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________________ (४) खारथ विणसे सगो न दोसी, मित्ता मनमें चिंत ॥ ज० ॥२॥ ऊठ चलैगो श्राप एकीलो, तुंही तुं सु विदित ॥ को नहीं तेरो तुं नही किसको, एह श्र नादी रीत ॥ ज० ॥३॥ तातें एक नगवान नजन की, राखो मनमें नीत ॥ ग्यान सार कहे एह धन्या श्री, गायो श्रातम गीत ॥ ज०॥४॥इति ॥.. ॥हरखचंद कृत पदो॥ __ पद पहेतुं ॥राग पंजाबी॥श्रीजिनपास दयालसें, लगा मेरा नेहरा ॥ श्रीजिनपास ॥ तुं सदानीला, लगा मेरा नेहरा ॥ श्रीजिन ॥ ए श्रांकणी ॥ हा ल हकीकत तुंही जाने, ज्युं वीते दयाल ॥ लगामे रा० ॥१॥ अश्वसेन नंदन जग वंदण, वामाजीके लाल ॥ लगा मेरा ॥२॥ हरखचंद सेवक अपन नका, मिटे जव जंजाल ॥ लगा मेरा ॥३॥ पद बीजुं ॥ बाजत रंग बधाइ नगरमें ॥ बा०॥ जयजयकार जयो जिनशासन, वीर जिणंदकी मुहा ॥ न बा ॥१॥ सब सखीयन मिलि मंगल गाये, मोतीअन चोक पूरा ॥ न० ॥ बा ॥२॥ केसर चंदन जरीय कचोली, साहिब ज्योति सवा॥ न० ॥ बा०॥३॥ हरखचंद प्रजु दरसन देखत, हे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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