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(७७) जीवनकुं सुख कंदन ॥ जिनंद गुण जिनदास गावे, सीस चरणोंसें नमावे ॥३॥
४॥ बोलत हैया मेरा हसकर, चढावु चंदन चू वा घसकर ॥ पेठा में धर्मोमें धसकर, पापदल दूर ग या खसकर ॥ चेतन हुवा खडा कमर कसकर, हग या कोका लसकर ॥ श्री जिनराज जहाज खासा, शरण जिनदास लीया बासा ॥४॥
५॥ समज मन मेरा मतवाला, तकें नहिं कोड हटकणवाला ॥ वस्या तेरे हश्ये कुगुरु काला, दिया तें सुरगतिकुं ताला ॥ फेरतो ममताकी माला, वाल तो जगवंत पर नाला ॥ दयासें दे दिया ताला, देखो जिनदासका चाला ॥५॥
६॥ कीया में गणधर प्रेमपती, मुके वरदायक हे सरसती ॥ करी निर्मल निग्रंथ मति, पंठ पर खमे जागता जति ॥ मुजे बलवंत न सोल सती, मीटी मेरी उर्गतकी सब गति ॥ऐसा धन जिनदास गावे, अचलपद नक्तिसे पावे ॥६॥ ____॥ बीकट घट उरगतका नारी, नीर ज्यां जर ती कुमति नारी ॥ बरठी उन नैनोकी मारी, मुख्या केश कामी संसारी॥श्नोकी हो रहि खूधारी, जीत्या
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