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________________ ( १०६ ) सहुको तुमे, कुण बे मुझ समान ॥ अरिहंत दीक्षा अवसरे, छापे पहिलं दान ॥ ४ ॥ प्रथम पहोर दातारनुं, लीये सह कोई नाम ॥ दीधारी देखल च ढे, सीके पंडित काम ॥ ५ ॥ तीर्थंकरने पारणे, कुण करशे मुऊ होड ॥ वृष्टि करुं सोवन तणी, सामी बारह कोम ॥ ६ ॥ हुं जग सघलुं वश करूं, मुऊ महो टी बे वात ॥ कुणकुण दानथकी तस्यां ते सु जो अवदात ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ललनानी देशी ॥ ॥ धन सारथवाद साधुने, दीधुं घृतनुं दान ॥ ललना ॥ तीर्थकर पद में दियुं, तिथे मुऊने अनि मान ॥ ललना ॥ १ ॥ दान कहे जग हुं वडुं, मुफ सरिखुं नहिं कोय ॥ ललना ॥ इद्धि समृद्धि सुख संप दा, दाने दोलत होय ॥ ललना || दा० ॥ २ ॥ सुमु ख नामे गाथापति, प मिलान्यो अणगार ॥ ललना ॥ कुमर सुबाहु सुख लघुं, ते तो मुऊ उपगार ॥ ललना ॥ दा० ॥ ३ ॥ पांचसें मुनिने पारणं देतो वोहोरी आण ॥ ललना ॥ जरत थयो चक्रवर्त्ति जलो, ते पण मुऊ फल जाए ॥ ललना ॥ दा० ॥ ४ ॥ मा सखमने पारणे, पडिलाच्यो इषिराय ॥ ललना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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