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________________ (११) मीयां रे अब चार घमीयां ॥०॥ए आंकणी ॥प्रेमका प्याला बोहोत मसाला, पीवत मधुरी सेलमीयां ॥ ॥रहो॥१॥हाथशं हाथ मिला दीयो सांझ फुलडा बिडा सेजमीयां ॥ रहो ॥२॥राजुल बोडी चले गिरनारे, दीपत मोहन वेलमीयां ॥रहो ॥३॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, मुक्तिवधू गुण वेलमीयां ॥ रहो ॥४॥इति ॥ १० बिराजो बंगले में, बिराजो मंदीरमें, प्रजु गो मीचा हो पारसनाथ ॥विणा ए टेक॥चुवा चुवा चंदन और अरगजा, केसरमें गरकाव ॥ विणा १॥ रच्यो नीको प्रनुजीने नत्र बिराजे,मोतियमां तपेरे लिलाम ॥विणा॥ नवसागरमेंनी आइ पड्यो हे, बांहे पकड मुक तार ॥ बिण ॥३॥ रूपचंद कहे नाथ निरं जन, तरणतारण मुफ तार ॥ बि० ॥४॥ ११ कीने देखा हमारा स्वामी, स्वामीजी अंतर जामी रे॥कीने ॥ टेक॥ आठ जवकी प्रीति प्रका शी, नवमे गया शिवगामी रे॥कीने॥१॥ सहसाव नकी कुंज गलनमें,मल्या मुनेअंतरजामी रे॥कीने ॥॥ आप चले गिरनारकी ऊपर, नारी तारी केव ल पामी रे॥कीने॥३॥ कहे नथू प्रनु नेम नगीनो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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