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(५४) १ गऊल-राजुल कहे नाथ गये, साथ परहरी ॥ नहीं अर्ज मेरी गर्ज, कलु दीलमें धरी ॥ राजुलम् ॥ ॥१॥ तेरे दर्शकी में तर्सी, देखु महेल पर चढी॥ देखी नाथ साथ जान, मेरी अखियां ठरी ॥ रागा ॥॥श्रायो तोरनसें फीरायो, रथ शामने फरी॥ कीनि पशुधन म्हेर फेर, अमें क्या करी ॥ रा॥ ॥३॥ श्राप जवकी जाणी प्रीत, रीत दीलमें नज री॥श्राये नवमे नव जोग, लोग गये बीसरी॥रा॥ ॥४॥ोमी राजुलसी नार, लीनी शिववधू वरि ॥ कहे सुत प्रजुदास चित्त, चरणसें धरी ॥ रा ॥५॥ ___ पद बीजं ॥ तुमरी ॥ पीया गिर चले गये रे, अ ब क्या मेरा होयगा जिनजी ॥ पीया॥ए आंकणी॥ जग दीये रे ॥ अब० ॥१॥ रात दिवस मुज निंद नहीं थाती, दया दिलमें धरनी चैयें तेरे रे॥अब॥ ॥२॥ कहे सुत प्रजुदास कर दोनो जोमी, राजुल नेमजी साथ गये गये रे ॥ अब० ॥ ३ ॥ इति ॥
पद पहेलु ॥ गजरो चढावं रे, मारा धुलेवा धणी ने॥ गजणा एश्रांकणी ॥ चंपा चंबेली, गुलाब लाऊं रे॥ जाइ जु मालती, विधिशुं गुंथावं रे ॥मारा॥
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