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________________ (६०) ने जुलं बो, मन हरी व्यो बो लटके ॥ हो ॥१॥ नृ गुटी बाण मारो गो मोहन, कालजा वच्चे खटके ॥ हो ॥२॥वशीकरण विद्या वसावो बो नेणमां, तुम चरणे चित्त अटके ॥ हो ॥३॥ सूरश शिना वाला रसिक शीरोमणि, लेहेरुं श्रावे नेम चटके ॥४॥ स्तवन चोथं ॥ मूरतीये मनमु लोजाणुं, होजी त मारी मूरतीये मनसु लोनाएं ॥ ए श्रांकणी ॥ अंगें आजूषण धस्यां बहु जाती, निरख्यां सफल रे वहा j॥ हो ॥१॥ धन दोलत बीजी कोण कामकी, जेने प्रज्जु खजानो नाणुं ॥ हो ॥२॥ तुम करुणा थी मनोरथ फलीया, एमां फेर नही निश्चें जाएं। ॥ हो ॥३॥ सूरशशिनां बहु कारज कीधां तमे, चूल्या नथी एके टाणुं॥ हो ॥४॥ - स्तवन पांचमुं ॥धन धन रे दीवाली मारे आजु नी रे, में तो बबी निरखी जिनराजनी रे॥धन धनरे दीवाली मारे आजनी रे॥ टेक ॥ पहेरी आंगी अलौ किक जातिनी रे, माही बुट्टी दीसे नात जातनी रे॥ धन ॥ १॥ मणि हीरला मुकुटमा जड्या बहु रे, काने कुंमलनी शोना शी कहुं रे ॥ धन॥२॥ मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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