________________
(७१) हे चाल बेढंगी॥घर दाराका हेरंगी, कीता नहिं बात ए चंगी॥०॥॥अनादिकी जूल हे तेरी, कुमतिसों चेतना घेरी॥संग लगि दार दे फेरी, गो रे मोहकी चेरी ॥ चे०॥३॥ज्ञानी तुं ज्ञान बिन नूला, प्रेमके फं दमें फूला॥सही रासी कर्मकी हला, सयाने समज तुं दूला ॥ चे ॥४॥ खोज कर एक तुं मेरा, आपमें
आप पद तेरा ॥ अमृत कहे पासजी केरा, सेवीयें पदयुग सवेरा ॥ चे ॥ ५॥ इति ॥
सवैयो । नगर नरेसर रूगे,खान सुलतान रूठो, अमिर उमराव रूठगे, सकल सनाये॥ काका कुटुंब रूगे, सासरे मोसाल रूठो, अवल पमोशी रूगे, नांही परनायें ॥ जननी वनिता रूठी, सुत सुता बाप रूठगे, नाइ नाश्बंध रूठगे, दिलमा न लाये ॥ जगवंत नवतारन, नक्तके उझारन, सब जग रूठगे प्रजु, तुं नां रूठो चाहियें ॥१॥इति ॥
॥अथ श्री पार्श्वनाथजीनी लावणी॥ अगम अगमधु बाजे चोघमा,सवाई मंका साहेब का, बननं बननं अवाज होता,महेल बनाया गगनोंका ॥ कल्याण पारसनाथ नामका,नित बाजता हे चोघमा, तीन लोकमें सच्चासाहेब,पारसनाथ अवतार बडा॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org