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बाई॥ फ॥१॥ पूजत शिव पावत हे, श्रागम युंगवता हे॥शांतिके घर जावत हे, रिद्धि लय लाई ॥फार
सुरशशि (देवचंद) कृत स्तवनो. __स्तवन पहेढुं ॥ रीत सरवथी न्यारी, होजी तमा री रीत सरवथी न्यारी॥ ए श्रांकणी ॥ मुठी बाकुल माटे प्रजु रीज्या, चंदनबालाने तारी॥ हो ॥१॥ चमकोशीयो गयो देवलोके, करणी ते के सुधारी॥ ॥ हो ॥२॥ सूरशशिना वाला रसिक शिरोमणि, चरणकमलनी बलिहारी॥ हो ॥३॥
स्तवन बीजं ॥ आंखलमी श्रणीयाली,होजी तमा री आंखलड़ी अणियाली ॥ ए श्रांकणी ॥ श्रांखमी जोश्ने माझं मन ललचाएं, वदन सकोमल नाली ॥ ॥ हो ॥१॥ नैन कचोला रुमां प्रेमनां नयां , कीकी मनोहर काली ॥ हो ॥२॥ नखशिख रूप ताहारं जे निरखे, नित नित तेने दीवाली ॥ दो॥ ॥३॥ सूरश शिना वाला रसिक शिरोमणि, लागी डे तुम संग ताली॥ हो० ॥४॥ ___ स्तवन त्रीजुं ॥ मुखमलाने मटके, होजी तमारा मूखमलाने मटके ॥ ए आंकणी॥मधुर प्रवाली हसी
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