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(ए) ॥ महाराज, वीनती मानो ॥ अरदास हियामें था नो, सेवककू अपनो जानो ॥ देव दीगग जिनवर न्या रे ॥ देव दीगण॥ ग्यान ॥ ४॥ अरज अब सेवक यु करता रे ॥ अरज॥ नवजलसे मो हे पार उतारो, निगोदसे मरता ॥ श्री जिन बानी ॥ महा राज, श्री जिन बानी ॥ अमृतसें अधिकी जानी, जि न दास हियामें श्रानी, कीर्ति जिनवरकी में गाइ रे ॥ कीर्ति ॥ ग्यान ॥ ५॥ ॥ए॥
॥अथ श्री नेमजीनी लावणी॥ ॥ दे गया दगा दिलदार, सुनो मेरि मार ॥ सु० ॥ लग रही नेम दरसनकी, सरस असना॥ ए आंकणी ॥ अब अजब अलीजो नेम, मेरे शिर बाजे ॥ मेरे ॥ जादवकी देखी जान, जगत् सब लाजे ॥ एसो नेम नवल ए खवींद, अनोखो बाजे ॥ अनो० ॥ सुर नर सब गावे गीत, गगनमें गाजे ॥ अब दोम दोम सब पुनीयां, देखन आ॥देणादे॥ ॥१॥ अब चट्या नेम तोरणकं, आनंद दिल धर कर ॥ आनं० ॥ सज थाये सुरंगी साज, किलोला कर कर ॥ में पायो परमानंद, हरख हियो जर कर ॥ हरख ॥ ले गयो पति नेमनाथ, मेरो चित्त हर
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