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(१२) लागत, पावत नांही विचालो ॥ चेतन ॥२॥ मोह दृष्टि कायर नर मरपे, करे अकारण टालो ॥ रणमेदान लरे नहीं अरिशें, शूर लरे जी पालो ॥ चेतन ॥३॥ मोह दृष्टि जन जनके परवश, दीन श्रनाथ पुःखालो ॥ मागे जीख फिरे घर घरसो, कहे मुझको कोन पालो ॥ चेतन० ॥४॥ मोह दृष्टि 'मद मदिरा भाती, ताको हात उठालो ॥ पर अव गुण राचे सो अहोनिश, काग अशुचि जीउ कालो॥ चे ॥५॥ ज्ञानदृष्टिमां दोष न एते, करे ज्ञान अजुयालो ॥ चिदानंद सुजस वचन रस, सजा न हृदय पखालो ॥ चेतन ॥३॥
पद बीजं ॥ राग कनमो॥अजब गति चिदानंद घनकी ॥ जव जंजाल सकतिशु होवे, उलट पुलट जिनकी ॥ अजब ॥१॥ ए आंकणी ॥ नेदी परी पति समकित पायो, कर्मवन घनकी॥ एसी सबल कठिनता दीसे, कोमलता मनकी ॥श्रज ॥२॥ नारी नूमि जयंकर चूरी, मोहराय रनकी ॥ सहज अखंग चंमता याकी, दमा विमल गुनकी ॥श्रजना ॥३॥ पापवेलि सब ज्ञान दहनसें, जाली नवव नकी शीतलता प्रगटी घट अंतर, उत्तम लखनकी॥
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