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________________ ( १७ ) जोबन सबहीं जूगे, प्राण पलकमें जावे ॥ अवसर० ॥ ॥ २ ॥ तन बूटै धन कोण कामको, कायकूं कृपण कहावे ॥ ० ॥ ३ ॥ जाके दिलमें साच बसत है, ताकूं जूठ न जावे ॥ अव० ॥ ४ ॥ श्रानंदघन प्रभु चलत पंथमें, समरी समरी गुन गावे ॥ श्रव० ॥ ५ ॥ ४ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखज देव मनुष्यारा, मनुष्यारा० ॥ टेक ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम जतिव्रतधारा ॥ रिखज देव मनुष्यारा० ॥ १ ॥ नाजिया मरु देवीको नंदन, जुगला धर्म निवारा ॥ रिखन० ॥ २ ॥ केवल लइ प्रभु मुकते पहोता, श्रा वागमन निवारा ॥रिखज० ॥ ३ ॥ श्रानंदघन प्र इतनी विनती, था जव पार उतारा ॥ रिखन० ॥४॥ ५ ए जिनके पाये लाग रे, तुने कही यें केतो, ए जिनके पाय लाग ॥ ए टेक ॥ श्रागेइ जाम फिरे मद मातो, मोहनिंदरीयाशुं जाग रे ॥ तुने० ॥ १ ॥ प्र जुजी प्रीतम बिन नहीं कोइ प्रीतम, प्रभुजीनी पूजा घणी माग रे ॥ तुने० ॥ २ ॥ जबका फेरा पारी करो जिन चंदा, आनंदघन पाये लाग रे ॥ तुने० ॥ ३ ॥ ६ हांरे प्रभु जज ले मेरा दील राजी ॥ ए आंकणी ॥ या पोरकी तो शव घमीयां, दो घमीयो जिन सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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