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________________ (३) क्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे ॥ जाव धरीने जे चढे, तेने जव पार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिद्धनो ए ठाम, स कल तीर्थनो राय ॥ पूर्व नवाणुं रिखजदेव, ज्यां व विया प्रजु पाय ॥ २ ॥ सूरजकुंम सोहामणो, कविम जक्ष अजिराम ॥ नाजिराय कुलमंगणो, जिनवर करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ ६ अथ पंचतीर्थी चैत्यवंदनं ॥ श्राज देव अरिहंत नमुं समरुं तारुं नाम ॥ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजय श्री श्रादिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्री अजितनाथ, आबू रिखन जुहार ॥ २ ॥ श्रष्टापद गिरी ऊपरे, जिनचो वीशी जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं नरते नरात्री सोय ॥ ३ ॥ समेत शिखर तीरथ वहुं, ज्यां वीशे जिन पाय ॥ वैजारकगिरि ऊपरे, वीर जिनेश्वरराय ॥ ४ ॥ मांडव गढनो राजियो, नामे देव सुपास ॥ रिषन कहे जिन समरतां, पहोचे मननी यश ॥५॥ ॥ श्रथ प्रजातिसमुदाय ॥ " १ पास संखेसरा सारकर सेवका, देव कां एवमी वार लागे । कोमि कर जोमी दरबार आगे खमा, ठाकुरा चाकुरा मान मागे ॥ पा०॥ १ ॥ प्रगट था पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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