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________________ (२०) जी रे ॥ हारे ॥१॥ दान पुण्य कर्बु धरमकुं कर ले, मोह मायाळू त्यागी रे॥हारे॥२॥आनंदघन कहे समज समज ले, श्राखर खोवेगा बाजी रे ॥हारे॥३॥ ____७ महोटी बहूये मनगमतुं कीg, महोटी वहये मन गमतुं कीg ॥ ए आंकणी ॥पेटमें पेशी मस्तक रेहेंसी, वेरी साही स्वामीजीने दी● ॥ महोटी० ॥१॥ खोले बेशी मी बोले, अनुनव अमृत जल पीधुं॥ ॥ महो० ॥२॥ बानी बगनी उरकमा करती, बर ती अांखें मनडुं वींधु ॥महो ॥३॥ लोकालो क प्रकाशक बैयां, जणतां कारज सीधुं ॥ महो० ॥ ॥४॥ अंगो अंगें अनुजव रमतां, आनंदघन पद लीधुं ॥ महोटी० ॥५॥ ___ न्हानी वहने परघर रमवानो ढाल, न्दानी व हने परघर रमवानो ढाल ॥ ए आंकणं। ॥ परघर रमतां थ जूग बोली, देशे धणीजीने बाल ॥ न्हा नी० ॥१॥ हलवे चाला करती हीडे, लोकमां कहे बीनाल ॥ न्हानी० ॥२॥ उलंनमा जण जणना लावे, हैडे उपासे साल ॥ न्हानी० ॥३॥ बारे प मोशण जुनी लगारेक, फोकट खाशे गाल ॥न्दा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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