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________________ (५२) म वैरी नटकावे, ताहीसुं मेरो प्राण डरे ॥ न ॥ ॥॥ जो जीय सुखकी वांग चाहे, प्रनु सेवाशुं सब काज सरे ॥ महाराजा ॥३॥ पद श्रापमुं ॥ राग काफी ॥प्रजुजीसें लगो मारो नेह, सखीरी कहो अब कैसे बुटे री॥ प्र॥ टेक ॥ धिग धिग् जगमें वाको जीयो, अपणा प्रजुजीसें रुसे री ॥ प्र० ॥१॥जो कोप्रजुजीसें नेह करेगो, शिव पुरनां सुख लेहसे री॥ प्रण ॥२॥ सेवाराम प्रजु गांग्रेसमकी, लगीप्रीत नही बूटे री ॥॥३॥ पद पहेढुं ॥ हो महाराज सरण मोही राखो जी॥ हो॥ अनेक जम जोधा मेरी लार लगेहै, ज्यु तीतर पर बाज ॥ हो॥१॥ मोह करम मोहि घेर रह्यो है, मेरी रखजो लाज ॥ हो ॥२॥ लालचंद की तेही विनति, नवसागरशुं तार ॥ हो ॥३॥ - पद बीजुं ॥ राग सोरठ ॥ राजरी बधाइ बाजे ॥ ए आंकणी ॥ सरणा शिरोदा नोबत बाजे, घन ज्युं गाजे ॥ राजरी ॥१॥ इंशाणी मिल मंग ल गावे, मोतीअन चोक पूरावे ॥ राजरी०॥॥ सेवक प्रजुजी\ अरज करे , चरणकी सेवा प्यारी लागे ॥ राजरी ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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