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नम मरणथी बोगव्या रे, आपे मुऊ आशीष ॥ सो० ८ ॥ चंद्र रुद्र ने चालतां रे, दीघो दंमप्रहार ॥ नव दीक्षित थयो केवली रे, ते गुरु पण ते शिवार ॥ सो० ॥ ए ॥ धन रथकारक साधुने रे, पकिलाज्यो उल्लास ॥ मृगलो जावना जावतो रे, पहोतो स्वर्ग आवास || सो० ॥ १० ॥ निज अपराध खमावती रे, मूक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दियुं रे, नि र्मल केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊ परे रे, देखी पुत्रनी शद्धि ॥ मुकने मनमांहे धरयो रे, तत्क्षण पामी सिद्धि ॥ सो० ॥ १२ ॥ वीर वंदन चाल्यो मारगे रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दर्पुरनामे देवता रे, तेह थयो मुऊ संग ॥ सो० ॥ १३ ॥ प्रभुपाय पूजन नीसरी रे, दुर्गिला नामे नार ॥ कालधर्म वच मां करी रे, पहोती स्वर्ग मकार ॥ सो० ॥ १४ ॥ का यानी शोजा का रिमी रे रूप किस्युं श्रनिमान ॥ ज रत धारीसा भुवनमां रे, पाम्या केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ॥ १५ ॥ श्राषाढभूति कला निलो रे, प्रगट्यो जरत स रूप ॥ नाटक करतां पामियो रे, केवलज्ञान अनूप ॥ सो० ॥ १६ ॥ दीक्षा दिन काउसग्ग रह्यो रे, गजसु कुमार मशाण ॥ सोमल शीश प्रजालियं रे, सिद्धि
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