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________________ (५३) राग रामग्री ॥ रे जीव जिनधर्म कीजीयें, धर्मना चार प्रकार ॥ दान शियल तप नावना, जगमां एट लो सार ॥ रे जीव० ॥१॥ वरस दिवसने पारणे, आदीश्वर अणगार ॥ श्कुरस वहोरावीयो, श्री श्रे यांस कुमार ॥ रे जीव० ॥२॥ चंपा पोल उघामीयां, चारणीये काढ्यां नीर ॥ सतिय सुना यश थयो, शियल मेरु गंजीर ॥रे जीवन ॥३॥ तप करी काया शोषवी, सरस नीरस करी आहार ॥ वीरजिणंदे व खाणीयो, धन धन्नो अणगार ॥रे जीव० ॥४॥श्र नित्य नावना नावतो, धरतो निश्चल ध्यान ॥ नरत अरीसाजुवनमें, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ रे जीव०॥५॥ जैन धर्म सुरतरु समो, जेनी शीतल बाय ॥ समयसुंद र कहे सेवता, मनोवाडत फल पाय ॥ रेजी० ॥६॥ पद बीजें ॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, वेरन निसा कहांसें आ॥ सो॥ ए आंकणी ॥ निना कहे में तो बाली रे जोली, बडे बडे मुनिजनकू नाखू रे ढोली ॥ सो० ॥१॥ निझा कहे में तो जमकी दासी, एक हाथमें मुक्ती, उर दुसरे हाथमें फासी॥ सो॥ ॥२॥ समय सुंदर कहे सुनो ना बनीयां, आप मु वे सारी मुब गश्ऽनियां ॥ सो० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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