SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२५) शिर जीतर जे शेरमो, मयणतणो ए माग; कवि नरपति श्म उच्चरे, वेणी वासुग नाग. ए मणि साची वासगतणी, शिर राखमी सुहंत; चरणे पटकुल चांपती, हंस गति हीडंत. १० निलवट टीली वाटली, कान ऊबूके काल; अधर अमूलक नारीना, दंततति विरहा वाल, ११ मृगमद चंदन लाश्य, नयणा श्रमिय कचोल; । जुश्रमंगलमां वातडी, मुख पूरं तंबोल. १५ नासा निरमल नारिनी, मुगता फल फलकंत; मुनिवर जाणे मुगति फल, चतुर पणे चाहंत. १३ करि चूमा चंपावना, पाय निउर रणकार; उर कसमसतो कांचुर्ज, कंठहिरागल हार, बोलती बहु रीजवे, इण रीऊव्या नरीद; अरे कुंकुम रादमी, बीजे चंदा चंद १५ यौवन वन नारीतणुं, सहुको सिंचणहार; स्नेह सुगंधां फूलडां, गहि गहियां अप्पार. १६ प्रेम तणी त्यां हमी, गुण गिरुयां फल दिक नर जमरा तिण वन वसे, माया मूर सुमिह १७ कवि नरपति मुनि बापडा, वति वनिता रस माणि; जग तरुअर फल दिछ नहिं, नारी निश्चय जाण. १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy