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(७५) ॥१६॥तेजा गावतचंगरंगसें, ग्यान ध्यानसें खमाखमा॥ हाथ जोमकर अरजी करता,पारसनाथजी तुंही बडा॥ बड़ा काम तेरे हे साहेब,मुखसें नहिं कह्या जाता॥शिव रमणीकुं वरी हे जिनजी, नविजनकू सुखके दाता॥१७॥
॥अथ नेमनाथजीनी लावणी॥ ॥ नेमनाथ मोरी अरज सुनीजें, में हुं दासी चर नोकी ॥ तोरन आइ फेर मत जाउं पीया, तुमकुं सोग न जादवकी ॥ नेम ॥१॥ जान ले तुम ब्याहन आए, लारे सेना माधवकी। बपन्न कोम जादव मिल आये, ए अवसर नहीं फिरनुंकी ॥ नेम० ॥२॥ रथ फेरी गिरिवरकुं सिधाये, हमकुंबांडी नव जवकी। मेरे सामरे श्याम सबुने, शहां नहीं अब रेनेकी ॥ नेमण ॥३॥ सुण जिनजी में तोकुं कडं, देखुं शोना गि रिवरकी ॥ मात पिता वंधव सब बंमी, जागुं संगें जादवकी॥ नेम ॥४॥हाथ जोरके विनवे राजुल, बात सुनो पियु मुफ घरकी॥ हमकुंबोड चले निर धारी, अब हे प्रीतम सरणेकी ॥ नेम० ॥५॥ नेम कहे तुम सुनो हो राजुल,विषय रस हे विष सरखी॥ए संसार असार निरंतर, कर करनी ए तरतुं की ॥नेम० ॥६॥पीयुजी पासे संयम लीनो, जिनसे कारज सर
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