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(३०) पिडाने, रहो अधमसेती न्यारा ॥ अजब० ॥५॥
पद चौदमुं ॥ राग श्रासावरी ॥ परम गुरु जैन कहो किम होवे ॥ गुरु उपदेश विना रेमूढा, दरिसण जैन विगोवे ॥१०॥१॥ कहत कृपानिधि समजल कीले, कर्म मेल जो धोवे॥ बाहिर पाप मल अंग न धारे, शुक्ररूप निज जोवे ॥ १०॥२॥ स्याद्वाद पूरन जो जाने, नयनित जसवाचा ॥ गुण पर्याय दरव जो ब्रूनें, सोश्जैन है साचा ॥१०॥३॥ क्रिया मूढमति जो अज्ञानी, चालत चाल अपूढी ॥ जैन दिसा उनमांहि नाहि, कहे सो सबही जूठी ॥पा ॥४॥परपरिणति अपनी कर माने, किरिया गर्वे घहिलो ॥ उनकू जैन कहो क्युं कहिये, सो मूरख मा पहिलो ॥ प० ॥ ५ ॥ जैन नाव ज्ञानी सबमां हि, शिव साधन सदहियें ॥ नाम खसे काम न सीके, नाव उदासे रहियें ॥ प॥६॥ ज्ञान सकल नय साधन साधो, क्रिया ज्ञानकी दासी॥ क्रिया करत धरतु है ममता, याहि गले में फांसी ॥ प०॥ ॥७॥ क्रिया बिना ज्ञान नही कबहुँ, क्रिया ज्ञान बिनु नांहि ॥ क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहतु है, जिऊं जलरस जलमांहि ॥ १० ॥७॥ क्रिया मग
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