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(५७) कबुये न पवन न डीवो ॥ प्रजु० ॥ १ ॥ तूम नहीं जनवाद अनुपम, तेल कपूर न पीवो ॥ प्रजु० ॥२॥ देव विजय प्रनु चरण शरणके, बोत बरस चिरंजीवो ॥ प्रजु ॥३॥
पद बहु॥पारसनाथ आधार प्रनु मेरो ॥पाणाटेक॥ श्रा जव परजव वांडित पूरे, शिवपदको दातार रे॥ ॥ मेरो०॥ १॥ वामाजीको नंदन नीरख्यो, ते पा म्या नवपार रे॥ मेरो०॥॥ कहत शामल आशा पूरो मेरे मनकी, सेवककी करो सार रे ॥ मेरो॥३॥
पद सातमुं॥ अजब ज्योति मेरे जिनकी ॥ तुम दे खो मार, अजब ज्योति मेरे जिनकी ॥ टेक ॥ चंड सूरज कोम एकग कीजें, होड न आवे मेरे प्रजुकी ॥तुम देखो॥१॥ जगमग ज्योति जडावका घेणां, शोजा लील वरनकी ॥ तुम देखो॥२॥हीरविजय प्रजुपास संखेसर, आशा पूरो मेरे मनकी॥तु॥३॥
पद आठमुं॥कर कर कर कर कर कर, करने काज तारं॥ अवसर फरी नहीं आवे, तुं मान्यने कह्यु मा रुं ॥ कर ॥१॥ आईं रुठं मनुष्य, तन, अमरने बे प्यारं ॥ करी अकर्म कर्म बांधी, नाख्युं काढी बा 5 ॥ कर ॥२॥ मायाना अंधारा मांही, लाग्युं
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