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________________ (५५) ॥गण॥१॥ अगर धूप अदत, नैवेद्य मंगाबुरे ॥ धूप दीप फल सुगंध, पुण्य पातुं रे॥ मा० ॥ ग ॥२॥ अष्ट अव्य आदिनाथ, नावे नावु रे ॥ रिखनदास पूरो आश, गुण गावं रे ॥ मा० ॥ ग० ॥३॥ पद पहेलु ॥ जिनराज नाम तेरा, राखं रे ह मारा घटमें ॥ ए श्रांकणी ॥ जाके प्रजाव मेरा, श्र ज्ञानका अंधेरा, नाग्या नया उजेरा ॥ राखुं रे ॥ जिन० ॥१॥ सुरत तेरी रागे, देख्या विनाव त्यागे, अध्यात्मरूप जागे ॥ राखुं॥ जि ॥२॥ मुजा प्र मोद कारी, कषनेश ज्युं तीहारी, लागत मोहे प्यारी ॥ राखंग ॥ जि० ॥ ३ ॥ त्रैलोक्यनाथ तुमही, हम है अनाथ गुनही, करिये सनाथ हमही ॥ राखं॥ जि० ॥ ४॥ प्रजुही तिहारी साखे, जिनहर्ख सूरि जांखे, दिल माफि याहि राखे ॥ राखं रे॥ जिय पद पहेलं ॥ आजकी आंगी जोर बनी, गोमी पास जिनेसरके अंगकी ॥ श्रा० ॥ टेक ॥ केसर चं दन चर्चु अंगे, बिचमांहेजी बुट्टी गुलाबनकी॥श्राज की॥१॥चंद्रज्योत तोरं मुखहुँ बिराजे, तेरे बद नोकी जाउं बलिहारी ॥ श्राजकी० ॥२॥कहे मबुक चंद एप्रनु साचो, पूजा करो ए जिनेसरकी॥श्रा०॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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