________________
(४७) तसुं श्रावत नैन जराश् ॥ न ॥ बा० ॥ ४॥ - पद त्रीजुं ॥ मारे में तो प्रजुजीसें प्रीत करी, श्रीन मिनाथ जिनेश्वरजीसें, लगी लगन खरी॥ माई रे ॥१॥ माता वप्रा विजय नृपति सुत, मिथिला जनम पुरी ॥ पणदश धनुष शरीर कनकद्युति, सेवत चरण हरी ॥ मा०॥५॥ दस हजार बरसको श्रायु, महिमा जगत् नरी ॥ दोष अढार रहित हितकार क, साधी शिवनगरी॥माण ॥३॥ जब में चरण कमल चित्त दीनो, तबही विपत्ति टरी॥ हरखचंद
आनंद चित्त पायो, मनकी श्राश फली॥ मा ॥ - पद चोथु॥केरबो॥ जलांजी मेरोनेम चल्यो गिर नार, एकेलीजानसें ॥मेरो॥राजुल उत्नी अरज करे बे, जलांजी मेरी अरज सुनो महाराज ॥ एकेली० ॥१॥ तोरण श्राय चले रथ फेरी, जलांजी उदांतो पशुधनकी सुनी जे पोकार ॥ एकेती० ॥२॥ सह सावनकी कुंजगखनमें, जलांजी उहांतोपंच महाव्रत धार ॥ एकेली ॥३॥हरखचंद प्रजु राजुल विनवे, जलांजी मेरो होजो मुक्तिमें वास ॥ एके ॥४॥
॥अमृतकृत पदो ॥ पद पहेलु ॥ श्रीपारस प्रजु साहिब मेरे, तुम हो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org