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(६५) रत लागे प्यारी, बहेर बहेर में निरखुं निहाली ॥ कांतिविजय साहेब मोरा रे, नव नव चरण शरण मोहे तोरा ॥ शांति॥॥इति ॥ ___ पद चौदमुं॥राग धन्याश्री॥प्रजुजी मोरे नैननमें बस रो॥ए आंकणी॥नानिराजा मरुदेवीको नंदन, शुक्क ध्यानको धरैया ॥ मो॥॥अपरानाचे किन्नर गुण गावे, मुखसें बोले थाथैयां ॥मो॥॥ मृदंगकी धिमक सुणी, जनरंग हीतमच्चो, बहेर बहेर खेत बलैं यां ॥ मो० ॥३॥ इतनी अरज सुनी, अमृत नजर नरी, कुशल कल्याण करैया ॥ मोरी० ॥४॥ ___पद पंदरमुं ॥ जिनजीसें हमारी लगन लगी॥ए श्रांकणी ॥ अजब अनोपम सूरत जिनजीकी, मूरत जिनजीकी, देखत सूरत चित्त ठरी ॥ जिनजी० ॥ ॥१॥ मोतनलाल कहेरे अपननसें, चरण कमल पर चित्त पर। ॥ जनजी० ॥२॥ति ॥
पद शोलमुं॥ बलिहारी जाऊं, वारी महावीर ता री समोवसरणकी बलिहारी॥ ए आंकणी॥त्रण ग ढ उपर तखत बिराजे, बेठी ने परखदा बारी॥महा० ॥१॥ वाणी जोजन सहु कोश् सांजले, तास्यां ने नर ने नारी ॥ महा० ॥२॥ आनंदघन प्रजु एणी परे
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