वेणी वासुग नाग. ए मणि साची वासगतणी, शिर राखमी सुहंत; चरणे पटकुल चांपती, हंस गति हीडंत. १० निलवट टीली वाटली, कान ऊबूके काल; अधर अमूलक नारीना, दंततति विरहा वाल, ११ मृगमद चंदन लाश्य, नयणा श्रमिय कचोल; । जुश्रमंगलमां वातडी, मुख पूरं तंबोल. १५ नासा निरमल नारिनी, मुगता फल फलकंत; मुनिवर जाणे मुगति फल, चतुर पणे चाहंत. १३ करि चूमा चंपावना, पाय निउर रणकार; उर कसमसतो कांचुर्ज, कंठहिरागल हार, बोलती बहु रीजवे, इण रीऊव्या नरीद; अरे कुंकुम रादमी, बीजे चंदा चंद १५ यौवन वन नारीतणुं, सहुको सिंचणहार; स्नेह सुगंधां फूलडां, गहि गहियां अप्पार. १६ प्रेम तणी त्यां हमी, गुण गिरुयां फल दिक नर जमरा तिण वन वसे, माया मूर सुमिह १७ कवि नरपति मुनि बापडा, वति वनिता रस माणि; जग तरुअर फल दिछ नहिं, नारी निश्चय जाण. १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ দুই ( १२३ ) वली विधाता विनवुं, जली निपाई नारि; नर रंजण ए गोरमी, रमारमती संसारि. महिला विष मंदिर किशुं गोठ किसी संसार; तेथानक सोदामणां, ज्यां ज्यां ऊजी नार. रीसावी नवयौवना, नर नहीं मेले पाउ; कहि नरपति सुन बापमा, हूर्ज मयण पसाउ. लाड घहेली लाडकी, गुणको जाणे पार; सार संसारे सुंदरी, कहि नरपति सुविचार. एक सोनुं ने सुंदरी, पुण्यत अधिकार: परमेश्वर पूज्या विना, किम लहियें संसार. एक सोनुं ने सुंदरी, वेहू नरनी / पंख; एक पखे पंखी विहाण, पुण्यवंत बिहु पंख. प्रिय सूती सुंदरी, आलींगन अधिकार; पातक बूद्धं दिवसनुं, रयण सेज मकार. नारी निर्मल वेलडी, नर अरुर परसंत; कवि नरपति इम उच्चरे, संयोगे सोइंत. संयोगे जग ऊपजे, वियोगे जग जाय; ए संयोग वियोगनो, विरला जेद लहाय. इक श्रालिंगन चुंबनद, अधर वलग्गा दंत; अंगढ़ जंगह मिली रह्या, नर कामिनि सेवंत. २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १५ २० २३ २४ २५ २६ २७ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) कामिनि सेव करंतमां, श्म सरवरा करंत; पहिले जोगे जोगीनी, जे मधुरी लागंत. ए धरती अंबर मेहबुं, ते वरसे चिहुं मास; धण धरती नर मेहबुं, वरशे बारे मास. ३० सोल अढारह वीसरे, तीरिया त्रीसहमाहि; तां सुंदरि सोहामणी, अलखामण अधिकाहि. ३१ जणि नरपति ए गोरमी, जे नर नेह करा खोब्यु नाणुं बंधि करि, बुद्धि विसावण जाश, ३२ जिम वाषण वनमांहिनी, विरडी विलगे श्रा, नारी वाघण नरहनी, विलगे वसने धाश. ३३ तां तप तां योग मत, जां जोये तां जोय; नयण बाण नारी तणां, जां नवि लागां होय. ३४ तां नाश्तां जांमरु, तां मन मयल म जोय; नयण बाण नारी तणां, जां नवि लागां होय. ३५ नणि नरपति नेह नारिनु, कायर नरह करंत; जिय देखे धन रूपडं, तेनी हो रहंत. काल अहेडी पेख रे, जव सागरकी पाल; नर मागने कारणे, नाखि युवतीजाल. तन मन यौवन धन, हरैति लोही मांस; एता अवगुण नारिकू, गुणकी केही श्रास. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) नारी नेह न कीजियें, जैसा रंग पतंग; पेहेली कीपे पांजरू, किम करि कहियें चंग. ३॥ जणि नरपति नर बापडा, माह्या सुणजो शीख, तिरिया गूफ प्रकाशियो, वेगु तो लीये जीख. ५० कहे नरपति नर बापमा, ए नारीनी घात; एके पीछे कागशृं, देश वजामी वात. १ नला जलेरा ते गया, लू उपरि जुएण; नारी श्राशा लागीयो, शिर दी, विक्रमेण. ४२ जेम जलो जल माहिती, तिम नारी निरवाण; ऊ लागी लोही पिये, नारी पीये प्राण. ४३ वेद पुराणे आगला, जे मापणना मूल; नारि वचन जे सांजले, ते नर जाणुं धूल. ४ वाटें चाचर चोवटे, बलियाते जीवंत; तिरिश्रा बिहटे जे उदया, नेह निखंत नमंत. ४५ कहि नरपति सुण बापडा, नारि म राचो को; जा संगम नारी वसै, ता नर मुगत न हो. ४६ नारी साथें नीगम्या, एता अवगुण हो जा संगम नारी वसै, ता नर मुगति न होश. ४७ जिम गिरि धन गयणे वसे, मृत्यु कठणका देश । नारी गिरि धन नरहकी, जीवति ठणका देश. ४७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) ५२ ५३ तां बालक तां रूडां, जां लग नरढ़ निशंक; जब तिरिया रस चाखियो, परिपरि चडे कलंक. ४० विशवानर अंगीठमी, वेला अवसर वात; ए तिरिया अंगी वडी, दहति रहे दिनरात. जेणे बिंद ब्रह्मा वसै, वसै ऊहेरह सार; बिंद हरण ए गोदडी, नरह तणो शणगार. नारी बंधय बंधया, कीधा पुरुष बयल; निशि दिन जार न उतरे, ताथ्यो फिरे बल्ल. क्यां गोवींद क्यां गोरमी, क्यां लक्षण क्यां लाज; जा संगत नारी वसै, सरै न एको काज. तिरिया मदन तलावमी, बुडो सयल संसार; काडणहारो को नही, बूंका बूंबत वहार. वि खूंटे तूं कों मरे, अरे सांजले नूर; किसी सगाइ नारिशुं जेह निसरशे दूर. इक कुग्रह प्रति दोहिलो, एवं हियडे श्राण; कवि नरपति इम उच्चरे, नारि नव ग्रह जाए. ५६ शणगारे सूरज वसे, वाणि वसै सोमेण; मंगल मंगल वसै, खालिंग ने बुधे. लखण तिदां सुरगुरु वसे, संजोगे शुक्रेण; वेणी कंत वसंतडो, दुष्ट मित्तिशि नेप. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only աս ug Աս ५७ ԱՄ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) श्राव वसे एणी परे, नवमा के गल; कवि नरपति श्म उच्चरे, उदरे वसंत राहु. एए कहि नरपति सुण बापडा, नवमा एननिवार; . मुगति तणो मारग लहै, नर बूटे संसार. ६० नाली मंगल कांग्ले, हारतणे अधिकार; एवे वाले वाटड़ी, कुणद न लको पार. ६१ जागंतां जाये कही, सूतां के सास; महीअलमांहे गोरमी, कीधा घणा निरास. ६५ नारी मोहे बापडा, जगनी मारणहारि; कवि नरपति इम उच्चरे, चामुंग रूप संसारि. ६३ ते माह्या ते रूअडा, ते मुनिवर ते मला जे नर नारी नवि कल्या, ते साचला ब्यब. ६४ तरणा केरी आग जिम, जिम उन्हाले मेह; तिम प्रमदानी प्रीतडी, पग पग आपे बेह. ६५ श्राप सवारथ आपणे, नारि वखाणण जाय; जे दूषण कविजन कहै, ते किम फूगं थाय. ६६ नारी दीवो कणकनो, क्यां मेलणको मग; घरमां जय मूसातणो, बाहिर ताणे कग्ग. ६७ नारी नयणे जाण रे, नाहक बेदम हार; नारी यारी जाणं रे, नरने बंधणहार. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) तां एवं करे, जेवुं करे न कोट; पेठा चोट उतावली, ए वेरण कर लोइ. सतावीश हिडे वसे, मुख मंडण ढे सात; कहे नरपति ते नारशुं, केम करीजें वात. ते वेरागी साचला, जे वन पैठा जाज; इंद्र विगूतो बापको, ए तिरिया के काज किम जीवे ते बापमा, कुणशुं करे ति राव; फूफुण्य नागणि जिसी, तिरिया एहज जाव. नारी नही निशाचरी, विए नीर जे वहति; बोल्या विए मेले नहीं, कविता एम कहंति. ७३ साचं ते सुपनांतरे, जूगं बाजे तूर; कहि नरपति ए कामिनी, कंदल कूर कपूर. नारी चोरी एके रस, हृदय विचारी जोय; जे सुख व्है मोरी किये, ते सुख नारी होय. दिवसा वाणिज अति घणा, जे धुरते व्यापार; जे नर धूते नारिने, ते धूरत संसार. तरस्यां लोही पाइयो, नूरूयां दीधुं मांस; आपणडुं बाली करी, अवरह कीधी यास. पहिली बीजें चांद्रएं, तिम तिरियाको नेह; कड़े नरपति सुण बापमा, कां विडंबे देह. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ६५ Jo ७१ ७४ उ ७६ งง IG Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२ए) जिम वेलू थल मेहबू, तिम तिरयाको नेहा कहि नरपति सुण बापडा, कांश विटंबे देह. ए काचे तांतणे गांठमी, तिम तिरियाको नेहा कहि नरपति सुण बापमा, कां विटंबे देह. . ७० निखर केरो कूप जिम, तिम तिरियाको नेह; कहि नरपति सुण नापमा, कांश विटंबे देह. १ अबला तो हे बापडा, ए सकली संसार जे सबला नर साचिला, नबला कीधा नार. २ तां सबला नर साचिला, जां अबला मिलंत; जिम श्राबण दूधे मट्युं, कविता एम कहंत, ३ सर सीगिणिकू चाहियो, परकू घात करंत; नर नारीनो वाहियो, परि परि पाप करत. नारि नहिं रे बापमा, निश्चे विषनी वेलि; जो सुख वंडे जीवने, तिरिया संगत मेलि. यौवनवंती गोरमी, जो नलि जोतां होय; कांकच केरी जाल जिम, बांह पनडके जोय. द स्नेह परिक्रम वांचतां, पुरुषह हुवे पवित्त; कवि नरपति इम उच्चरे, जग सहुये श्म रत्त. ७ थाना मंडन वीजली, डुंगर मंडन मोर; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) तिम घर मंडन गोरडी, मुख मंडन तंबोल. ७ महोरे अंगण पीपली, उमकी बेसे काग; सोन मढावं तोरिचांचडी. जो पिय आवेशाज.नए सांजल गोरी हुँ कहुं, हुं परदेशी काग; जोश्रण उपर पीयु पड्यो, ते किम श्रावे श्राज. एण स्त्री वाहीयु सयल जग, सुर नर ईसर देव; अकह कहाणी मयणनी, सहु करावे सेव. ए! नारी वदन विलोकतां, नर व्है वदन विकास; मानसरोवर कमलिनी, शशिवर मिलिजंजास. ए शशिहर खाडं कां रां, थर्ड निपाइ नारि; रामा रामा सहु करे, युग युगनी आधारि. ए३ नर सोहै नारी मिलै, नारी नरह मिलंत; जेम रयण शशिद मिले, शशिहर रयण मिलंत. ए४ नारी नयण तुमारडां, लोह विहूणां बाण; लागंता नवि जाणिये, काढी लीये प्राण. ए नारीकी जो प्रीत है, येहि रीत विपरीत; जीवत तन धन मन हरत, मरत औगति कीत. ए६ नारि पराई आपणी, औ वेश्या सब धूरि; मार्गहूकी वा नदीहकी, रेत सुगली धूरि. एy जा घरमांहि कुजारजा, ताको जन्मसुव्यर्थः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) ता जियपै मरणो जलो, सुख नहिं होत समर्थ. ए७ नारी सुनारी तो मिलही, पूर्व पुण्य जो होश ऐसो विरलो जगत्में, जन देखीजें को. एए सोरा कपट कृपानी कूर, कूप पापकी जाणियें; रहियें इनथें दूर, तब सुख सहजें पाश्य. १०० सवैयो. समुळे नहि बात करै बहुघात, रचै व्यतिपांत कुल क्रमसों, धरे मुख हेज हिये घन पेज, हसैहि सहै ज यही भ्रमसों, कहै कविचंद जुचंद मुखि सुवरै हिनचंद हिके श्रमसों, रहियें जिढुंदर जामेंवहुकूर तिहानिकि प्रीति, मिले ब्रमसों. १०१ ॥ दोहा ॥ मुह बोले मीठी जुगति, फूठी चित्तकी रीति धीठी अन श्ठी मती, दीठी मौनहि प्रीति. १०५ वरजी रहै न सिख सुने, हटकी मानत नाहिः । आंखी माखी एक सी, सब काहू पै जांहि. १०३ ॥कवित्त ॥ प्रीतकी न गीतकी न रीतकी कवीतकी न, मित्तकी न चित्तकी न नैस ऐसी मोथरा; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ · ( १३२ ) बोली वो न बोली जानै मूढ रूढ गूढ वानै, काहूकी न मैर याने राखे मुख थोथरा; गुनीको न गुन बूके गुनमें चौगुन सूकै, कबहु न पुष्ट रीजे नाट केसै पूतरा. नारी वेस्या दु बुरी, घरकि नरक्की खाणि पराइ पातरक रकसी, परसत लेवे प्राणनारी जैसी न डून्नरी, जगमें दुःख देनारी, धन होवे तो प्रिय हुवे, नहिं तो मारे मारी. १०६ नारी दुःखकी वेलडी, तिनसें केसी यारी; यौवन धनलुं याहरी, पिठे होइसी प्यारी. यौन लाख रु एक गुन, संतति देय उपा; ताहित कि किरनार यह, नेह न करीये जाई. १०० कन्न फटीखे मंकणी, सयल लोयकूं खाय; तो सदा भूखी रहे, कबहु नहि श्रघाय. नारी मोहकी जगनि है, करत मोह वस पैस; पिछे सदा फिरतो फिरे, ज्युं घांची को बैल. नारी नेह न कीजियें, नेहे होय विपास; विक्रम मन होवै सदा, धन यौवनको नास. नयणे वयणे जे मिले. ते जग विरली नारी; ruकमि पय नच्चावती, दीसे घर घर बारि. ११२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only २०४ २०७ 200 ११० १११ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) ॥ सोरग ॥ सूतां जोए सास, मूआं वोलावी वरे; स्त्रीश्रतणो वीसास, कालांतर कीने नहिं. ११३ ॥दोहा॥ गोरि ताहरां नयणलां, बहिरे जातां वारिः । कर कंटाली वाड करि, कर घर बेगं चारि. ११४ जेती नारी रूअडी, ते नर विरुआ लक; जे नर रूपे रूयमा, तेह कुनारे बक. ११५ रन्ने सुजन मिलाव, रन्ने हुश्रा जुहार; आदर करी न तेडिया, घर ले घरिणि कुहाड. ११६ ॥ चोपाई॥ सूती उठी गालि दियंती, हीडे परघर घात करती; हबकुसुधी हांडी फोडे,आप पसंसि जगत्रि निहोडे.१७ दिण दिण दिसे नयण नरंती, मंड धरिज कूपपडती दणक्षण निहुँरह नासंती, ससत्तावे घर न वसंती११० आयसिलके परही चसी, नियघर रूसण बाहिर बुसी बोलनापेअलिथ जपे, सास्त्री देखी चंडविकंपे.११॥ उढणडी अतिवारुकीजे, किये करावे कह विन लीजै; घरअणुसारेजोजनदीजें, तहविकुंजजाउहणुखीजे२० ॥ दोहा॥ चंचल चपल चलंफला,घण आहार सरोस; तुरियह पंच हुये घणां, ते स्त्री पंचे दोस. ११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) ॥ दोहा ॥ सारि सुरूप शुज प्रेमदा, रामा सरल स्वजाव; सदा सुदद सुज्ञान सो, पत्नि पुण्यहि मिलाव. १ असार या संसारमें, मृगलोचना सु सार; जास कुदि उत्पन्न नये, नोज नूप वर चारु. २ नारि नरकमें डालहीं, तातें करिय न नेहा यह प्रत्यददि राक्षसी, खेत सप्त सब देह. ३ सब जन निंदत तीयकू, जइ क्युं सबकी शत्र; मैं नारीकी नितुरता, वसत सु हिय सर्वत्र. ४ जो व्है नारि कुनारजा, तो फुःखको नहिं अंत; । ऐसो दुःख न व्है और जय, अनुजवतेहि दिखत.५ नारि यारि प्यार लगे, पे मारी देत येहा रावण जेसे मर गये, पर नारीके नेह. ६ साधु पुरुष नारीको, करत न स्पर्श कदाहि; तातें सर्वही पूज्य है, देखो प्रगट दिखाहि. ७ नारी विखकी वेल है, वासूं करहुं न यारि; स्पर्श करत विष चढत फिरि, कबहु उतरत न वारी. नारीकुं जो वंदही, कुकवि कहत सब ताहि; नारीकू जो निंदही, सुकवि सोहि कहाहि. ए tam Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) ॥अथ श्री एलाची कुमरनी सद्याय ॥ ॥ नाम एला पुत्र जाणीये, धनदत्त शेग्नो पु त्र॥ नटवी देखीने मोहीयो, नवि राख्युं घर सूत्र॥ कर्म न बूटे रे प्राणीया ॥१॥ ए आंकणी॥पूरव नेह विकार ॥ निज कुल बंमी रे नट थयो, नाणी शरम लगार ॥ कर्मः ॥२॥ मात पीता कहे पुत्र ने, नट नवि थए रे जात ॥ पुत्र परणावं रे पदम णी, सुख विलसो ते संघात ॥ कर्म ॥३॥ कहण न मान्युं रे तातनु, पूरव कर्म विशेष ॥ नट थश्शी ख्यो रे नाचवा, न मिटे लखिया रे लेख ॥ कर्म॥ ॥४॥ एक पुर आव्यो रे नाचवा, जंचो वंस विशे क ॥ तिहां राय जोवाने श्रावियो, मलिया लोक श्र नेक ॥ कर्म ॥५॥ ढोल वजावे रे नटवी, गावे किन्नर साद ॥ पाय तल घुघरा घम घमे, गाजे अंब रनाद ॥ कर्म ॥६॥ दोय पग पहेरी रे पावमी, वंस चड्यो गज गेल ॥ नोधारो थ नाचतो, खेले नव नवा खेल ॥ कर्मः ॥ ७॥ नटवी रंजारे सारिखी, नयणे देखे रे जाम ॥ जो अंतेउरमां ए रहे, जनम सफल मुज ताम ॥ कर्म ॥॥ तव तिहां चिंते रे नूपति, बुब्धो नटवीनी साथ ॥ जो नट प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६) डे रे नाचतो, तो नटवी करूं मुज हाथ ॥ कर्मः॥ ए ॥ कर्म वशे रे हुं नट थयो, नाचुं बु निरधार ॥ मन नवि माने रे रायगें, तो कोण करवो विचार । कर्म ॥१७॥ दान न आपे रे नूपति, नटे जाणी ते वात, हुं धन वंडं रायन, राय वंडे मुंज घा त ॥ कर्मणः ॥ ११॥ दान ललं जो हुं रायन, तो मु ज जीवित सार ॥ एम मन मांहे रे चिंतवी, चढि यो चोथी रे वार ॥ कर्म ॥ १२ ॥ थाल नरी शुरू मोदके, पदमणी उनी ने बार ॥ ल्यो व्यो कहे डे लेता नथी, धन धन मुनि अवतार ॥ कर्म ॥१३॥ एम तिहां मनिवर वहोरता, नटे देख्या महा जा ग ॥ विधिक विषयारे जीवने, एम नट पाम्यो वैराग॥ कर्म ॥ १४॥ संवर नावे रे केवली, थयो ते कर्म खपाय ॥ केवल महिमा रे सुर करे, लब्धि विजय गुण गाय ॥ कर्मः ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्री रात्रिनोजननी सद्याय ॥ ॥ पुण्य संयोगे नरजव लाध्यो, साधो श्रातम का ज ॥ विषया रस जाणो विष सरीखो, एम लांखे जिनराज रे ॥ प्राणी रात्रि जोजन वारो ॥ श्रागम वाणी साची जाणी, समकित गुण सहिनाणी रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) प्राणी रात्रि जोजन ॥ १॥ ए आंकणी ॥ अन्नद बावीसमां रयणी नोजन, दोष कह्या परधान ॥ तेणे कारण राते मत जमज्यो, जो होय हैडे सान रे॥ प्राणी ॥२॥ दान स्नान आयुध ने जोजन, एट लां राते न कीजे ॥ ए करवां सूरजनी साखे, नीति वचन समजीजे रे ॥ प्राणी ॥३॥ उत्तम पशु पं खी पण राते, टाले जोजन टाणो ॥ तुमे तो मान वी नाम धरावो, केम संतोष न आणो रे ॥ प्रा० ॥४॥ मांखी जु कीमी कोलीयावमो, जोजनमा जो आवे ॥ कोड जलोदर वमन विकलता, एवा रो ग उपावे रे ॥ प्राणी ॥५॥ उन्नु नव जीव हत्या करतां, पातक जेह उपायुं । एक तलाव फोडतां ते टर्बु, पुषण सुगुरु बतायुं रे ॥प्राणी ॥६॥ एक लोतर नव सर फोड्या सम, एक दव देतां पाप ॥ अठलोतर नव दव दीधा जिम, एक कुवणिज सं ताप रे ॥ प्राणी० ॥ ॥ एकसोचुम्मालीस नव लगे कीधा, कुवणिजना जे दोष ॥ कूडं एक कलंक दीयंतां, तेहवो पापनो पोष रे॥प्राणी ॥॥ एकसो एकावन लव लगे दीधां, कूमां कलंक अपार ॥ एक वार शील खंड्या जेहवो, अनरथनो विस्तार रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८ ) प्राणी ० ॥ ५ ॥ एकसो नवाणुं जव लगे खंड्या, शि यल विषय संबंध ॥ तेहवो एक रात्री जोजनमां, क निका चित बंध रे ॥ प्राणी० ॥ १० ॥ रात्रि जो जनमां दोष घणा बे, कहेतां नावे पार ॥ केवली कदेतां पार न पावे, पूरव कोमी मकार रे ॥ प्राणी ० ॥ ११ ॥ एवं जाणीने उत्तम प्राणी, नित चलविहार करीजे ॥ मासे मासे पास खमणनो, लान एणी वि ध लीजे रे ॥ प्राणी० ॥ १२ ॥ मुनि वसतानी एह शीखामण, जे पाले नर नारी ॥ सुरनर सुख विल सीने होवे, मोक तथा अधिकारी रे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ अथ श्री पर्युषण पर्वनो स्वाध्याय प्रारंभः ॥ ॥ पर्व पजुस श्रावीयां रे लाल, किजे घणां ध म ध्यानरे ॥ जवीक जन ॥ रंज सकल निवारी यें रे लाल, जीवोने दीजे अजय दान रे ॥ ज० ॥ पर्व० ॥ १ ॥ ए की || सघला मास मांदे शिरे रे लाल, जाडव मास सुमासरे ॥ ज० ॥ तिए मांहे आठ दिन रूमा रे लाल, कीजे सुकृत उल्लास रे ॥ ज० ॥ प० ॥ २ ॥ खांगण पीसण गारनां रे ला ल, न्हावण धोवण जेह रे ॥ ज० ॥ एहवा श्रारंज टालवा रे लाल, उत्सव करीये अनेकरे ॥ ज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) प० ॥३॥ पुस्तक वासी न राखीये रे लाल, उत्सव करीये श्रनेकरे ॥ न० ॥धर्म सारू वित्त वावरो रेलाल, हैये प्राणो विवेक रे ॥ नम्॥पण ॥४॥ पूजी अर्ची आणीय रे लाल, श्री सद्गुरुनी पास रे ॥ ॥ ढोल ददामा फेरीयां रे लाल, मांगलिक गावो गीत रे॥न०॥ प० ॥५॥ श्रीफल सिख र सोपारियां रे लाल, दीजे स्वामीने हाथ रे॥न॥ लान अनंता वधावतां रे लाल, श्री मुख त्रिजुवन नाथ रे॥ न०प०॥ ६॥ नव वांचन कल्प सूत्र नुं रे लाल, सांजलो सूधो जाव रे ॥ ज० ॥ स्वामी वत्सल कीजीये रे लाल, नव जल तरवा नाव रे ॥ न॥प०॥७॥चित्त करि चैत्य जुहारीय रे ला ल, पूजा सत्तर प्रकार रे ॥न० ॥ अंग पूजा सुगुरु तणी रे लाल, कीजे हर्ष अपार रे ॥ज प०॥ ॥॥ जीव अमारी पलावीयेंरे लाल, तिणंथी शि व सुख होय रे॥ ज०॥ दान संवत्सरी दीजिये रे लाल, शण सम पर्व न कोय रे ॥ न ॥१०॥ ए॥ कानस्सग्ग करीने सांजलो रे लाल,आगम आपणे कान रे॥ ज०॥ बन अठम तप करा रेलाल, कीजिये उज्वल ध्यान रे ॥ ज ॥ १०॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ) विधे जे आराधशे रे लाल, ते लदेशे सुख को कि रे ॥ ज० ॥ मुक्ति मंदिरमें म्हालशे रे लाल, मति हंस नमे कर जोकि रे ॥ ज० ॥ प० ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री मेघरथ राजानी सद्याय प्रारंभ ॥ ॥ दशमें नवे श्रीशां तिजी, मेघरथ जीवडो राय ॥ रूमा राजा ॥ पोसह शालामां एकदा, पोसह ली यो मन जाय ॥ रूमा राजा ॥ धन्य धन्य मेघरथ रायजी, जीवदया गुण खाण ॥ धर्मी राजा ॥ धन्य० ॥ १ ॥ ए झांकी ॥ ईशानाधिप इंद्रजी, वखाएयो मेघरथ राय ॥ रूडा राजा ॥ धर्मे चलाव्यो नवि च ले, जासुर देवता श्राय ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥ २ ॥ सींचाणा मुखे श्रवतरी, पमीयुं पारेतुं खोला मांदे ॥ रूमा राजा ॥ राख राख मुज राजवी, मुजने सींचाणो खादे ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥ ३॥ सींचा कहे सुणो राजीया, ए बे माहारो आहा र ॥ रूडा राज ॥ मेघरथ कहे सुए परंखीया, हिंसा थी नरक अवतार ॥ रूमा पंखी ॥ धन्य० ॥ ४ ॥ श रणे आव्युं रे पारेवडुं, नहीं श्रापुं निरधार ॥ ॥ रूडा पंखी ॥ माटी मगावी तुजने दीऊं, तेहनुं तुं कर आहार ॥ रूमा पंखी ॥ धन्य० ॥ ५ ॥ माटी खपे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) मुज एहनी, कां वली ताहरी देह ॥ रूमा राजा ॥ जीवदया मेघरथ वसी, सत्य न मेले धार्म तेह ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥६॥ काती लेई पिंम कापी ने, से मंस तुं सींचाण ॥रूमा पंखी ॥त्राजुयें तोला वी मुजने दीयो, ए पारेवा प्रमाण ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥७॥ त्राजु मगावी मेघरथ रायजी, का पी कापी मूके डे मंस॥ रूडा राजा ॥ देवमाया धा रण समी, नावे ए कण अंश ॥ रूडा राजा॥ धन्य ॥ ७॥ नई सुत राणी वल वले, हाथ जाली कहे तेह ॥ धर्मि राजा ॥ एक पारेवाने कारणे, शुं कापो डो देह ॥ रूमा राजा॥धन्यण ॥माहाजन लोक वारे सहु, म करो एवमी वात ॥ रूड़ा राजा॥ मेघर थ कहे धर्म फल जलां, जीव दया मुज घात ॥ रू डा राजा ॥ धन्य० ॥ १० ॥ त्राजुयें बेगे राजवी, जे नावे ते खाय ॥ रूमा पंखी ॥ जीवथी पारेवो अधि क गएयो, धन्य पिता तुज माय ॥ रूमा राजा ॥ध न्य० ॥११॥चमते परिणामे राजवी, सुर प्रगट्यो तिहां आय ॥ रूडाराजा ॥ खमावे बहु विधे करी, लली लली लागे जे पाय ॥ रूमा राजा॥धन्यार॥ इंड प्रशंसा ताहारी करी, तेहवो तुं जो राय ॥ रू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) डा राजारामेघरथ काया साजी करी, सुर पोहोतो नि ज ठाय ॥ रूडाराजा ॥॥ धन्य० ॥१३॥ संयम ली यो मेघरथ रायजी, एक लाख पूरवनुं श्राय ॥ रू डा राजा ॥ विश स्थानक विधे सेवियां, तीर्थंकर गो त्र बंधाय ॥ रूडा राजा॥धन्य॥१४॥श्ग्यारमेनवे श्री शांतिजी, पोहोता सारथ सिझ॥ रूडा राजा ॥ ते त्रीस सागर श्राऊ, सुख विलसे सुर रिक ॥ रू डा राजा। धन्य० ॥ १५ ॥ एक पारेवा दया थकी, बे पदवी पाम्या नरेश ॥ रूडाराजा॥ पांचमा चक्रवर्ती ऊपन्या, सोलमा शांति जिणंद ॥ रूडा राजा ॥ध न्य॥ १६॥ लाख वर्ष आयु शांतिजी, पोहोता शि वपुर वास ॥ रूडा राजा॥ जीव दया परसादथी, फ से सहु मननी आश ॥ रूडा राजा॥ धन्य० ॥१७॥ दया थकी नव निधि होवे, दया ते सुखनी खाण ॥ रूडा राजा॥ कोड जवांतरनी सगी, दया ते माता जा ण ॥ रूडा राजा॥ धन्य० ॥ १० ॥ गज जवे शशलो राखीयो, मेघकुमार गुणजाण ॥ रूडा राजा॥ श्रेणि करायजी सुत लह्या, पोहोता अनुत्तर विमान ॥ रूडा राजा॥ धन्य० ॥ १५ ॥ एम जाणी जवि दया पा खजो, बकायनी सुखदाय ॥ रूडा राजा ॥ नवा रे न. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) गर मोहे खंतशें, कही मेघरथ सशाय ॥ रूमा रा जा ॥ धन्य ॥२०॥ संवत सत्तर सत्ताणुयें, मास खमण दिन जाण ॥ रूडा राजा ॥ ऋषि गोवर्धन पसायथी, कहे रायचंद शुनवाण ॥ रूडा राजा ॥ध न्य॥१॥इति ॥ ॥अथ काम कंदर्पनी ससाय प्रारंजः ॥ कीमी चाली सासरे रे, नव मण मेंदी लगा यहाथी लीया दो गोदमां, ऊंट लीयां लटकाय॥ करेलडां घडदे रे ॥ ए देशी ॥ काम विकारें मान वी रे, करे कुकर्म अनेक ॥ काम करेवा कारणे, वि रमे आप विवेक ॥१॥ कामी नर वर्जजो रे, का मह केरा विकार ॥ कामी नर वर्जजो रे ॥ ए श्रांकणी ॥ काम वशे जे वाहीया रे, पाम्या पुःख अपार ॥ लंपट थयो लंकापति, अवलेही स्व श्राचा र॥ कामी० ॥२॥ काम थकी सीता हरी रे, ला व्यो रावण लंक ॥ दश शिर रामे दीयारे, काम त णा ए वंक ॥ कामी ॥३॥ पद्मोत्तर प्रौपदी हरी रे, पांडव पांचनी नार ॥ कृष्ण बले लेश श्रावीया, बूटी ते राय थई नार ॥ कामी० ॥४॥ काम विक ल हुई कामनी रे, ते सुरीकंतारे नार ॥ निजपतिने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) हायें हयो, पोहोतो ते स्वर्ग मकार ॥ कामी० ॥५॥ ब्रह्मदत्त निज सुत ऊपरे रे, कीधो एकत्र प्रपंच ॥ चूकी चूलणी मारवा, कामह केरा ए संच ॥ कामी ० ॥ ६ ॥ इत्यादिक कामें करी रे, पाम्यां दुःख अ ह ॥ एणे जवतो लंपटी तणो, नाम धरावे तेह ॥ का मी० ॥ ७ ॥ पर जवतो नरके पचे रे, नाम थकि ए जीव ॥ मुनि जुधर कहे प्राणीया, वर्गों काम सदै व ॥ कामी ० ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ वैराग्य सझाय ॥ ॥ प्राणी काया माया कारमी, कूमो बे कुटुंब प रिवार रे ॥ जीवडला ॥ समरण कीजें सिद्धनुं ॥ मा दरूं माहरू म कर रे मानवी, पंथ वदेवुं परले पार रे ॥ जीवडला ॥ सम० ॥ १ ॥ प्राणी सहुने वलावें सांकल्या, मलिया बे मोहने संबंध रे ॥ जीवडला ॥ प्राणी आयु दायें लगा थयां, धीठो एवो संसारी धंध रे ॥ जी० ॥ सम० ॥ २ ॥ प्राणी काष्ट परें रे का या बले, वली केश बले जेम घास रे ॥ जी०॥ प्राणी मानवी मर्कट वैरागीया, वली पडे माया विश्वा स रे ॥ जी० ॥ सम० ॥ ३ ॥ प्राणी पडाइ ऊडे जीव ऊपरे, दोरी पवन बलें लेइ जायरे ॥ जी० ॥ प्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) णी त्रूटी दोरी संधाय , आऊखु टु न संधायरे जी० ॥ सम ॥ ४ ॥ प्राणी काचे कुंने पाणी केम रहे, हंस ऊमीने जायरे जी० ॥ प्राणी आशा अति घणी आदरे, थावावालो तेहिज थाय रे जी० ॥ सम ॥ ५॥ प्राणी जेने घरे नोबत गमगडे, गावे वली षट्र राग रे जी०॥ प्राणी गोखे तेहने घुमता, शुन्य थये वली कडे काग रे जी०॥ सम ॥६॥ प्राणी एम संसार असार बे, सारमां जिन धर्म सा र रे जी० ॥ प्राणं। शाति समर समय समता धर, चार त्यजी वली आदरो चार रे जी० ॥ सम॥७॥ प्राणी पांचे नजो रे पांचे तजो, त्रएय जीपोत्रण गुण धार रे जी० ॥ प्राणी रयणी नोजन परीहरो, सात व्यसन तजो सुविचार रे जीसमाप्राणी समता करो नित न कायनी सांजलो सगुरूनी वा णी रे जी०॥ प्राणी साची शीखामण एह , एम कहे जे मुनि कल्याण रे जी॥सम ॥ ए॥ इति ॥ ॥ शीखामण कोने आपवी ते विषे स्वाध्याय ॥ ॥ रे बेटी जली रे जणी तुं आज ॥ ए देशी ॥ शीखामण देतां खरी रे, मूढ न माने मन्न ॥शीलायें जल सींचतां रे, ऊगें नहिं जेम अन्न रे ॥ बेहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) नी॥त्यां बोल न बोलो एक ॥ ज्यां नहीं विनय वि वेक रे ॥ बेहेनी ॥ एवा माणस अनेक रे ॥ बे०॥ त्यां बोल म बोलो एक ॥ १॥ शिक्षा दीजें संतने रे, जेहनी उत्तम जात ॥ फाटे पणं फीटे नहीं रे, जेम पमी पटोले जात रे ॥ बे त्यां० ॥२॥ विघ टाव्यां विघटे नहीं रे, गालें घेइला थाय ॥ कसो टीयें कुंदन परे रे, कसतां नवी क्षण साय रे ॥ बे॥ त्यां० ॥ ३ ॥ मग मग दीसे मुंगरा रे, पग पग पा णी पूर ॥ हीरो ने अमृत बन्हे रे, शो ध्यान मलें सनूर रे ॥ बे० ॥ त्यां ॥४॥ श्रावल रूपें रूअमी रे, ममरो मरूळ सोय ॥ रूप रहित सहु श्रादरे रे, श्रावल न श्रादरे कोय रे ॥ बे० त्यांग ॥ ५ ॥ आप मतिलां श्रादमी रे, श्छा चारी अपार ॥ हास्यां दो स्यां हारमा रे, नावे ते निरधार रे ॥ बे॥ त्यां० ॥६॥ पड सुड़ी वाली वले रे, वालीवले वली वेल॥ कुमाणसने काउनी रे, वाली न वले वेल रे ॥ बेग ॥ त्यां ॥७॥ उदय रतन उपदेशथी रे, रीके जे पुरुष रतन्न ॥ तेहनां लीजें जामणां रे, जे करे शियल जतन्न रे॥ बे॥ त्यां० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) ॥ अथ अध्यातम सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ शांति सुधारस कुंडमां, तुं रमे मुनिवर हंस रे ॥ गारव रेणुशुं मम रमे, मूकजे शिथिल मुनि घंस रे ॥ शांति ॥ १॥ स्वहित कर म कर जव पूरणा, मकर तुं धर्ममा कूड रे॥ लोक रंजन घणुं मम करे, जाणतो क्युं होये मूढ रे॥ शांति० ॥२॥जो यति वर थयो जीवमा, प्रथम तुं आपने तार रे ॥ आप सारखे मुनि जो तस्यो, तो पड़ी लोकने तार रे ॥ शांति ॥३॥ तुज गुणवंत जाणी करी, लोक दी ये आपणा पुत्त रे ॥ अशन वसनादिक जरी दीये, खोटडुमधर मुनि सुत्त रे ॥ शांति० ॥४॥ नाण दं सण चरण गुण विना, तुं केम होय सुपात्र रे ॥ पा त्र जाणी तुज लोक दे, म जर तुं पाप निज गात्र रे ॥ शांतिः ॥ ५ ॥ सुधीये सुमति गुप्ति नही, नही तप एषणा शुद्धरे ॥ मुनि गुणवंतमा मूलगो, केम होये लब्धिनी सिकि रे ॥ शांति० ॥६॥ व्याप मांड्यो घणुं गुण विना, जुरि आमंबर श्छे रे ॥ घर त्यजी मान माया पड्यो, केम होये सिंह ग तिरी ले रे ॥ शांति ॥ ७॥ ऊपशम अंतरंगे नही, नही तुज चारू निर्वेद रे ॥ नति थुति पूज्य तुं अनिलर्षे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) म कर मानी खेद रे || शांति० ॥ ८ ॥ ऊदर जरणादि चिंता नही, सज्ञान कलत्र घर जार रे ॥ राज चोरादि जय तुज नही, तोही तुज शिथिल आचार रे || शांति० ॥ ए ॥ विविध दुःख देखी तुं लोकनां, तुज किसि चिंत मुनि राज किसि चिंत मुनि राज रे ॥ तुं जना वर्जनादिक पढ्यो, चुक म आपणुं काज रे ॥ शांति० ॥ १० ॥ पणुं पारकुं मत करे, मूक ममता परि वार रे ॥ चित्त समता रसे जावजे, म कर बहुं बाह्य विस्तार रे ॥ शांति ॥ ११ ॥ लोक सत्कार पूज्ये नमे, मुज मली लोकनां वृंद रे ॥ मुज यश नाम जग विस्तरयो, ईश्युं तुज मान मुणींद रे ॥ शांति० ॥ १२ ॥ पूरव मुनि सरिखो नही, किशि आपणी लब्धि सिद्धि रे ॥ अतिशय गुण किस्यो तुज नही, तोही तुज माननी बुद्धि रे || शांति० ॥ १३ ॥ पूर वे प्रजावक मुनि हुआ, तेहने तुं नही तोल रे ॥ आप ही घं जावजे, मुख बहु घणुं म बोल रे ॥ शांति० ॥ १४ ॥ नियड करी जे जन रंजीया, वश करया बहुजन लोक रे ॥ पूंठ दीधे न ते ता हेरा, गृहि मुनिना तरू फोक रे || शांति० ॥ १५ ॥ गुणे प्रमादी गुण हीनने, होवे बे तुज गुण रुद्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) रे ॥ तुज गुण मत्सरी मत होये, करी निज जीवनी शुधिरे ॥ शांति ॥ १६ ॥ संयम योग मूकी क री, वश कस्वा जे जन लोक रे ॥ शिष्य गुरू जक्त पुस्तक नख्या, अंते दीये सम विणुं शोकरे ॥ शांण ॥ १७ ॥ प्रशम समता सुख जलधिमां, सुर नर सु ख एक बिंद रे ॥ तेणे तुं सिंच सम वेलडी, मूकी दे अपर सव दंद रे ॥ शांति० ॥ १७ ॥ एक दण विश्व जंतु परे, तुं वसी जीव सम नाव रे ॥ सर्व मैत्री सुधा पान , सकल सुख सन्मुख लाव रे ॥ शांति ॥ १५ ॥ श्राप गुणवंत गुण रंजी, दीन पुःखी देखी दुःख चूर रे ॥ निर्गुणो वास विरति रही, सकल चंद सुख शुचि पूर रे॥ शांति॥॥इति॥ TUR Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) ॥ बंद मालिनी ॥ नित मुख मचकोडे, आलसें अंग मोडे; नितज शिर पखोडे, कारमी वात जोडे; धन रहित वखोडे, पागणूं गांठ बोडे; तिमव किम इति लोडे, अर्थ वेश्या विछोडे. १ उत्तम मधम तेमी, अर्थ लेति न जेमी; तरु जित नर वेडी, एकछू एक नेमी; त्रिय शरिरज रेमी, वेश पामी खलेगी; विल गिज जिह केडी, तेहनुं नाम फेमी. २ सुरत रस लजीजे, कोमी उत्संगि लीजें; तुश्न मन पतीजे, हाथ लीधी विलीजें; सम संपत्ति न धीजे, अर्थने काज बीजे; निह घर रहु कीजे, दैव, दोष दीजे. Sale Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only