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________________ ( 22 ) नी० ॥ ४ ॥ आनंदघनशुं रंगें रमतां, गोरें गाल क बूके जाल ॥ न्हानी० ॥ ५ ॥ ए केरबो -- हांरे चित्तमें धरो रे प्यारे चित्तमें ध रो, एती शीख हमारी प्यारे, व चित्तमें धरो ॥ एक ॥ जीवनका क्या हे जरोसा अरे नर, का येकूं बल परपंच करो ॥ एती० ॥ १ ॥ हांरे कूम कफ्ट परद्रोह करो तुम, अरे नर परजवधी न करो ॥ एती । ॥ २ ॥ चिदानंद जो ए नहीं मानो तो, जनम मर के दुःखमें परो ॥ एती० ॥ ३ ॥ १० बलिहारी रे जाउं बलिहारी, महावीर तारी स मोवसरणकी बलिहारी ॥ ए झांकणी ॥ त्रण गढ उप र तखत बिराजे, बेटी बे परखदा बारी ॥ महा० ॥ ॥ १ ॥ वाणी जोजन सहु कोइ सांजले, तारयां बे नर ने नारी ॥ महा० ॥ २ ॥ श्रानंदघन प्रभु एणी पेरे बोले, श्रावा ते गमन निवारी || महा० ॥ ३ ॥ ॥ अथ श्री जशविलासनां स्तवनो ॥ पद पहेलुं ॥ राग श्राशावरी ॥ चेतन ज्ञान की दृष्टि निहालो, मोहदृष्टि देखे सो बावरो, होत महा मत वालो ॥ चेत० ॥ १ ॥ मोह दृष्टि प्रतिचपल करत हे, जववन वानर चालो | योग वियोग दावानल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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