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________________ (१४३) गर मोहे खंतशें, कही मेघरथ सशाय ॥ रूमा रा जा ॥ धन्य ॥२०॥ संवत सत्तर सत्ताणुयें, मास खमण दिन जाण ॥ रूडा राजा ॥ ऋषि गोवर्धन पसायथी, कहे रायचंद शुनवाण ॥ रूडा राजा ॥ध न्य॥१॥इति ॥ ॥अथ काम कंदर्पनी ससाय प्रारंजः ॥ कीमी चाली सासरे रे, नव मण मेंदी लगा यहाथी लीया दो गोदमां, ऊंट लीयां लटकाय॥ करेलडां घडदे रे ॥ ए देशी ॥ काम विकारें मान वी रे, करे कुकर्म अनेक ॥ काम करेवा कारणे, वि रमे आप विवेक ॥१॥ कामी नर वर्जजो रे, का मह केरा विकार ॥ कामी नर वर्जजो रे ॥ ए श्रांकणी ॥ काम वशे जे वाहीया रे, पाम्या पुःख अपार ॥ लंपट थयो लंकापति, अवलेही स्व श्राचा र॥ कामी० ॥२॥ काम थकी सीता हरी रे, ला व्यो रावण लंक ॥ दश शिर रामे दीयारे, काम त णा ए वंक ॥ कामी ॥३॥ पद्मोत्तर प्रौपदी हरी रे, पांडव पांचनी नार ॥ कृष्ण बले लेश श्रावीया, बूटी ते राय थई नार ॥ कामी० ॥४॥ काम विक ल हुई कामनी रे, ते सुरीकंतारे नार ॥ निजपतिने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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