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________________ (१०) कांश करने लाग्या सोर ॥ निरंजन ॥५॥तुम हो अमर देवता रे, हम केसरका डोम ॥ कनक कचोली हाथमां, कांश पूजा करुं रंगरोल ॥ निरंजन ॥३॥ तुम हो मोतनकी लरी रे, हम गुण उमा जोर ॥ रूपचं दकी एही अरज हे, दिलनर दरिसनदोर ॥नि॥४॥ राग कल्यान ॥ ऐसे सहेर बिच कौन दीवान हे वो ॥ टेक ॥ पानीके कोट पवनके कांगरे, दश दरवाजे मंडान हे वो॥ ऐसे ॥१॥ पांच इंडीके त्रे वीस तस्कर, नगरकू करत हेरान हे वो ऐसे ॥२॥ प्रजा पोकार सुनी तब जाग्यो, चेतन राय सुजाण हे वो ॥ ऐसे ॥३॥ ज्ञानको बान वचन रस नेदे, हाथमें लाल कमान हे वो ॥ ऐसे ॥४॥ रूपचंद कहे तेने वारो, कुशमन मान गुमान हे वो॥ऐसे॥५॥ आय रह्यो दिल बागमें, सुन प्यारा जिनजी॥ ए आंकणी ॥ चुन चुन कलीयों तोरे चरणे चढावं, गुण अनंता तोरा रागमें ॥ सुन ॥ १॥ मरुदेवी नंदन आदि जिनेश्वर, खेल अनंता तोरा बागमें ॥ सुन० ॥॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, जीव विकसित बन फागमें ॥ सुन ॥३॥ ___ए रहो रहो रे जादवराय दो घमियां, दोय घ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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