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(नए)
॥ उपदेश लावणी॥ ॥ श्रगम पंथ जानां हे नाइ रे ॥ अगम०॥ ग्या न ध्यान समकित संजमसे, सुधरे कमाइ ॥ अग म॥ ए श्रांकणी॥ मेल मन अंतरकी ग्रांटी रे॥ मे० ॥ कर्म उदय चेतनकुंपमी हे, निगोदकी घांटी। महा पुःख पाया ॥ महाराज, महा उःख पाया ॥ जिनवर मुखसे नहिं गाया, निज प्राणकुं नहि सम जाया॥नही तिल नर साता पारे ॥ नही तिल न र० ॥ ग्यान ॥१॥ तन धन जोबन नही अपना रे ॥ तन ॥ कुटुंब कबीला बहेन जानेजा, रजनीका सुपनां ॥ सबी विरलावे॥ महाराज, सबी विरलावे॥ फिर चेतन मन परतावे, कलु संपत् संग नही था वे, धर्म निज कर ले सुखदा रे ॥ धर्म ॥ग्यान॥ ॥२॥ नरम तुऊ अंतर घट लागो रे ॥ जरम॥ उदय हेत कुमति संगतसें, विषय पवन लागो॥ पाप संग चाले ॥ महाराज, पाप संग चाले ॥ चेतनकुं नरकमें घाले, जिन मारग शुझ नहीं पाले, जपो जि नवरकू लय लारे ॥ जपो ॥ ग्यान ॥३॥ पाप मेरो नव जवको कापो रे ॥ पा॥ मुगतिदान अ मर फल पदवी, सेवककू श्रापो ॥ विनती मानो॥
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