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________________ (१३०) तिम घर मंडन गोरडी, मुख मंडन तंबोल. ७ महोरे अंगण पीपली, उमकी बेसे काग; सोन मढावं तोरिचांचडी. जो पिय आवेशाज.नए सांजल गोरी हुँ कहुं, हुं परदेशी काग; जोश्रण उपर पीयु पड्यो, ते किम श्रावे श्राज. एण स्त्री वाहीयु सयल जग, सुर नर ईसर देव; अकह कहाणी मयणनी, सहु करावे सेव. ए! नारी वदन विलोकतां, नर व्है वदन विकास; मानसरोवर कमलिनी, शशिवर मिलिजंजास. ए शशिहर खाडं कां रां, थर्ड निपाइ नारि; रामा रामा सहु करे, युग युगनी आधारि. ए३ नर सोहै नारी मिलै, नारी नरह मिलंत; जेम रयण शशिद मिले, शशिहर रयण मिलंत. ए४ नारी नयण तुमारडां, लोह विहूणां बाण; लागंता नवि जाणिये, काढी लीये प्राण. ए नारीकी जो प्रीत है, येहि रीत विपरीत; जीवत तन धन मन हरत, मरत औगति कीत. ए६ नारि पराई आपणी, औ वेश्या सब धूरि; मार्गहूकी वा नदीहकी, रेत सुगली धूरि. एy जा घरमांहि कुजारजा, ताको जन्मसुव्यर्थः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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