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________________ तास्यां बहु नर नार ॥ सावधान थश् सांजलो, ना म कहुं निरधार ॥ ए॥ ॥ढाज चोथी॥ कपूर होये अति उजलो रे॥ए देशी॥ ॥ काननमांहे काउसग्ग रह्यो रे, प्रश्नचंद कृषि राय ॥ ते में कीधो केवली रे, तत्क्षण करम खपाय ॥१॥ सोलागी सुंदर, नाव वमो संसार ॥ ए तो बीजो मऊ परिवार ॥ सो॥ दानादिक विण एकलो रे. पहोंचाहुं नवपार ॥ सो ॥२॥ ए श्रांकण। ॥ वंस उपर चढी खेलतो रे, एलापुत्र अपार ॥ केवल झा नी में कियो रे, प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो॥३॥ नूख तृषा खमे अति घणी रे, करतो कूर थाहार ॥ केवल महिमा सुर करे रे, कूरगमुअणगार ॥ सो॥ ॥४॥ लाने लोन वाधे घणो रे, श्राण्यो मन वैरा ग ॥ कपिल थयो मुनि केवली रे, ते ए मुफने सो नाग ॥ सो० ॥५॥ अर्णिकासुत गबनो धणी रे, दीपजंघा बनि जाण ॥ कीधो अंतगम केवली रे, गंगाजल गुणखाण ॥ सो० ॥ ६॥ पन्नर तापस नणी रे, दीधी गौतमे दिक ॥ तत्कण किधा केवली रे, जो मुफ मानी शीख ॥ सो ॥७॥ पालक पापीयें पीलिया रे, खंधक सूरिना शिष्य ॥ ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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