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________________ (५६) पद बीजं ॥ मिलावनां मिलावनां मिलावनां रे,गोडी जीको दरस मिलावनां ॥ टेक ॥ अनुलव मेवा नेज दे प्रजुजी, उन मोहे दरिस दिखावनां रे॥ गोणा॥ अंतरजामी अंतर निरखो, द्यो दरिसन सुख पावनां रे ॥ गोडीजीको ॥२॥ रामविबुध कहे जिनप्रनु प्यारा, तनका ताप मिटावनां रे ॥ गोमीजी ॥३॥ पद त्रीजु ॥ समेत शिखर चालो जश्य मोरी स जनी, समेत शिखर चालो जश्ये ॥ टेक ॥ देश देशके जात्रा आवे, अतिसुख अतिसुख चहीयें।मो॥स मेत॥१॥ वीशेट्रंके वीश जिनेसर, वंदीने पावन थश्य ॥ मो॥समेत॥२॥ मन वच काया प्रदक्षिणा देकर, मुक्ति परमपद पश्ये ॥ मो॥ समेत ॥३॥ पद चोथु ॥ जज ले मनुवा गोमी पारसकू॥ जज ले०॥ टेक ॥ मन बच काया लगाय लोयणा, बांग सकल चमका रसकू ॥नज ले ॥१॥ अनय दान यो फुःख सवि चर व्यो, घर करो नविया रसकूँ ॥ ॥नज ले॥॥द्यानत गावे हरख वधावे, पाम्या ए नर नारस... ॥ जज ले ॥३॥ इति ॥ पद पांचमुं॥ तुं जगमांहे दीवो प्रजुजी, तुं जग मां दीवो ॥ टेक ॥ तीन जगत्के नाव प्रकाशत, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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