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________________ ( १२ ) कहुं बरं आज शिर नामी रे ॥ कीने० ॥ ४ ॥ १२ राग सामेरो ॥ कुमकुमने पगले पधारो राज, कुम कुमने पगले ॥ टेक ॥ संसार बांगी संजम यादरवा, दान दीघां ढगले || पधारो० ॥ १ ॥ शिबिका देवी स इस पुरुषसें, प्रभु बेसी फरो सघले ॥ पधारो० ॥ ॥ वन जाइ प्रभु दीक्षा लीनी, उपजे ज्ञान चोथुं डगले ॥ ॥ पधारो० ॥ ३ ॥ करम खपावी केवल लीधुं, मोद पहोता तेतो एक मजलें ॥ पधारो० ॥ ४ ॥ नथु क ल्याण कहे चेतने तुं तो, एवा प्रभु जज ले ॥ प० ॥५॥ १३ जुवो मोरी सैयरो दीपे गोडीचाजी केवा रे ॥ टेक ॥ वरखमीये प्रभु आप बिराजो बाजे देवाधिदे वा रे ॥ जुवो० ॥ १ ॥ केशर चंदन जरी रे कचोलां, ने ली शुज गंध बरास रे ॥ जुवो० ॥२॥ श्रांगी रचो मो घर जासुलकी, पूजा करोने नव अंगें रे ॥ जुवो० ॥ ॥ ३ ॥ नथु कल्याण कवि दीपनो श्रावक कहे, श्रद्धा श्री समकित पावुं रे ॥ जुवो० ॥ ४ ॥ १४ मुंगर प्यारो रे ॥ में मोतीडे वधानं रे॥ टेक ॥ मुंगर फरसत पाप मिटत है, गिरि निरखत यानंद पाठं रे ॥ कुंगर० ॥ १ ॥ कांकरे कांकरे सिद्धा अनंता, यदि नाथ तथा गुण गाउं रे ॥ मुंगर० ॥ २ ॥ सूरज कुंम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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