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( ६३ )
दूर करनां, एक ध्यान प्रभुका धरनां ॥ खतरा दूर क रनां ॥ दू० ॥ टेक ॥ जब लग पांचो निर्मल करना, तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा० ॥ १॥ क्रोध मा न माया परिहरनां, समितिगुप्ति चित्त वरनां ॥ ख तरा० ॥ २ ॥ संवर जाव सदा मन धरनां, आतम दुर्गति हरनां ॥ खतरा० ॥ ३ ॥ धन का कंचनकुं क्या करना, आखर एक दिन मरनां ॥ खतरा० ॥४॥ ज्ञान उद्योत प्रभु पाये परनां, शिवसुंदरी सुख वर नां ॥ खतरा० ॥ ५ ॥ इति ॥
पद नवसुं ॥ पानी में मीन पियासी रे, सुन सुन यावत हांसि रे ॥ टेक ॥ सुखसागर सब ठोर नस्यो हे, तुं कां जयो उदासी रे || पानी० ॥ ॥ आत्मज्ञान बिन नर जटकत है, क्या मथुरा क्या कासी रे ॥ पानी० ॥ २ ॥ मान मुनि कहे ए गुरु साचो, सेह जें मिले अविनाशी रे || पानी० ॥ ३ ॥ इति ॥
पद दशमं ॥ जिनसें प्रित लागी, लागी लागी मोरी जिनमें प्रीत लागी ॥ टेक ॥ काल अनंतें अब प्रभु पा यो, जाग्य दशा मोरी जागी ॥ लागी० ॥ १ ॥ अब तोरे चरण शरणपें आयो, जवजव जावळ जागी ॥
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