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(४३)
घडता, जैसो सकडको बुंगे ॥ यो॥१॥ जणवा गणवाका गुणं नहि आया, कोरोही पकड्यो पूंगे। गपोमा सुणकर लोक पूजता, ए अलग डालको ढूं ठगे ॥ यो॥२॥पंमित गुरुकी सोबत पाइ, चेत्यो नहिं हीयाको फूटो ॥ साचा नरको संग न करतो, कूम कपट नहिं बूटो ॥ यो ॥३॥ जूगेहि बोले जूगेहि चाले, कपट करे एक मूगे ॥ साचो ए श्र सार देख, जिनदास सबसूं रूगे ॥ यो० ॥४॥
पद बहुं ॥ समर समर जिया श्रीनवकार, ए पद तो तेरो काज सुधारे सवि, पावे जवजलको तुं पा र ॥ समर ॥१॥ देव धर्म गुरु दृढ करी सेवियें, कदिय न होये तेरी हार ॥ समर ॥२॥ तप जप संजम सार खजानो बन्यो, खरची लीजोजी येही खार ॥ समर० ॥३॥ अरजनमाली अरु गजसुक मालकू, तुरत दीयो है तुस तार ॥ समर० ॥४॥ समकित सेजसुं खिल लह्यो हे हीयो, करी हे सुमता घरनार ॥ स ॥५॥ कहेणकू जिनदास उताव लो, करणेकू बमो हे गमार ॥ समर ॥६॥
पद सातमुं॥ अंतर मेल मिव्यो नहीं मनको, उ पर तन क्या धोया रे॥ अंत ॥ टेक ॥ सोल सण
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