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________________ ( १४४ ) हायें हयो, पोहोतो ते स्वर्ग मकार ॥ कामी० ॥५॥ ब्रह्मदत्त निज सुत ऊपरे रे, कीधो एकत्र प्रपंच ॥ चूकी चूलणी मारवा, कामह केरा ए संच ॥ कामी ० ॥ ६ ॥ इत्यादिक कामें करी रे, पाम्यां दुःख अ ह ॥ एणे जवतो लंपटी तणो, नाम धरावे तेह ॥ का मी० ॥ ७ ॥ पर जवतो नरके पचे रे, नाम थकि ए जीव ॥ मुनि जुधर कहे प्राणीया, वर्गों काम सदै व ॥ कामी ० ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ वैराग्य सझाय ॥ ॥ प्राणी काया माया कारमी, कूमो बे कुटुंब प रिवार रे ॥ जीवडला ॥ समरण कीजें सिद्धनुं ॥ मा दरूं माहरू म कर रे मानवी, पंथ वदेवुं परले पार रे ॥ जीवडला ॥ सम० ॥ १ ॥ प्राणी सहुने वलावें सांकल्या, मलिया बे मोहने संबंध रे ॥ जीवडला ॥ प्राणी आयु दायें लगा थयां, धीठो एवो संसारी धंध रे ॥ जी० ॥ सम० ॥ २ ॥ प्राणी काष्ट परें रे का या बले, वली केश बले जेम घास रे ॥ जी०॥ प्राणी मानवी मर्कट वैरागीया, वली पडे माया विश्वा स रे ॥ जी० ॥ सम० ॥ ३ ॥ प्राणी पडाइ ऊडे जीव ऊपरे, दोरी पवन बलें लेइ जायरे ॥ जी० ॥ प्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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