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________________ (३६) या॥पा केफ प्याला तोहेके,सकल मुलक ठग खाया ॥अवधू॥२॥शत्रुराय महाबल जोझा, निज निज सेन सजाये ॥ गुणगणेमें बांध मोरचे, घेख्या तुम पुर आये ॥ १० ॥३॥ परमादि तुं होयके पियारे,परव शताफुःख पावे॥गया राज पुर सारथ सेंती, फिर पाना घर आवे ॥ अवधू ॥४॥ सांजलि वचन विवेके म तिका, बिनमे निजदल जोड्या ॥ चिदानंदसी राम त रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोया ॥ अ० ॥५॥ पद त्रीजुं ॥ रागप्रनाती ॥ चालणां जरूर जाकू ताकुं कैसा सोवणां ॥ ए श्रांकणी ॥ जया जब प्रात काल,माता धवरावे बाल, जग जन करत, सकल मुख धोवणां ॥ चा०॥ १॥ सुरनिके बंध बूटे, घूवम जये अपूठे ॥ ग्वाल बाल मिलके, विलोवत वलोवणां ॥ चा॥२॥ तज परमाद जाग, तूंनि तेरे काज लाग॥ चिदानंद साथ पाय, वृथा न खोवणां ॥ चा ॥३॥ - पद चोथु ॥राग आशावरी ॥मारग साचा कोउ न बतावे, जासुं जाय पुबीये ते तो, अपणी अपणी गावे ॥ मारग ॥ ए आंकणी ॥ मतवारा मतवाद वा दधर, थापत निज मत नीका ॥ स्यादवाद अनुन व बिन ताका, कथन लगत मोय फीका ॥मा॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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