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________________ (४४) गार सजीरे शरीरपर, मुखमा काचमें जोया रे॥ अंतर ॥१॥अगर अतर अबीर अरगजा, गंदी मोह्या रे ॥ अंतर ॥॥सरस आहार करी तनने पोष, त्रिया पलंगपर सोया रे ॥ अंतरण ॥३॥ कहे जिनदास जे अक्षय अमर पद, जब निरख्या तब रोया रे ॥ अंतर ॥४॥ ॥ चंद्रविजय कृत पदो ॥ पद पहेलु ॥ राग शोर ॥ हरीयालो हुंगर प्यारो॥ टेक ॥ ढूंढत ढूंढत गई गिरनारे, मिलगयो नेम प्यारो रे ॥ हरीयालो ॥१॥ सहसावनकी कुंजगलनमें, लीधो ने संजम नारो रे ॥ हरी ॥ ॥२॥ चंदश्री कहे जे हे श्रीजिनवर, या जवथी मुने तारो रे ॥ 1 हरीयालो० ॥३॥ पद बीजं ॥ राग गुजरी ॥ मेरो मन लागी रह्यो, श्रीमहावीरके चरणसें ॥ ए आंकणी ॥ सिकारथ कुलनंदन हेसो, राणी त्रिशला देवीको जायो॥ मन लागी० ॥१॥ जन्मथकी प्रनु मेरु कंपायो, सांसो दीयो हो मीटायो॥ मन लागी ॥२॥ क्षत्री कुंडमें जन्म लीयो हे, मुक्ति पावापुरमें पायो ॥ मन ला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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