SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१) नता बाहिर दीसत, ज्ञान सगति जस जाजे ॥सद् गुरु शीख सुने नही कबहु, सो जन जनतें लाजे ॥ प०॥ ए॥ तत्त्वबुद्धी जिनकी परिणति हे, सकल सूत्रकी कूची ॥ जग जस वाद वदे उनहीको, जैन दसा जस उंची ॥५०॥ १० ॥ इति ॥ पद पंदरमुं ॥ राग केदारो॥ में कीनो नही तो बिन उरशुं राग ॥ दिन दिन वान चढे गुन तेरी, ज्युं कंचन परजाग ॥ उरनमें हे कषायकी कलि का, सो क्यु सेवा लाग॥में कीनो ॥१॥राजहंस तुं मान सरोवर, उर अशुचि रुचि काग ॥ विषय जुजंगम गरुम तुंहि हे, उर विषय विषनाग ॥ में -॥२॥ उर देव जल बिबर सरिखे, तुं तो समुन श्रथाग ॥ तुं सुरतरु जग वंडित पूरण, और तो सूके साग ॥ में ॥३॥ तुं पुरुषोत्तम तुंही निरंजन, तुं शंकर वमनाग ॥ तुं ब्रह्मा तुं बुधि महाबल, तुंही देव वीतराग ॥ में॥३॥ सुविधिनाथ तेरे गुन फू लनको, मेरो दिल हे बाग ॥ जस कहे चमर रसिक होश तामें, लीजे नक्ति पराग ॥ में ॥५॥इति ॥ पद शोलमुं ॥ राग नह ॥ सुख दारे सुख दाइ, दादो पासजी सुख दाइ ॥ ऐसो साहिब नही को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy