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________________ १४० ) विधे जे आराधशे रे लाल, ते लदेशे सुख को कि रे ॥ ज० ॥ मुक्ति मंदिरमें म्हालशे रे लाल, मति हंस नमे कर जोकि रे ॥ ज० ॥ प० ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री मेघरथ राजानी सद्याय प्रारंभ ॥ ॥ दशमें नवे श्रीशां तिजी, मेघरथ जीवडो राय ॥ रूमा राजा ॥ पोसह शालामां एकदा, पोसह ली यो मन जाय ॥ रूमा राजा ॥ धन्य धन्य मेघरथ रायजी, जीवदया गुण खाण ॥ धर्मी राजा ॥ धन्य० ॥ १ ॥ ए झांकी ॥ ईशानाधिप इंद्रजी, वखाएयो मेघरथ राय ॥ रूडा राजा ॥ धर्मे चलाव्यो नवि च ले, जासुर देवता श्राय ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥ २ ॥ सींचाणा मुखे श्रवतरी, पमीयुं पारेतुं खोला मांदे ॥ रूमा राजा ॥ राख राख मुज राजवी, मुजने सींचाणो खादे ॥ रूडा राजा ॥ धन्य० ॥ ३॥ सींचा कहे सुणो राजीया, ए बे माहारो आहा र ॥ रूडा राज ॥ मेघरथ कहे सुए परंखीया, हिंसा थी नरक अवतार ॥ रूमा पंखी ॥ धन्य० ॥ ४ ॥ श रणे आव्युं रे पारेवडुं, नहीं श्रापुं निरधार ॥ ॥ रूडा पंखी ॥ माटी मगावी तुजने दीऊं, तेहनुं तुं कर आहार ॥ रूमा पंखी ॥ धन्य० ॥ ५ ॥ माटी खपे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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