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________________ (ए) जगमें जयकारा ॥ निज सेवक पर करुणाकरके, कीजे कलु उपगारा॥ श्री० ॥ १॥ श्री समेत शिखर पर सोहे, प्रजुउत्तंग विहारा॥अति सुंदर प्रनु बिंब वि राजे, गजे बबि मनुहारा ॥ श्री० ॥२॥नव नम तें बहुकाल गमाया, पाया नहिं नवपारा॥ अब कबु शुन संयोग उपाया, पाया नर अवतारा ॥ श्री॥३॥ मोह सुनट मुक अंतर वैरी, उर्जय विषय विकारा॥ प्रनुमुना पेखतही जीता, वीता फुःख विस्तारा ॥ श्री०॥४॥ राज धिप्रजु में नहिं चाहूं, चाहुं नहिं धन दारा ॥ श्रीजिन नक्ति सहित नित्य चाई, अमृत धर्म उदारा ॥ श्री० ॥ ५॥ .. ___ पद बीजं ॥ राग सोरठ मल्हार ॥ हो राज निंजु थारे छारें, नेम नवल प्यारा, नव नव नेह संचार रे॥ हो ॥ टेक ॥ उमंग घुमंग घन गरजन लागे, पीउ पीज पपश्या पुकार रे ॥ हो ॥१॥श्म विलप ती राणी राजुल बोले जश्चढ्या गढ गिरनाररे ॥ हो ॥२॥ अमृत पद मधुपति श्म विलसे, श्रात म अनुजव सार रे ॥ हो ॥३॥ इति ॥ . - पद त्रीजु ॥श्री सुपास जिनराज ॥ ए देशी ॥ आदीसर जिनराज, त्रिजुवनके महाराज ॥ आज Jain Educationa InterXonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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