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(ए) कहीयें ॥ चल० ॥ ए श्रांकणी ॥ चरन जिनवरजी का नेट्या ॥ चरण ॥ जवनव संचित पाप करम स ब तन मनका मेट्या ॥ सुकृत कीजें, महाराज॥ सुकृत ॥ जिनवरका गुण जज लीजें, समकित अ मृत रस पीजें, लाल जिनन्नक्तिको लहीयें रे॥लान ॥ चल ॥१॥ करो मत मुखसे बमा॥करोगातज तामस तन मनकी सुमता, सें रेनां नाश् ॥रीतसें बोलो, मेरी जान ॥रीत०॥ आतम समतामें तोलो, मत मरम पारका खोलो, मौन कर तन मनसें र हियें रे॥ मौन ॥ चल॥२॥ जोबन दिन चार तणो संगी रे॥ जोबन ॥ अंत समय चेतन उठ चाले, काया पडि नंगी ॥ प्रीत सब त्रूटी, मेरी जान ॥ प्रीतः ॥ श्राऊखाकी खरची खूटी, चेतनसे काया रूठी, सुख दुःख श्राप किया सहिये रे ॥ सुख०॥ चल ॥३॥ जगत्से रहेनां ऊदासी रे ॥ जग ॥ परख्या में जिनराज हरो, मेरी उरगतकी फांसी ॥ तजो सब धंदा, मेरी जान ॥ तजो ॥ जिनवर मु ख पूनम चंदा, जिनदास तुमारा बंदा, मेरे एक जि न दर्शन चहिये रे ॥ मेरे० ॥ चल ॥४॥१॥
॥तुम नजो जिनेसर देव, मुगति पद पाय॥
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