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(२७) हितकारी, जगद् गुरु षन देव हितकारी ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति ब्रह्मचारी ॥ जग द्गुरुः ॥ १॥ वरसी दान देई तुम जगमें, ईलति शति निवारी॥ तैसी काहि करतु नांहि करुना, साहिब बेर हमारी जगदूणा॥मांगत नांहि हम हाथीघोरे, धन कन कंचन नारी ॥ दीयो मोहि चरन कमलकी सेवा, याहि लतग मोहि प्यारी ॥ जगद्ग ॥ ३ ॥ जव लीलावासित सुर मारे, तुं पर सबहीं उवारी॥ में मेरो मन निश्चय कीनो, तुम थाणा शिर धारी ॥ज गद ॥४॥ ऐसो साहेब नही कोउ जगमें, यासें होय दिलदारी ॥ दिलही दलाल प्रेमके बिचें, तिहां हठ खेंचे गमारी ॥ जगद् ॥५॥ तुम हो साहिब में हुं बंदा, या मत देखें विसारी ॥श्रीनय विजय वि बुध सेवकके, तुम हो परम उपकारी ॥ ज० ॥६॥
पद बारमुं॥ राग आशावरी ॥ पांचो घोरा रथ एक जुत्ता, साहब उसकात्तातर सूता ॥ खजलका मद मत मत वारा, घोराकुं दोरावन हारा ॥ पां॥ ॥१॥ घोरे जूठे उर उर चाहे, रथकुं फिरि फिरि उ वट वाहे ॥ विषम पंथ चिहुं उर अंधियारा, तोजी न जागे साहिब प्यारा ॥ पांग ॥ २ ॥ खेडं रथकुं.
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