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________________ ( ३९ ) पद आठमुं ॥ राग जंगलो काफी ॥ जुठी जगत् की माया, जिणे जाणी भेद तिथे पाया ॥ जू० ॥ ए श्रांकणी ॥ तन धन जोबन सुख जेतां, जाणहुं श्र थिर सुख तेतां, नर जिम बादलकी छाया || जून १ ॥ जिम नित्य नाव चित्त थाया, लख गखित वृखन की काया ॥ बुजे करकंरु राया ॥ जू० ॥ २ ॥ इम चिदानंद मनमांदी, कटु करियें ममता नांही ॥ स गुरुयें नेद लखाया ॥ जू० ॥ ३ ॥ पद नवसुं ॥ राग बिहाग ॥ बोल मत पिया पि या ॥ ए आंकणी ॥ रे चातक तुं शब्द सुण मेरा, व्याकुल होत हे जीया ॥ फूटत नांदि कठिन श्रति घन सम, निठुर जया ए हिया ॥ बो० ॥ १ ॥ एक शोक्य दुःखदायी कंत जिने, कर कामण वस कीया ॥ डुजे बोल बोल खग पापी, तुं अधिका दुः ख दिया || बोल० ॥२॥ करण प्रवेश उठी होय व्या कुल, विरहासन जल तिया ॥ चिदानंद प्रभु इन अवसर मिल, अधिक जगत् जस लिया ॥ बो०॥३॥ पद दशमं ॥ वांसलमी वेरण थईने लागी कां मु ज केडे ॥ ए देशी ॥ हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत अनित तजी चित्त धारियें ॥ हो वालमजी वचनतणो ति ॐ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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