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(४०) डो मरम विचारियें ॥ ए आंकणी ॥ तुमे कुमतिके घर जावो बो, निज कुलने खोट लगावो बो, धिगू ए व जगत्की खावो डो॥होत्री०॥१॥ तुमे त्याग थ मी विष पीयो बगे, कुगतिनो मारग लीयो बो, ए तो काज अजुगतो कीयो नगे ॥ हो प्री॥२॥ ए तो मो हरायकी चेटी,शिव संपत्ति एहथी बेटी, ए तो साकर तेग खपेटी ॥ हो प्री०॥३॥ एक शंका मेरे मन श्रावी , किण विध एमुक चित्त जावी , एतो डाहण जगमें चावी जे ॥ हो प्री॥४॥ सहु रिकतु मारी खाये , करी कामण मत नरमाये , तुमे पुण्यजोगे ए पाये ॥होप्री० ॥५॥ मत थांब काज बाउल बोवो, अनुपम नव विरथा नवि खोवो, अब खोल नयण प्रगट जोवो ॥ हो प्री० ॥६॥ण विध समता बहु समजावे, गुण अवगुण मही सहु दरसा वे, सुणि चिदानंद निज घर आवे ॥ हो प्री०॥७॥ - पद अगीधारभु ॥ केरबो ॥ समज परी मोहे, समज परी मोहे ॥ जग माया अब जूठी ॥ समज० ए श्रांकणी ॥ काल काल तुं क्या करे मूरख, नही जरुंसा पल एक घरी ॥ जग ॥१॥ गाफिल दिन जर नांही रहो तुम, शिरपर घुमे तेरे काल अरी ॥
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