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(३५) ॥अथ श्रीचिदानंद कृत पदो ॥ पद पहेढुं ॥ राग गोमी ॥ अवधू निरपद विर ला को, देख्या जग सब जोश ॥ श्रवधू ॥ टेक ॥ सम रस नाव नला चित्त जाके, थाप उबाप न हो
॥अविनाशीके घरकी बातां, जाणेगे नवि सोइ ॥ अवधूं ॥१॥ राव रंकमें नेद न जाणे, कनक उप ख सम लेखे ॥ नारी नागणिको नही परिचय, तो शिव मंदिर देखे ॥ श्रवधू० ॥२॥ निंदा स्तुति श्रव ण सुणीने, हर्ष शोक नवि आणे ॥ ते जगमें जोगी सर पूरा, नित चढते गुणगणे ॥ अवधू ॥३॥ चंड समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंजीरा॥ श्रप्र मत्त नारंग पेरे नित्य, सुरगिरिसम शुचि धीरा ॥ श्रवः ॥४॥ पंकज नाम धराय पंकशें, रहत कम ल जिम न्यारा ॥ चिदानंद ऐसा जिन उत्तम, सो साहेबका प्यारा ॥ अव०॥५॥
पद बीजुं ॥ अवधू खोल नयन अब जोवो, हग मुंदी कहा सोवो ॥श्रवधूणाटेक॥ मोह निंद सोवत तुं खोया, सरवस माल अपाणा ॥ पांच चोर अजहूं तोये खूटत, तास मरम नहि जाएया ॥ अवधू० ॥ ॥१॥ मिली चार चंमाल चोंकमी, मंत्री नाम धरा
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