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________________ ( 30 ) ॥ ३ ॥ श्रापी सेवा ते शुद्ध मनयी खरी रे, सूर शशि उपरे करुणा करी रे ॥ धन० ॥ ४ ॥ स्तवन श्रमुं ॥ मारे आज यानंद वधामणां रे, ढुं तो लेउं रे वादालाजीनां जामणां रे ॥ मा० ॥ टेक ॥ मुने दास पोतानो जाणीयो रे, थडातां ठेका श्र यो रे ॥ मारे० ॥ १ ॥ श्राप्यं दर्शन जे डुर्लन देवने रे, मुने कीधुं तुं रहेजे मारी सेवमें रे ॥ मारे० ॥२॥ एवो दीधो जरोसो साचा गुरु रे, प्रभु विना जगमां मि थ्या सहु रे ॥ मारे० ॥ ३ ॥ महेर करीने महारा मनमां रम्या रे, सुरशशिने जिनराजजी गम्या रे ॥ मारे० ॥४॥ छाथ पद ॥ सवा लाख टकानी जाये एक घमी, एक घमी रे जाय एक घमी ॥ स० ॥ ए संसार जैसा सांबेला, घमपण या घोने चडी ॥ मागी तुंगीने छत्र धरायो, केनो कंदोरो केनी कमी | सवा० ॥ १ ॥ साधो जाइ जिनने संजारो, जन्म दशा जेम यावी चडी ॥ कहे लींगो जो जगवंतने, मोक्ष जवानी ए वात खरी ॥ स० ॥ २ ॥ इति ॥ अथ पद ॥ चेतन तुं क्या करे यारी, दिवाने कर्म सों जारी ॥ तेरी संपत् सबे हारी, समऊ ले शीख तुं सारी ॥ चे० ॥ १ ॥ सऊन तुं मोहका संगी, चलत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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